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छत्तीसगढ़ः क्या कोल माइंस का रास्ता साफ़ करने के लिए कम किया गया हाथी रिज़र्व का इलाका

राज्य सरकार के 3827 वर्ग किलोमीटर के दायरे में प्रस्तावित हाथी अभयारण्य में इस इलाक़े में 64 कोल ब्लॉक आ रहे थे. लेकिन अब इनमें से 54 कोल ब्लॉक, नए हाथी अभयारण्य के दायरे से बाहर हैं. अब इन क्षेत्रों में कोयला खनन का रास्ता साफ़ हो गया है.

By BBC News हिन्दी
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छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में नये कोयला खदानों के आवंटन के ख़िलाफ़ आदिवासियों की 300 किलोमीटर तक राजधानी रायपुर की पदयात्रा के बीच, राज्य सरकार ने यहां प्रस्तावित 16 साल साल पुराने लेमरू हाथी रिज़र्व की अधिसूचना जारी कर दी है.

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राज्य सरकार ने 3827 वर्ग किलोमीटर में इस हाथी अभयारण्य को बनाने की बात कही थी और केंद्र सरकार को इस संबंध में पत्र भी लिखा था. लेकिन अपने लिखे से 'यू टर्न' लेते हुए राज्य सरकार ने ताज़ा अधिसूचना में हाथी अभयारण्य के दायरे में केवल 1995.48 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र को ही शामिल किया है.

राज्य सरकार ने 3827 वर्ग किलोमीटर के दायरे में प्रस्तावित हाथी अभयारण्य में इस इलाके के जिन वन क्षेत्रों को शामिल किया था, उसके दायरे में 64 कोल ब्लॉक आ रहे थे.

अब इनमें से 54 कोल ब्लॉक के वन क्षेत्र, नए हाथी अभयारण्य के दायरे से बाहर हैं. अब इन क्षेत्रों में कोयला खनन का रास्ता साफ़ हो गया है.

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भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में

राज्य के वन मंत्री और सरकार के प्रवक्ता मोहम्मद अकबर ने बीबीसी से कहा, "3827 वर्ग किलोमीटर में हाथी रिज़र्व बनाना विचाराधीन था. लेकिन सरकार ने 1995.48 वर्ग किलोमीटर में हाथी रिज़र्व बनाने का फ़ैसला किया. यह भाजपा के पुराने प्रस्ताव से बहुत अधिक है."

हसदेव अरण्य के जिस इलाक़े को लेमरू हाथी रिज़र्व घोषित किया गया है, उससे बाहर अलग-अलग सरकारों को आवंटित अधिकांश कोयला खदानें अब एमडीओ यानी माइन डेवलपर कम ऑपरेटर के आधार पर अडानी बिज़नेस समूह के पास हैं. इन खदानों में खनन और आपूर्ति का जिम्मा अडानी समूह करता है.

इससे पहले 2005 में भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में हसदेव अरण्य के केवल 450 वर्ग किलोमीटर दायरे में हाथी रिज़र्व बनाने का प्रस्ताव भेजा गया था. केंद्र सरकार ने उसे मंज़ूरी भी दे दी थी. लेकिन राज्य की भाजपा सरकार ने 2018 तक इसकी अधिसूचना ही जारी नहीं की.

'छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन' के संयोजक आलोक शुक्ला ने लेमरू हाथी रिज़र्व की अधिसूचना को लेकर कहा, "कोयला खदानों और लोगों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा का हाथी रिज़र्व से लेना-देना नहीं है. फिर भी हमें उम्मीद थी कि हसदेव अरण्य का पूरा इलाक़ा हाथी रिज़र्व में शामिल किया जाएगा. लेकिन एक पूरी पट्टी कोयला खनन के लिए छोड़ दी गई है और देर-सबेर दूसरे कोयला खदानों का रास्ता खुलने की आशंका हमेशा बनी रहेगी."

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कोयला खनन बनाम हाथी रिज़र्व

छत्तीसगढ़ का दक्षिणी हिस्सा पूरी दुनिया में अपने आयरन के लिए प्रसिद्ध है तो उत्तरी हिस्सा कोयले की खदानों के लिए जाना जाता है. एक आकलन के अनुसार छत्तीसगढ़ में 5990.78 करोड़ टन कोयला भंडार है, जो देश के कुल कोयला भंडार का लगभग 18.34 प्रतिशत है.

