गुजरात-हिमाचल में बीजेपी की जीत: बिना लहर भी जीत सकते हैं मोदी
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नई दिल्ली। बीजेपी ने छठी बार गुजरात में अपना झंडा गाड़ दिया है और इसका श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी। पीएम मोदी ने चुनाव से दो सप्ताह पहले जिस तरह से धुंधाधार चुनावी रैलियां कर कांग्रेस को जमकर कोसा, उससे एक बात तो तय है कि वे इस पूरे चुनाव में 'मैन ऑफ द मूवमेंट' बन गए। गुजरात के चुनाव में लोगों की भीड़ अगर कहीं दिखाई दी तो वो सिर्फ मोदी की जनसभाओं में। चुनाव में रैलियां तो सीएम विजय रुपानी और राज्य बीजेपी अध्यक्ष जीतू वाघानी ने भी की थी, लेकिन राज्य की जनता उन्हें उस तरह से सुनने नहीं आई, जिस तरह मोदी को सुनने आई थी।
मोदी के साथ खड़ी है अभी भी जनता
इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस बार गुजरात जीतने में बीजेपी को अपना पूरा जोर लगाना पड़ा। जीएसटी, नोटबंदी और किसान मुद्दों से लेकर एंटी इनकम्बैंसी के फैक्टर को लेकर विपक्ष ने बीजेपी और मोदी को जमकर घेरने को कोशिश की। कांग्रेस ने गुजरात में मोदी के खिलाफ हवा बनाने की भी कोशिश की और काफी हद तक इसमें कामयाब भी रही, लेकिन पीएम मोदी ने अपनी आखिरी सप्ताह की रैलियों में पूरा पासा ही पलट डाला।
बिना लहर बीजेपी की जीत
बीजेपी में वाजपेयी और आडवाणी का दौर बहुत पहले ही खत्म हो चुका है। यह 'मोदी दौर' चल रहा है, जहां उनको चुनौति देने वाला विपक्ष में तो दूर, फिलहाल बीजेपी में भी उनके मुकाबले कोई नहीं दिखाई दे रहा है। जिस तरह से मोदी पूरी ताकत के साथ सत्ता में आए और उनके आने के बाद बीजेपी ने देश के राज्यों में अपनी जड़ें जमानी शुरू की। आज के नतीजों से यह तय हो गया है कि मोदी का मैजिक देश में अभी जारी रहेगा, भले ही बीजेपी के पक्ष में लहर क्यों ना हो।
मोदी को चुनौति देना ही मुश्किल
कांग्रेस ने पहली बार गुजरात में बीजेपी को हराने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। इसके अलावा जिग्नेश मेवाणी ने मोदी के खिलाफ गुजरात के दलितों को एकजूट करने की कोशिश की तो वहीं, हार्दिक पटेल ने पाटिदारों को और अल्पेश ठाकोर ने ओबीसी वर्ग को बीजेपी को वोट नहीं देने के लिए अपने-अपने समूदायों को आगाह किया। राहुल गांधी के अलावा इन तीनों युवाओं की चुनावी रैलियों में भयंकर जनसमूह भी देखने को मिला। भले ही कांग्रेस काफी हद तक अपनी इस रणनीति को कामयाब मान रही है, लेकिन यह तो स्पष्ट हो गया है कि अकेले मोदी को चुनौति देना यानि बीजेपी को हराने के लिए विरोधियों को रणनीतिक ढंग से अभी बहुत लंबी लड़ाई लड़नी होगी।