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BBC SPECIAL: 'बूचड़खानों के ख़िलाफ़ अभियान मुसलमानों को कारोबार से तोड़ने की साज़िश'

यूपी में सरकारी कार्रवाई के फ़ैसले के बाद मुसलमानों को पेश आ रही दिक्कतों पर सिरीज़ की दूसरी कड़ी.

By ज़ुबैर अहमद - बीबीसी संवाददाता, उत्तर प्रदेश से लौट कर
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कुरैशी
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कुरैशी

उत्तर प्रदेश के रामपुर की प्रसिद्ध रज़ा लाइब्रेरी के ठीक पीछे वाले बाज़ार में हर चीज़ बिकती है. वहां मीट की दुकानें भी हैं लेकिन इन दिनों बंद पड़ी हैं.

मीट की इन दुकानों में से एक के मालिक मुहम्मद कुरैशी का आरोप है कि उत्तर प्रदेश में बूचड़खानों के ख़िलाफ़ जारी अभियान मुस्लिम विरोधी है.

वो कहते हैं, "मुसलमानों के काम पर ही हाथ डाला जा रहा है. वो मुसलमान को कारोबार से तोड़ना चाह रहे हैं. कारोबार जब टूट जाएगा, उसके पास पैसा नहीं होगा, तो ज़ाहिर है वो ग़ुलाम बन कर रहेगा."

क्या यूपी का मुसलमान निशाने पर है?

राज्य सरकार कहती है कि ये कार्रवाई किसी समुदाय के ख़िलाफ़ नहीं है लेकिन सरकार की बातों पर मुस्लिम समुदाय को भरोसा नहीं है.

रामपुर में बीजेपी दफ्तर
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रामपुर में बीजेपी दफ्तर

कुरैशी इस तर्क को नहीं मानते. वो कहते हैं, "पहले गोश्त (मीट) का काम बंद किया और दो दिन पहले सभी आरा मशीनें तोड़ दीं. वो भी मुसलमानों की थीं."

शहर के बूचड़खाने बंद हैं. मीट खाने वाले परेशान हैं. रेस्त्रां और घरों में मीट उपलब्ध नहीं है.

एक रेस्त्रां के मालिक ने कहा, "रामपुर मुस्लिम बहुल शहर है. यहाँ मुस्लिम और हिन्दू दोनों गोश्त के शौकीन हैं लेकिन अब सब्जियां खाई जा रही हैं"

बकरे, मुर्गियों और मछलियों के मीट की दुकानों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है, लेकिन डर के मारे दुकानदार अपने मीट शॉप नहीं खोल रहे हैं. ख़बरें ऐसी भी हैं कि कुछ पुलिस वाले उत्तेजित होकर सभी तरह की मीट दुकानों को बंद करवा रहे हैं.

राज्य सरकार बार-बार कह रही है कि केवल अवैध बूचड़खाने बंद कराए जा रहे हैं. लेकिन रामपुर में क़ुरैशी समाज के अध्यक्ष ज़ाहिद क़ुरैशी कहते हैं कि अवैध बूचड़खाने होते ही नहीं हैं.

गांव का एक मुसलमान
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गांव का एक मुसलमान

उनके अनुसार लोगों को बूचड़खानों के बारे में जानकारी नहीं है.

वो कहते हैं बूचड़खाने दो तरह के होते हैं. एक पारंपरिक बूचड़खाने जो नगरनिगम या नगरपालिका के होते हैं और दूसरे आधुनिक मशीनों वाले बूचड़खाने जो सभी निजी हाथों में हैं और जहाँ का मीट केवल निर्यात के लिए होता है.

वो आगे कहते हैं, "मेरा कहना ये है कि यूपी में किसी प्राइवेट आदमी का कोई बूचड़खाना नहीं है. सारे बूचड़खाने नगर निगम और नगर पालिकाओं के हैं."

आधुनिक निजी बूचड़खानों के लिये लाइसेंस लेना पड़ता है. इस उद्योग में मुस्लिम और हिन्दू भागेदार हैं

समाजवादी पार्टी की पिछली सरकार ने सालों से नए लाइसेंस जारी नहीं किए थे और प्रचलित लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं किया गया था. इसीलिए राज्य सरकार ने इस संकट की ज़िम्मेदारी समाजवादी पार्टी की सरकार पर थोपी है.

