उत्तराखंड: त्रिवेंद्र सिंह रावत का बयान, शिक्षा-स्वास्थ्य और रोजगार की कमी के चलते बागेश्वर से हुआ पलायन
देहरादून। उत्तराखंड में टूरिज्म के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण जिला बागेश्वर पिछले काफी समय से पलायन की मार झेल रहा है। मंगलवार को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत (Trivendra Singh Rawat) ने इस समस्या के निवारण के लिए सचिवालय में ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग (Migration commission of uttarakhand) की बैठक आयोजित की। ये बैठक आयोग में सदस्यों की नियुक्ति के बाद पहली मीटिंग थी। इस मीटिंग में उपाध्यक्ष सहित सभी नामित सदस्य एवं उच्चाधिकारी मौजूद रहे।
इन कारणों से बागेश्वर से हो रहा था पलायन
इस बैठक में मुख्यमंत्री ने बागेश्वर के ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक व आर्थिक विकास को सुदृढ़ करने एवं पलायन को रोकने के लिए आयोग द्वारा की गई सिफारिशों से सम्बन्धित पुस्तिका का विमोचन किया। उन्होंने कहा कि पलायन आयोग द्वारा पलायन के मूल कारणों से संबंधित दी गई प्रारंभिक रिपोर्ट से ही स्पष्ट था कि राज्य से पलायन मुख्यतः शिक्षा व स्वास्थ्य की बेहतर सुविधा एवं रोजगार की कमी की वजह से हुआ है। मुख्यमंत्री ने इस दौरान आयोग के सुझावो पर राज्य सरकार द्वारा नीतिगत निर्णय का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि आयोग को वर्किंग एजेन्सी के रूप में नहीं अपितु राज्य से पलायन रोकने तथा ग्रामीण क्षेत्रों के सामाजिक व आर्थिक विकास के लिए थिंकटेक के रूप में कार्य करना होगा।
पलायन पर आयोग की रिपोर्ट के आंकड़े
मीटिंग में बागेश्वर के ग्रामीण क्षेत्रों पर आधारित रिपोर्ट के सम्बन्ध में डॉ. नेगी ने बताया कि जनगणना वर्ष 2011 के अनुसार, जनपद बागेश्वर की जनसंख्या 2,59,898 है, इनमें 1,24,326 पुरूष तथा 1,35,572 महिलाएं है। पिछले 10 सालों में 346 ग्राम पंचायतों से कुल 23,388 व्यक्तियों द्वार अस्थायी रूप से पलायन किया गया है। पिछले 10 सालों में 195 ग्राम पंचायतों से 5912 व्यक्तियों द्वार पूर्णरूप से स्थायी पलायन किया गया है। आंकड़े दर्शाते है कि जनपद के सभी विकास खण्ड़ो में स्थायी पलायन की तुलना में अस्थायी पलायन अधिक हुआ है।
पलायन आयोग द्वारा सुधार के लिए की गई सिफारिशें
- इस मीटिंग में पलायन आयोग द्वारा बागेश्वर के लिए जो सिफारिशें रखी हैं उनमें प्रमुख रूप से पशुधन की गुणवत्ता में सुधार लाने एवं कृत्रिम गर्भाधान केन्द्रों की संख्या बढ़ाना, दुग्ध उत्पादन एवं दुग्ध उत्पादकों की उपज हेतु पनीर, घी आदि बनाने का प्रशिक्षण दिये जाने, दुग्ध समितियों की सक्रियता बढ़ाने एवं दुग्ध प्रसंस्करण केन्द्र खोले जाने।
- होम स्टे की संख्या बढ़ाये जाने, इको टूरिज्म गतिविधियों को पर्यटक स्थलों के रूप में विकसित किए जाने, पर्यटन से जुड़े कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ाए जाने, क्षमता निर्माण प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं उद्यमिता विकास कार्यक्रम आयोजित किये जाने, मनरेगा में समान अवसर और भागीदारी सुनिश्चित करके महिलाओं के प्रतिनिधित्व को बनाए रखना।
- फसलों को बंदरों और जंगली सूअरों जैसे जानवरों से नुकसान से बचाव हेतु वन विभाग की सहायता से बन्दरबाड़ो/सोलर पावर फैन्सिंग का निर्माण कराया जाना, ग्राम पंचायतों में नर्सरियों बनाये जाना तथा औषधीय एवं सुगंधित पौंधों की कृषि को महत्वपूर्ण आजीविका उत्पादन गतिविधियों में विकसित किए जाना, जनपद में जड़ी-बूटी की खेती एवं कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना, जनपद में चाय के क्षेत्रफल को बढ़ावा दिया जाना, जनपद में बागवानी के क्षेत्रों को बढ़ाए जाना शामिल है।