CDS बिपिन रावत: जब अपनी सैलरी से हर महीने 50,000 रुपए दान देने का किया ऐलान
नई दिल्ली, 8 दिसंबर: भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत का हेलीकॉप्टर बुधवार को तमिलनाडु के नीलगिरी की पहाड़ियों के जंगलों में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हेलीकॉप्टर पर जनरल रावत और उनके परिवार के कुछ सदस्यों के अलावा सेना के लोग सवार थे। हादसा बहुत ही मुश्किल इलाके में हुआ था। वायुसेना ने दुर्घटना की जांच के आदेश दिए हैं। जनरल रावत का भारतीय सेना से चार दशकों से भी ज्यादा का जुड़ाव रहा है। काउंटरइंसर्जेंसी में उनके बेहतरीन अनुभव को देखते हुए ही सरकार ने उन्हें पहला सीडीएस नियुक्त किया था। जब देश में कोरोना महामारी की शुरुआत ही हुई थी, तभी जनरल रावत उन चुनिंदा लोगों में शामिल हुए, जिन्होंने देशवासियों की मदद के लिए अपनी सैलरी से योगदान देने का फैसला किया था।
कोरोना से लड़ने के लिए हर महीने दिए 50,000 रुपए
कोरोना की पहली लहर की बात है। दुनिया को कुछ भी अंदाजा नहीं था कि यह जानलेवा वायरस आगे क्या दिन दिखाने वाला है। उस समय कोविड-19 रिलीफ के लिए पीएम केयर्स फंड बनाया गया था। जो भी चाहे देश की जनता को राहत देने के लिए इसमें अपनी स्वेच्छा से दान दे सकता था। देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत उन पहले लोगों में से थे, जिन्होंने सबसे शुरुआत में इस फंड के लिए अपनी ओर से योगदान देना शुरू कर दिया था। जनरल रावत हर महीने अपनी सैलरी से पीएम केयर्स फंड में 50,000 रुपए बतौर दान देने लगे। पीएम मोदी ने पिछले साल मार्च में कोरोना वायरस महामारी से निपटने के लिए इस फंड की स्थापना की थी।
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एक साल में 6 लाख रुपए दान में दिए
पिछले साल मई में सेना के अधिकारियों ने जनरल रावत के फैसले के बारे में बताया कि उन्होंने अप्रैल, 2020 से ही यह योगदान देना शुरू कर दिया है और 2021 के मार्च तक यानी पूरे एक साल वह इसमें योगदान देंगे। सेना के अधिकारियों ने तब कहा था, 'मासिक योगदान उनकी कुल सैलरी का 20 प्रतिशत है। कुल मिलाकर वह पीएम-केयर्स फंड में 6 लाख रुपए दान करेंगे।' यानी उस वक्त जनरल रावत की कुल सैलरी 2.5 लाख रुपए थी और उनमें से एक बड़ा हिस्सा, वे कोविड के खिलाफ युद्ध के लिए देते रहे। इससे पहले मार्च, 2020 में ही उन्होंने रक्षा मंत्रालय और तीनों सेनाओं के सामूहिक फैसले के तहत अपनी एक दिन की सैलरी प्राइम मिनिस्टर्स सिटिजन असिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमरजेंसी सिचुएशन फंड-पीएम केयर्स में दान किया था।
देश के पहले सीडीएस बने जनरल बिपिन रावत
सेना प्रमुख के पद से जनरल बिपिन रावत के रिटायर होने से ठीक पहले ही केंद्र सरकार ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद बनाया था और 30 दिसंबर, 2019 को उनकी पहले सीडीएस के तौर पर नियुक्ति की घोषणा कर दी गई और यह आदेश 31 दिसंबर, 2019 से प्रभावी हो गया। यानी पहली बार देश के तीनों सेनाओं के चीफ के पद पर रहते हुए उनके इसी महीने साल के आखिरी दिन दो साल पूरे होने हैं। इससे पहले सरकार ने सेना नियमों में बदलाव करते हुए इस पद के लिए सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष से बढ़ाकर 65 साल कर दिया था, जिससे जनरल रावत की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया था।
पिता की बटालियन से ही सेना में हुए दाखिल
सीडीएस का पद मिलिट्री से संबंधित मामलों में सरकार के लिए वन-प्वाइंट एडवाइजर के रूप में है, जिसका मुख्य लक्ष्य तीनों सेनाओं - थल सेना, नौसेना और वायु सेना को एकीकृत करना है। सीडीएस को स्थाई चीफ ऑफ स्टाफ कमिटी (सीओएससी) भी बनाया गया है। जनरल रावत ने 17 दिसंबर, 2016 को तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग से 27वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ का पदभार लिया था। वे नेशनल डिफेंस अकैडमी (एनडीए) और इंडियन मिलिट्री अकैडमी (आएमए) के पूर्व छात्र रहे हैं और 1978 के दिसंबर में 11 गोरखा राइफल्स के उसी पांचवीं बटालियम में शामिल हुए थे, जिसमें उनके पिता भी योगदान दे चुके थे।
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कौन-कौन अहम जिम्मेदारियां संभाल चुके थे बिपिन रावत
देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ काउंटरइंसर्जेंसी वॉरफेयर के काफी अनुभवी जनरल थे और भारत के उत्तरी और पूर्वी कमांड समेत कुछ सबसे मुश्किल इलाकों में अपनी सेवाएं दे चुके थे। सीडीएस बनने से पहले अपनी चार दशकों की सेवा में जनरल रावत थल सेना प्रमुख के अलावा ब्रिगेड कमांडर, जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ-साउदर्न कमांड,मिलिट्री सेक्रेटरी ब्रांच में जनरल स्टाफ ऑफिसर ग्रेड 2 और जूनियर कमांडिंग विंग में सीनियर इंस्ट्रक्टर की भूमिका निभा चुके थे। वे यूनाइटेड नेशनल पीसकीपिंग फोर्स में भी काम कर चुके थे और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में मल्टीनेशनल ब्रिगेड को कमांड कर चुके थे। गोरखा ब्रिगेड से चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ बनने वाले चौथे ऑफिसर होने से पहले रावत वाइस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ का पद भी संभाल चुके थ।