मीट के व्यापर से जुड़े क़ुरैशी बिरादरी के एक युवा नेता तारिक़ हुसैन क़ुरैशी मानते हैं कि मुसलमानों को टारगेट किया जा रहा है. लेकिन वो समाजवादी पार्टी की पिछली सरकार को इसका अधिक ज़िम्मेदार मानते हैं.

वो कहते हैं, "ये समाजवादी पार्टी की ही मिलीभगत है. इसकी सरकार ने 2014 में जितने भी नगरपालिका वाले बूचड़खाने थे उनके लाइसेंस रद्द कर दिए. मुस्लिम क़ौम को और ख़ास तौर से क़ुरैशी बिरादरी को समाजवादी पार्टी ने टारगेट किया है."

दूसरी तरफ 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने मीट शॉप और बूचड़खानों के लिए कई गाइडलाइन्स जारी की थीं. इनके बारे में कुरैशी समाज से लेकर राज्य सरकार किसी को मालूम नहीं था. ज़ाहिद कुरैशी के अनुसार पिछली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को दबा दिया था.

अदालत के आदेश बूचड़खानों में सुधार लाने से संबंधित थे जिन्हें अब तक लागू नहीं किया गया है. अब योगी आदित्यनाथ सरकार ने अदालत के आदेश का पालन करना शुरू किया है. राज्य सरकार नाराज़ कुरैशी समाज से बातचीत भी कर रही है.

लेकिन मीट व्यापर से जुड़े क़ुरैशी समाज के अनुसार सरकार ने लाइसेंस वाले आधुनिक बूचड़खाने भी बंद कर दिए हैं.

दूसरी तरफ कुरैशी बिरादरी पर ये इल्ज़ाम लगाया जा रहा है कि वो अवैध तरीके से भैंसे अपनी दुकानों के पीछे चुपके से हलाल करके मीट बेचते हैं.

भारतीय जनता पार्टी के कुछ लोगों ने कहा कि घरों के अंदर भैंसे हलाल किए जा रहे हैं.

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता शिव बहादुर सक्सेना कहते हैं, "यहाँ तो हर गली में बूचड़खाने हुआ करते थे. यहाँ गलियों में लोग जानवर काट दिया करते थे. यहाँ बकरीद पर गाय के गले में माला डाल कर सड़क पर घुमाकर प्रदर्शन किया करते थे कि इसे हम काटने ले जा रहे हैं और गली में ले जा कर काट दिया करते थे."

सक्सेना ने मुसलमानों के इस दावे को ग़लत बताया कि सरकार उन्हें ग़रीब करना चाहती है. वो कहते हैं, "सरकार जब क़ानून बनाती है तो मुसलमान और हिन्दू दोनों के लिए बनाती है."

कई मुस्लिम नेताओं की राय में मीट के नाम पर राजनीति की जा रही है. कुछ की सलाह ये है कि मुसलमान कुछ समय के लिए मीट खाना और बेचना बंद कर दें.

पूर्व सांसद शफ़ीक़ूर रहमान बर्क़ कहते हैं, "मैं तो मुसलमानों से ये कहता हूँ कि तुम गोश्त खरीदना, बेचना, काटना और खाना बंद कर दो. जब तक तुम्हारा मसला हल नहीं होता तुम इज़्ज़त से दूसरा कोई काम करो. ये मसला उनको (सरकार ) ख़ुद हल करना पड़ेगा."

लेकिन कुरैशी समाज के ज़ाहिद कुरैशी के अनुसार सलाह देना आसान है. उनके समाज में हज़ारों की संख्या में लोग मीट के कारोबार से जुड़े हैं जिनके पास "खाने के पैसे नहीं नहीं हैं"

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल में क़ुरैशी समाज और बूचड़खानों के मालिकों से मुलाक़ात की है और उन्हें आश्वासन दिया है कि उनके मुद्दे पर गहराई से सोच विचार किया जाएगा.

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English summary
Campaign against slaughterhouses conspiracy to break muslims
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