दोषियों को फांसी की सजा में देरी पर CJI बोबडे की बड़ी टिप्पणी, सिर्फ अभियुक्तों का ही अधिकार नहीं....
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नई दिल्ली- चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने सजायाफ्ता मुजरिमों की ओर से याचिका पर यायिता दायर किए जाने पर बड़ी टिप्पणी की है कि कानून में सिर्फ आरोपियों का ही अधिकार नही है, बल्कि पीड़ितों का भी अधिकार है और सुप्रीम कोर्ट को उस पर भी ध्यान देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने यूपी के अमरोहा की एक दंपति की ओर से दायर एक याचिका के मद्देनजर यह टिप्पणी की है। गौरतलब है कि चीफ जस्टिस ने ये बातें तब कही हैं, जब केंद्र सरकार ने फांसी के मामले में दया याचिका खारिज होने के बाद कानूनी प्रक्रिया जल्द पूरी करने का अनुरोध किया है।
यूपी के अमरोहा की एक जघन्य हत्याकांड की सुनवाई करते हुए देश के चीफ जस्टिस ने कहा है कि कोई भी दोषी अनंत समय तक कानूनी प्रक्रिया को उलझाए नहीं रख सकता। अमरोहा की उस दंपति को 2008 में उस महिला के परिवार वालों की हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनाई गई थी। दोनों ने मिलकर परिवार के जिन सात लोगों की हत्या की थी, उनमें 10 साल का एक बच्चा भी शामिल था, जिसे गला घोंटकर मार डाला गया था। दोनों को हत्या के पांच दिन बाद ही गिरफ्तार कर लिया गया था और 2010 में सजा-ए-मौत सुना दी गई थी। लेकिन, 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने डेथ वारंट इस आधार पर रद्द कर दिया था कि मैजिस्ट्रेट ने जल्दबाजी में वारंट जारी किया, जबकि दोषियों ने अपने सारे वैद्यानिक उपचारों का पूरा इस्तेमाल भी नहीं किया था।
गुरुवार को उस मामले की फिर से सुनवाई शुरू हुई तो जस्टिस बोबडे ने टिप्पणी की कि फांसी की सजा के मामलों में यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि इसका कोई अंत हो। उन्होंने कहा कि फांसी की सजा पाए गुनहगारों को यह नहीं समझ लेना चाहिए कि वह हर समय सजा पर सवाल उठाते रह सकते हैं। उन्होंने कहा कि 'कोई अनंत समय तक लड़ते नहीं रह सकता...'
जस्टिस बोबडे ने कहा कि 'हम ऐसे केस में सिर्फ अभियुक्त के अधिकारों पर जोर नहीं देना चाहते, जिसमें 10 महीने के एक बच्चे समेत 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी। '
चीफ जस्टिस की ये टिप्पणी केंद्र सरकार के उस अनुरोध के एक दिन बाद ही आया है, जिसमें उसने दया याचिकाओं को निपटाने के संबंध में 2014 में दिए गए उसके गाइडलाइंस में बदलाव का अनुरोध किया गया है। अपने अनुरोध में केंद्र ने दया याचिका खारिज होने और फांसी की सजा के तामील होने में 14 दिन के फासले को कम करने का भी अनुरोध किया है। केंद्र ने दलील दी है कि जघन्य अपराधों में अदालतों को पीड़ितों को ध्यान में रखकर फैसला लेना चाहिए, जिससे जनता का न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा न टूटे। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार ने 2012 के दिल्ली के निर्भया कांड के चार दोषियों की ओर से फांसी की सजा में देरी के लिए कानूनी पेचीदगियों का फायदा उठाने के मद्देनजर यह गुजारिश की है।
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