शीला दीक्षित के बाद कांग्रेस को ढूंंढे नहीं मिल रहा दिल्ली का सेनापति
बेंगलुरु। दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर जहां भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी पूरे जोश में नजर आ रही है वहीं कांग्रेस पार्टी यहां कोमा में हैं। प्रदेश कांग्रेस में कोई अध्यक्ष न होने के कारण पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं में माायूसी छायी हुई है। आलम यह हैं कि राष्ट्रीय स्तर की कांग्रेस पार्टी टिकट के उम्मीदवार चुनाव लड़ने से पहले मान बैठे है कि वह चुनाव लड़ेगे लेकिन हारने के लिए।
पिछले करीब डेढ़ माह से प्रदेश कांग्रेस बिना किसी अध्यक्ष के ही चल रही है। शीला दीक्षित का निधन के बाद दिल्ली में कांग्रेस पार्टी भी कोमा में चली गई। पार्टी के नेता दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की कमी को महसूस कर रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले दिल्ली कांग्रेस के प्रमुख के तौर पर शीला दीक्षति ने दोबारा वापसी की थी।।
वह उत्तर पूर्वी दिल्ली से चुनाव लड़ीं लेकिन राज्य में भाजपा अध्यक्ष मनोज तिवारी से हार गईं। शीला दीक्षित आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी कर रही थी परन्तु विगत 20 जुलाई को दिल का दौरा पड़ने के बाद दिल्ली की तीन बार मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित का निधन हो गया ।
चूंकि नया अध्यक्ष बनते ही प्रदेश के तीनों कार्यकारी अध्यक्षों का हटना भी तय है एवं प्रदेश कार्यकारिणी का नए सिरे से गठन भी, तो ऐसे में ज्यादातर का जोश भी ठंडा पड़ गया है। बीच-बीच में कोई छोटा मोटा बयान भले जारी कर दिया जाए, लेकिन इसके इतर विधानसभा चुनावों को लेकर पार्टी की कोई तैयारी नहीं है।
बता दें कि अगले पांच महीने के अंदर दिल्ली विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। जिसके लिए आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी पूरे चुनावी मूड में आ चुकी है लेकिन कांग्रेस का कोई अता-पता ही नहीं है। दिल्ली विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा और आम आदमी पार्टी हर दिन बैठकें और वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर चुनावी रणनीति बना कर उसे अंजाम देने में जुट चुके हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी कार्यालय पर सन्नाटा पसरा हुआ है।
पार्टी के नेता, कार्यकर्ता और पदाधिकारी घर बैठे हैं। वह पार्टी के आलाकमान के आदेश का इंतजार कर रहे हैं। कुछ टिकट उम्मीदवार भी यहां तक कह रहे कि आगामी विधान सभा चुनाव में चुनाव लड़ेंगे जरूर, लेकिन विरोधी पार्टी के उम्मीदवारों से हारने के लिए। सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष रहने के दौरान कांग्रेस दिल्ली में विधानसभा चुनाव हारी तो यह स्वयं सोनिया गांधी के लिए बड़ा झटका होगा। वर्तमान स्थिति को देखते हुए लगता है कि दिल्ली कांग्रेस में जल्द हालात सुधरने वाले नहीं हैं।
आम आदमी पार्टी और भाजपा जहां पूरे चुनावी मोड में आ चुकी है और आए दिन एक दूसरे पर हमलावर भी हो रही हैं, वहीं कांग्रेस दूर खड़ी भी दिखाई नहीं पड़ रही है। विरोधी पार्टियां मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर बहस कर रही हैं, जबकि कांग्रेस को एक अदद सेनापति तक नहीं मिल पा रहा है। विडंबना यह कि अध्यक्ष पद की दौड़ में शामिल नेता भी अब तो थक-हारकर बैठ गए हैं कि जो होगा देखा जाएगा। बीच बीच में दिल्ली अध्यक्ष के तौर पर बाहर के नेताओं का नाम भी सामने आ रहा है लेकिन सब अटकलें ही लगा रहे हैं।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक पहले इसलिए निर्णय लटकता रहा कि पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष ही कोई नहीं था। बाद में सोनिया गांधी को पार्टी की कमान सौंप दी गई तो वह भी अभी तक प्रदेश की कमान किसे सौंपे, यह निर्णय नहीं ले पा रही हैं। अब तो विरोधियों की ओर से यहां तक कहा जाने लगा है कि जिस पार्टी को एक योग्य अध्यक्ष तक नहीं मिल पा रहा है, वह मुख्यमंत्री का चेहरा तो ढूंढ़ ही नहीं पाएगी।