केंद्र सरकार के दस्तावेज़ों के अनुसार राज्य के 12 कोयला प्रक्षेत्रों में अभी तक 184 कोयला खदान चिन्हांकित हैं. इसके अलावा कुछ नए कोयला प्रक्षेत्र और नये कोयला खदानों के चिन्हांकन की प्रक्रिया भी जारी है.

इन कोयला खदानों का एक हिस्सा घने जंगल वाला है, जो सैकड़ों जंगली हाथियों का स्थाई आवास रहा है. इसमें रहने वाले लोग पिछले दस सालों से, इस घने जंगल वाले हिस्से में कोयला खदानों के आवंटन का विरोध कर रहे हैं.

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'नो गो एरिया'

साल 2011 में केंद्र सरकार ने इस पूरे इलाक़े को 'नो गो एरिया' घोषित किया था. इसके अलावा सरकार के कई पर्यावरण संबंधी अध्ययन में माना गया कि इस इलाक़े में किसी भी परिस्थिति में खनन को मंज़ूरी नहीं दी जा सकती.

लेकिन 2011 में ही कोयले की कमी का हवाला दे कर पहली खदान को मंजूरी दी गई और एक-एक कर कोयला खदानों को मंज़ूरी मिलती चली गई.

हालांकि पहली कोयला खदान पीकेईबी को मंजूरी देते समय ही यह शर्त रखी गई थी कि भविष्य में यहां और कोयला खदानों को मंजूरी नहीं दी जाएगी. लेकिन यह शर्त काग़जों में ही धरी रह गई.

वन और वन्य जीव को हाशिये पर रख कर कोयला खनन में सरकारों की दिलचस्पी को इस बात से समझा जा सकता है कि 2005 में राज्य सरकार ने तीन इलाक़ों को हाथी रिज़र्व घोषित करने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा था.

पाँच अक्टूबर 2007 को केंद्र सरकार ने इन तीन क्षेत्र को हाथी रिज़र्व के रुप में मंज़ूरी भी दे दी. लेकिन राज्य सरकार ने पहले से ही संरक्षित वन क्षेत्र तमोर पिंगला रिज़र्व के 972.16 वर्ग किलोमीटर और बादलखोल सेमरसोत रिज़र्व के 176.14 वर्ग किलोमीटर को हाथी रिज़र्व घोषित कर चुप्पी साध ली. हाथियों का जो प्राकृतिक आवास था, उस लेमरु वन क्षेत्र को हाथी रिज़र्व घोषित करने की केंद्र की मंज़ूरी के बाद भी उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई.

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कांग्रेस सरकार में भी अटकी फ़ाइलें

2018 में जब राज्य में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी तब तक राज्य में हाथियों की समस्या विकराल हो चुकी थी. कोयला खदानों में खनन की शुरुआत के कारण, 500 से अधिक हाथी अपने प्राकृतिक आवास के इलाक़े से बाहर राज्य के अलग-अलग हिस्सों में भटक रहे थे और राज्य के चुनाव में मानव-हाथी द्वंद्व एक बड़ा मुद्दा था.

राज्य में महीनों तक इस पर चर्चा होती रही और 27 अगस्त 2019 को मंत्रिमंडल ने 1995.48 वर्ग किलोमीटर इलाक़े में लेमरू हाथी रिज़र्व बनाने की योजना पर मुहर लगा दी. इसके कुछ ही महीनों बाद राज्य सरकार ने 3827 वर्ग किलोमीटर के दायरे में हाथी रिज़र्व बनाने की योजना पर काम करना शुरु कर दिया. राज्य भर में सरकार के इस क़दम की प्रशंसा हुई.

3827 वर्ग किलोमीटर के दायरे में हाथी रिज़र्व बनाने के लिए ग्रामसभा भी की गई. कोयला खनन वाले क्षेत्र, सरगुजा इलाक़े के नेता और वरिष्ठ मंत्री टीएस सिंहदेव ने हाथी रिज़र्व के मामले पर अपना रुख़ साफ़ करते हुए मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी कि पूरे इलाक़े को यूपीए शासनकाल की तर्ज़ पर किसी भी तरह के खनन को प्रतिबंधित करते हुए, इसे फिर से 'नो गो एरिया' घोषित किया जाए.

