लौट आया चीता: नौ गोलियां खाने वाले CRPF कमांडेंट चेतन चीता ड्यूटी पर लौटे
पिछले वर्ष जम्मू कश्मीर के बारामूला स्थित हाजिन में लश्कर के आतंकियों से बहादुरी से लड़ने और नौ गोलियां खाने वाले सीआरपीएफ कमांडेंट चेतन चीता आखिरकार ड्यूटी पर वापस लौट आए हैं। चीता ने नौ गोलियां खाने के बाद भी आतंकियों से मुकाबला किया था और वह करीब डेढ़ माह तक कोमा में रहे थे।
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नई दिल्ली। पिछले वर्ष जम्मू कश्मीर के बारामूला स्थित हाजिन में लश्कर के आतंकियों से बहादुरी से लड़ने और नौ गोलियां खाने वाले सीआरपीएफ कमांडेंट चेतन चीता आखिरकार ड्यूटी पर वापस लौट आए हैं। चीता ने नौ गोलियां खाने के बाद भी आतंकियों से मुकाबला किया था और वह करीब डेढ़ माह तक कोमा में रहे थे। पिछले वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें बहादुरी के लिए कीर्ति चक्र से भी सम्मानित किया गया था। चीता को फिलहाल सीआरपीएफ डायरेक्टरेट में तैनाती दी गई है और वह अपनी पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं।अधिकारियों के मुताबिक चीता अभी पूरी तरह से फिट नहीं हैं और ऐसे में उन्हें फ्रंट पर पोस्टिंग नहीं दी जा सकती है। फिलहाल सीआरपीएफ उन्हें आॅफिस से जुड़ा काम देने के बारे में सोच रही है।
फिलहाल फ्रंट पर पोस्टिंग नहीं
अधिकारियों के मुताबिक चीता अभी पूरी तरह से फिट नहीं हैं और ऐसे में उन्हें फ्रंट पर पोस्टिंग नहीं दी जा सकती है। फिलहाल सीआरपीएफ उन्हें आॅफिस से जुड़ा काम देने के बारे में सोच रही है। इंग्लिश डेली टाइम्स आॅफ इंडिया से बात करते हुए उनकी पत्नी उमा सिंह ने बताया कि चीता की हेल्थ से जुड़ी कई समस्याएं अभी बरकरार हैं। इन समस्याओं को खत्म होने में अभी समय लगेगा। उमा ने बताया कि चीता ड्यूटी पर वापस लौटने को लेकर काफी खुश हैं। साथ ही उन्हें इस बात की भी पूरी उम्मीद है कि उन्हें एक बार फिर से फ्रंट पर पोस्टिंग दी जाएगी। वह इस बात को लेकर काफी उत्तसाहित भी हैं।
युवाओं की प्रेरणा बन गए हैं चीता
सीआरपीएफ आॅफिसर्स की मानें तो आज के युवाओं को चीता से सीखना चाहिए। उनके जज्बे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लंबे समय तक भर्ती रहने के बाद पिछले वर्ष एम्स से डिस्चार्ज होने के बाद उन्होंने कहा था कि वे कोबरा बटालियन में शामिल होना चाहते हैं।आपको बता दें कि सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन छत्तीसगढ़ और झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे आॅपरेशंस का अहम हिस्सा होती है। अधिकारियों ने कहा कि घायल अधिकारी को पहले की तरह सामान्य होने में अब भी एक से दो साल लग सकता है, लेकिन देश सेवा का उनका जज्बा युवाओं को प्रभावित करने वाला है। अर्धसैनिक बलों और सेना में भर्ती होने की इच्छा रखने वाले युवाओं को उनसे सीखना चाहिए।
क्या हुआ था 14 फरवरी को
बीते साल 14 फरवरी को कश्मीर के बांदीपोरा में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में चीता बुरी तरह घायल हो गए थे, लेकिन उन्होंने जिंदगी से हार नहीं मानी। सीआरपीएफ की 45वीं बटालियन में कमांडिंग ऑफिसर के तौर पर तैनात चेतन चीता को 9 गोलियां लगी थीं। इसके चलते उनके दिमाग, दाईं आंख, पेट, दोनों बांहों, बाएं हाथ, हिप्स पर चोट लगी थी। करीब डेढ़ महीने तक कोमा में रहने के बाद उन्हें होश आया था। 9 गोलियां लगने और कोमा में रहने के बाद उनकी इस तरह से वापसी किसी करिश्मे से कम नहीं कही जा सकती।
अकेले ही आतंकियों से भिड़े चीता
ऑपरेशन में जहां आर्मी ने सामने से मोर्चा संभाला तो चेतन चीता जो कि सीआरपीएफ के पैराट्रूपर हैं अकेले ही आतंकियों से भिड़ गए। उन्होंने 16 रांउड गोलिया फायर कीं तो आतंकियों ने 30 राउंड गोलियां चलाई। जहां एक आतंकी भाग गया तो दूसरा मारा गया। यह- दूसरा आतंकी लश्कर-ए-तैयबा का कमांडर अबु मुसाब था। आतंकियों के पास काफी खतरनाक हथियार थे जिसमें एके-47 के अलावा यूबीजीएल यानी अंडर बैरेल ग्रेनेड लॉन्चर्स भी थे।