यह भी अत्यंत निराशाजनक है कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस के पास प्रदेश में कोई ऐसा सर्वमान्य नेता नहीं है जिसे बिना किसी किंतु-परंतु के दिल्ली की कमान सौंपी जा सके।आश्चर्य की बात यह कि इन हालातों में भी गुटबाजी कम नहीं है।
एक दो नहीं बल्कि गुट भी कई- कई गुट बने हुए हैं। कोई किसी को नहीं चाहता तो कोई किसी को पसंद नहीं करता। बहरहाल, इन हालातों में पार्टी के लिए विधानसभा चुनाव में जीत तो दूर की बात, अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज करा पाने में भी संदेह ही लग रहा है। लोकसभा चुनाव में पार्टी का जो मत प्रतिशत 22.4 तक पहुंचा था, कहीं विधानसभा चुनाव में वापस 15 के आसपास ही न आ जाए।
पीसी चाको (प्रदेश प्रभारी, दिल्ली कांग्रेस) के मुताबिक, कांग्रेस आलाकमान कई अन्य राज्यों को लेकर व्यस्त हैं, इसीलिए दिल्ली के अध्यक्ष का निर्णय होने में समय लग रहा है। हालांकि उनके साथ हर पहलू पर बैठक और चर्चा हो चुकी है। मेरा मानना है कि इस सप्ताह दिल्ली कांग्रेस को नया अध्यक्ष मिल जाना चाहिए।
बता दें लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी संभालने वाली प्रियंका गांधी राजनीतिक तौर पर यूपी में लगातार सक्रिय हैं। केन्द्र की मोदी सरकार हो या उत्तर प्रदेश की योगी सरकार उन पर निशाना साधने का वो कोई मौका नहीं छोड़ रही। इतना ही नहीं कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश की 13 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव के लिए पांच उम्मीदवारों की घोषणा कर दी गयी है ।
वहीं कांग्रेस पार्टी दिनों-दिन कमजोर होते अपने जनाधार को मजबूत बनाने के तहत उत्तर प्रदेश में बड़े फेरबदल करने की तैयारी में जुटी है। सूत्रों से मिल रही खबरों की मानें तो उत्तर प्रदेश के प्रभारी के रूप में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को बनाया जा सकता है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड़ा को उत्तर प्रदेश का पार्टी प्रभारी की घोषणा के बाद वह पूरे राज्य में एक मुहिम के तहत चालू वर्ष में पार्टी एक करोड़ लोगों को सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा गया है। बताया जाता है कि प्रियंका गांधी इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए राज्य के सभी जिलों व क्षेत्रों का दौरा करते हुए किसान समस्याओं के लिए आंदोलन चलाएगी।
इतना हीं नहीं महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में होने जा रहे विधानसभा चुनावों में दलित मतदाताओं को लामबंद करने के मकसद से कांग्रेस विधानसभा स्तर पर अनुसूचित जाति के समन्वयकों की नियुक्ति करने के साथ 'संविधान से स्वाभिमान यात्रा' निकालने की तैयारी कर रही है। बता दें पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पिछले सप्ताह कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ मुलाकात की थी जिसमें उन्हें दलितों के बीच पार्टी के आधार को मजबूत बनाने के लिए तेजी से काम करने का निर्देश दिया गया था।
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