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हसदेव अरण्य

राहुल गांधी ने साल 2015 में आदिवासियों को भरोसा दिया था कि आदिवासियों और ग्राम सभा की सहमति के बिना कोयला खनन नहीं होगा और कांग्रेस पार्टी की सरकार उनके साथ है.

लेकिन राज्य सरकार ने हाथी रिज़र्व को अधिसूचित करने या इलाक़े को 'नो गो एरिया' घोषित करने पर कोई फ़ैसला नहीं लिया. इस महीने हसदेव अरण्य के आदिवासियों ने परसा और मदनपुर समेत दूसरे कोयला खदानों को मंज़ूरी दिए जाने के ख़िलाफ़ जब मदनपुर से राजधानी रायपुर तक की 300 किलोमीटर की यात्रा की तैयारी दो अक्टूबर से शुरू की, तब एक बार फिर राहुल गांधी के पुराने वादों की चर्चा शुरू हुई.

10 दिनों तक चली आदिवासियों की यात्रा के बीच ही सात अक्टूबर को राज्य सरकार ने 1995.48 वर्ग किलोमीटर इलाक़े में लेमरु हाथी रिज़र्व बनाये जाने की अधिसूचना जारी कर दी.

हसदेव अरण्य के साल्ही गांव के रहने वाले रामलाल सिंह करियाम का कहना है कि उनके इलाक़े में राज्य सरकार ने दो अक्टूबर 2020 को हाथी रिज़र्व बनाने के लिए ग्राम सभा का आयोजन किया था और ग्राम सभा ने हाथी रिज़र्व बनाने का प्रस्ताव पारित किया था. इसके बाद भी उनके गांव को इस हाथी रिज़र्व में शामिल नहीं किया गया है.

रामलाल कहते हैं, "हमारी माँग बहुत साफ़ है कि इस इलाक़े में पहले से चालू परसा इस्ट केते बासन कोयला खदान के अलावा किसी भी नए कोयला खदान को मंज़ूरी नहीं मिलनी चाहिए. हाथी रिज़र्व बनाना अलग मुद्दा है और कोयला खदान अलग मुद्दा है."

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क़ानूनी विवाद

संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ और राज्य के पूर्व महाधिवक्ता कनक तिवारी इस अधिसूचना की संवैधानिकता पर ही सवाल खड़े कर रहे हैं. उनका कहना है कि इस अधिसूचना का कोई मतलब नहीं है.

कनक तिवारी कहते हैं, "राजाओं-महाराजाओं के ज़माने में ऐसा संभव था कि राजा को रात को कोई सपना आया और कोई भी आदेश जारी कर दिया गया. संवैधानिक व्यवस्था में ऐसा नहीं है. किसी अधिसूचना में आपको संबंधित क़ानून का उल्लेख करना ही होगा कि किस क़ानून के तहत आप इस अधिसूचना को जारी कर रहे हैं. ऐसी किसी अधिसूचना का कोई अर्थ ही नहीं है, जिसमें संविधान की धारा, अधिनियम, नियम या उपनियम का उल्लेख न हो."

कनक तिवारी का कहना है कि बिना धारा, अधिनियम, नियम या उपनियम के हाथी रिज़र्व घोषित करने से भविष्य में क़ानूनी भ्रम की स्थिति पैदा होगी.

वन्यजीव जीव बोर्ड की सदस्य मीतू गुप्ता का कहना है कि हाथी रिज़र्व की कोई क़ानूनी मान्यता नहीं है. टाइगर रिज़र्व को ही क़ानूनी मान्यता मिलने में कई दशक लग गए और 2006 में कहीं जा कर मान्यता मिली.

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मीतू गुप्ता कहती हैं, "राज्य सरकार निजी या सामुदायिक भूमि को, जो राष्ट्रीय उपवन, अभयारण्य अथवा किसी संरक्षण आरक्षिति में न हो, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 36 के अंतर्गत संरक्षित क्षेत्र बना सकती है या सामुदायिक आरक्षिति की घोषणा कर सकती है. इसका अपना एक क़ानूनी महत्व है. इससे हाथियों का प्राकृतिक रहवास सुरक्षित रहेगा. ताज़ा अधिसूचना इसमें कोई मदद नहीं करता."

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