लोकसभा चुनाव 2019: कांग्रेस प्रत्याशी प्रह्लाद टिपानिया का 'अनोखा' अंदाज, कबीर के भजन गाकर कर मांग रहे हैं वोट
भोपाल: देवास में कांग्रेस प्रत्याशी प्रह्लाद टिपानिया का अनोखा अंदाज लोकसभा चुनाव में दिख रहा है। वो चुनावों में बूथ में पहुंच कर कबीर के भजन लोगों को सुनाते हैं। 65 साल के प्रह्लाद टिपानिया मालवी लोकशैली में भजन गाते हैं। टिपानिया कभी चुनाव आयोग के पोस्टर बॉय थे। वो लोगों को अपनी शैली में कबीर के भजन सुनाने के साथ लोगों को मतदान के लिए प्रेरित भी करते थे। लेकिन जब उनका नाम देवास से लोकसभा प्रत्याशी के तौर पर सामने आया तो चुनाव आयोग ने सरकार से कहा कि वो उनका नाम वोटिंग को प्रेरित करने वाले लोगों की लिस्ट से हटाए।
राहुल गांधी ने शूट किया वीडियो
लोक गायक प्रह्लाद टिपानिया की सुरली आवाज और अपील पर लोगों का ध्यान शुजालपुर में एक रैली ने खींचा। शुजालपुर में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने उनका वीडियो शूट किया और अपने ट्वविटर अकाउंट से शेयर किया। बुधवार को टिपानिया ने शाजापुर में इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि मैं गाने में व्यस्त था, मुझे नहीं पता था कि वो शूट कर रहे हैं। टिपानिया जो पहले शिक्षक थे, कहा कि वो गभग 40 वर्षों से एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। अब यह लोगों की मदद करने का एक और माध्यम है।
'फर्क नहीं पड़ता कौन मेरे खिलाफ खड़ा है'
जब उनसे उनके खिलाफ लड़ने वाले प्रतियोगी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जब एक प्रतियोगिता होती है, तो इससे फर्क नहीं पड़ता कि वो कोई न्यायाधीश है या कुछ और, यह एक प्रतियोगिता है। उन्होंने कहा कि वो अपने प्रतिद्वंद्वी के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते हैं। लेकिन शायद उनकी एक बड़ी राजनीतिक महत्वाकांक्षा थी, जिस वजह से उन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए न्यायाधीश के पद से इस्तीफा दिया। उनके खिलाफ बीजेपी के महेंद्र सिंह सोलंकी मैदान में है, जो पहले न्यायाधीश थे।
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'प्रह्लाद टिपानिया का बहुत सम्मान करता हूं'
टिपानिया ने कहा कि वह कबीर से प्रभावित हैं और जीवन में उनका अनुसरण करते हैं। कबीर सभी धार्मिक सीमाओं को पार करते हैं। सभी समुदाय अलग-अलग तरीकों से सर्वोच्च शक्ति की तलाश करते हैं। सभी एक ही पांच तत्वों और रक्त से बने होते हैं। वहीं उनके खिलाफ लड़ने वाले सोलंकी कहते हैं कि वो प्रह्लाद टिपानिया को बहुत सम्मान देते हैं। लेकिन इसका मतलब नहीं कि वो जीतेंगे। वह कबीरपंथी के रूप में नहीं बल्कि एक ऐसी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं जो राष्ट्रवादी विचारधारा में विश्वास नहीं करती है।
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