एक लाइन का इस्तीफा ना लिखकर मायावती ने की बड़ी गलती, होगा नामंजूर
एक लाइन का इस्तीफा ना लिखकर मायावती ने की बड़ी गलती होगा नामंजूर
नई दिल्ली। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया और राज्यसभा सांसद मायावती ने आज राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। मायावती ने तीन पेज का इस्तीफा भेज सभापति को बताया है कि वो क्यों इस्तीफा दे रही हैं। मायावती के तीन पेज के इस्तीफे को लेकर कहा जा रहा है कि ये कानूनन ठीक नहीं है और ये मंजूर नहीं होगा।
संसद की सदस्यता से इस्तीफा देने के नियम के अनुसार, संसद के दोनों सदनों का कोई भी सदस्य जब अपनी सदस्यता से इस्तीफा देता है तो उसे एक लाइन में इस्तीफा लिखकर सभापति या स्पीकर को सौंपना होता है लेकिन मायावती का इस्तीफा तीन पेज का है। मायावती ने इस्तीफा का कारण भी सभापति को बताया है जबकि संसद सदस्य इस्तीफा देते हुए इस्तीफा देने की वजह नहीं लिखनी होती।
अमरिंदर
सिंह
का
इस्तीफा
भी
हुआ
था
नामंजूर
बीते
साल
सुप्रीम
कोर्ट
के
सतलुज
यमुना
लिंक
पर
निर्माण
कार्य
जारी
रखने
के
फैसले
से
नाराज
होकर
उस
समय
अमृतसर
से
कांग्रेस
सांसद
कैप्टन
अमरिंदर
सिंह
ने
लोकसभा
स्पीकर
को
अपना
इस्तीफा
भेज
दिया
था,
जिसमें
उन्होंने
इस्तीफे
का
कारण
भी
लिखा
था।
जिस
वजह
से
इस्तीफा
मंजूर
नहीं
किया
गया
था
और
उन्होंने
दोबारा
एक
लाइन
का
इस्तीफा
भेजा
था।
आवाज
को
दबाने
की
वजह
से
दिया
इस्तीफा:
मायावती
बसपा
सुप्रीमो
मायावती
ने
मंगलवार
को
राज्यसभा
में
उपसभापति
और
सत्ता
पक्ष
के
सदस्यों
से
बहस
के
बाद
खुद
को
बोलने
ना
दिए
जाने
का
आरोप
लगाते
हुए
सदन
से
इस्तीफा
दे
दिया।
इस्तीफे
के
बाद
मीडिया
से
बात
करते
हुए
मायावती
ने
कहा
कि
मैं
गरीब,
किसान,
अल्पसंख्यक
और
दलितों
की
बात
संसद
में
रखना
चाहती
हूं
और
अगर
मैं
इन
वर्गों
की
बात
नहीं
रख
सकती,
मुझे
रोका
जाएगा
तो
फिर
मेरा
सदन
में
रहने
का
क्या
फायदा
है।
मायावती ने कहा कि वो दलित समाज से आती हैं, ऐसे में अपने समाज के मुद्दों को सदन में रखना उनका फर्ज है। अगर वो ये नहीं कर सकतीं तो फिर वो सदन में क्या करेंगी। उन्होंने कहा कि सहारनपुर में दलितों का जिस तरह से उत्पीड़न हुआ, वो उस बारे में सदन को बताना चाहती थीं लेकिन उन्हें इजाजत नहीं दी गई। बसपा सुप्रीमो ने कहा कि सत्ता पक्ष के सदस्य और मंत्रियों ने उनके बोलने के दौरान शोर-शराबा कर उनकी आवाज को दबाया।
बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने दिया राज्यसभा से इस्तीफा, बोलने से रोके जाने पर थी खफा