चंद्रयान-2: अब कभी नहीं उठेगा लैंडर विक्रम....चांद की सतह पर नहीं उतरा, इस वजह से क्रैश हो गया
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नई दिल्ली- चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर के सक्रिय होने की सारी उम्मीदों पर अब पानी फिर चुका है। अबतक इस बात के कयास लगाए जा रहे थे कि पिछले सात सितंबर को जब लैंडर विक्रम से इसरो के अर्थ स्टेशन का संपर्क टूटा उसके बाद वह चांद की सतह तक कैसे उतरा? वह अपने तय कार्यक्रम के मुताबिक चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंड हुआ या उसकी हार्ड लैंडिंग हुई? लेकिन, ताजा विश्लेषणों से यह बात पूरी तरह से साफ हो चुकी है कि उस दिन संपर्क भंग होने के बाद विक्रम लैंडर अनियंत्रित होकर चांद की सतह पर क्रैश हो गया था। सबसे गंभीर बात ये है कि चांद पर गिरते वक्त उसकी स्पीड इतनी ज्यादा हो गई थी कि उसके सारे उपकरणों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचने की आशंका है। यही कारण है कि पिछले दो हफ्तों से उसके साथ संपर्क की सारी कोशिशें नाकाम हो गईं। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि चंद्रयान-2 की लैंडिंग के प्रोग्राम में क्या खामी रह गई, जिसके चलते वह इतिहास रचते-रचते हासदे का शिकार हो गया।
चांद पर उतरा नहीं, क्रैश हो गया विक्रम
पिछले दो हफ्तों से पूरा देश और दुनिया भर के लोग लैंडर विक्रम को लेकर किसी अच्छी खबर मिलने की आस लगाए बैठे थे। लेकिन, अब यह बात साफ हो चुकी है कि हम सबकी उम्मीदों और इसरो के वैज्ञानिकों की कोशिशों पर पानी फिर चुका है। टीओआई ने इसरो के कुछ शीर्ष वैज्ञानिकों के हवाले से बताया है कि 7 सितंबर को लैंडर विक्रम चांद की सतह पर उतरा नहीं, बल्कि वह क्रैश होकर गिर पड़ा था। वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि लैंडर के ऑटोमिटेक लैंडिंग प्रोग्राम में खामी की वजह से वह दुर्घटना का शिकार हो गया। इसरो से जुड़े लोगों ने बताया है कि 1,471 किलोग्राम का लैंडर विक्रम और उसमें मौजूद 27 किलोग्राम का रोवर प्रज्ञान चांद की सतह से 200 किलोमीटर से भी ज्यादा स्पीड से टकराया, जिसके बाद उसमें मौजूद उपकरणों के बचने की कोई उम्मीद नहीं रह गई।
क्रैश होने के चलते उपकरणों को बहुत ज्यादा नुकसान
क्रैश होने के बाद चांद की सतह पर गिरे लैंडर विक्रम की तस्वीर देखने वाले एक वैज्ञानिक ने कहा है कि वह या तो उल्टा पड़ा हुआ था या झुका हुआ था, लेकिन उसे पहचाना जा सकता था। विक्रम की तस्वीर का विश्लेषण करने वाले वैज्ञानिक ने कहा कि, "मैंने जो देखा तो मुझे लगा कि वह विक्रम का साया है।.......निश्चित तौर पर वह अपने पैरों पर नहीं खड़ा था। मैं उसके चार पैरों में से कम से कम दो को उभरा हुआ देख सकता था।" मिशन से जुड़े एक वैज्ञानिक पहले ही बता चुके हैं कि उसपर से नियंत्रण तब टूटा, जब वह चांद की सतह से महज 330 मीटर ऊपर था। वैज्ञानिकों के मुताबिक लैंडर को सॉफ्ट लैंडिंग कराने के लिए उसमें लगे थ्रस्टर्स का इस्तेमाल अंतिम समय में ब्रेक के लिए होना था, लेकिन उसने उसे रोकने की जगह उसके ऐक्सीलरेटर का काम किया, जिसके चलते उसकी रफ्तार 200 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा तेज हो गई, जबकि उस समय उसकी गति शून्य के आसपास रहनी थी। वैज्ञानिक के मुताबिक 330 मीटर की जिस ऊंचाई पर संपर्क टूटा अगर तब भी थ्रस्टर ने अपना काम किया होता और स्पीड को 10 मीटर प्रति सेकेंड (या 36 किलोमीटर प्रति घंटे) तक ले आता तो 'वह अपने पैरों के बल पर क्रैश होता और उसमें लगे 'शूज' शॉक ऑब्जर्बर का काम करते।......लेकिन जिस तरह से विक्रम से कोई सिग्नल नहीं मिल रहा है तो उसमें मौजूद कंप्यूटर और बाकी सिस्टम निश्चित रूप से खराब हो चुके हैं।'
क्यों क्रैश हुआ लैंडर विक्रम?
दो वैज्ञानिकों ने कहा है कि बेंगलरु के यूआर राव सैटेलाइट सेंटर की जिस टीम ने लैंडिंग प्रक्रिया की जो प्रोग्रामिंग की थी, हो सकता है कि उसी में गड़बड़ी रह गई हो। एक वैज्ञानिक ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि, "टीमें प्रोग्राम को देख रही थीं। हमें यह देखना होगा कि क्या इस्तेमाल से पहले उसे ठीक से जांचा-परखा गया था।" बता दें कि लैंडर के उतरने की अंतिम 15 मिनट की प्रक्रिया के दौरान ऊंचाई, गति और उसके वेग को नियंत्रित करने के लिए कई तरह की सॉफ्टवेयर प्रोग्रामिंग की गई थी।
सदा के लिए सो गया विक्रम
बता दें कि वैसे भी विक्रम को फिर से सक्रिय करने की सारी उम्मीदें भी शुक्रवार यानि 20 सितंबर तक ही बची थी। क्योंकि, यह चांद पर लूनर डे (धरती के 14 दिन के बराबर) का आखिरी दिन था। लैंडर और रोवर को इसी 7 सितंबर से 20 सितंबर तक (लूनर डे) के दौरान सक्रिय रहने के लिए डिजाइन किया गया था। लूनर नाइट (धरती की 14 रातों के बराबर) शुरू होने के बाद वैसे भी लैंडर और रोवर पर लगे सारे उपकरण बेकार हो जाने थे। क्योंकि, लूनर नाइट के दौरान चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह का तापमान माइनस 183 से माइनस 200 डिग्री तक गिर सकता है। हालांकि, यहां यह समझ लेना जरूरी है कि सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया चंद्रमा मिशन के अगुवा देशों के लिए भी हमेशा से चुनौती भरा रहा है। अमेरिका, रूस और चीन के लैंडर्स को भी ऐसे संकटों से गुजरना पड़ा है। तेजी से गुरुत्वाकर्षण के बदलते केंद्रों, अत्यधिक तेज गति के साथ लगभर शून्य वेग से टच-डाउन की पूरी प्रक्रिया बहुत ही कठिन रहती है।