एनआरसी को चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में बीजेपी?
ये शर्तें 15 अगस्त, 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और असम आंदोलन का नेतृत्व कर रही असम गण परिषद (एजीपी) के बीच हुए असम समझौते के अनुरूप हैं.
बीजेपी को आगामी चुनावों में एनआरसी का फ़ायदा मिलेगा या नहीं यह अभी स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता लेकिन बाहरी घुसपैठियों देश से बाहर निकालने की बात उठाकर बीजेपी नेता इसे चुनावी मुद्दा बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
''सिटिजन रजिस्टर बनाने का काम भारतीय जनता पार्टी ने किया और पहली सूची में 40 लाख लोग संदिग्ध पाए गए हैं. 40 लाख लोग. आप कल्पना कर सकते हैं.''
भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने जयपुर में आयोजित एक कार्यक्रम में जब ये कहा तो वहां बैठे लोग तालियां बजाने लगे.
अमित शाह असम में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर यानी एनआरसी का ज़िक्र कर रहे थे.
https://twitter.com/BJP4India/status/1039496157829812224
असम में 30 जुलाई को एनआरसी की सूची जारी की गई थी. इस सूची में 2 करोड़ 89 लाख 83 हज़ार 677 लोगों को भारत का वैध नागरिक माना गया.
आधिकारिक जानकारी के मुताबिक यहां कुल 3 करोड़ 29 लाख 91 हज़ार 384 लोगों ने एनआरसी के लिए आवेदन किया था. इस तरह 40 लाख से ज़्यादा लोग इस सूची से बाहर हो गए हैं. इन लोगों की नागरिकता पर सवालिया निशान खड़े हो गए.
अमित शाह ने अपने संबोधन में कांग्रेस को भी आड़े हाथों लिया और कहा, 'नागरिकता सूची के मामले में कांग्रेस अपना रुख़ साफ़ करे'.
https://twitter.com/AmitShah/status/1039460488482979841
क्या चुनाव में फ़ायदा मिलेगा?
इसके पहले दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने कहा था कि देश के बाकी हिस्सों में भी एनआरसी लागू की जानी चाहिए, जिससे देश में दाखिल हो गए घुसपैठियों को पहचान कर बाहर निकाला जा सके.
इसी कार्यक्रम में बीजेपी महासचिव राम माधव ने कहा कि जिन लोगों का नाम असम में जारी होने वाली एनआरसी की अंतिम सूची में नहीं होगा उन्हें देश से बाहर निकाल दिया जाएगा.
संकेत हैं कि बीजेपी आने वाले चुनावों में एनआरसी को बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की पूरी तैयारी में है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर किस आधार पर बीजेपी एनआरसी के तहत वोट पाने की उम्मीद कर रही है.
इसके जवाब में वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह कहते हैं, ''लोकसभा चुनाव की दृष्टि से भाजपा को लगता है कि एनआरसी के मुद्दे पर वोट प्राप्त किए जा सकते हैं, क्योंकि ये राष्ट्रीय सुरक्षा के पहलू को सामने लाता है साथ ही इसमें एक तरह का धार्मिक पुट भी छिपा हुआ है. हालांकि, धर्म की बात बीजेपी को बोलने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती. बाहरी घुसपैठियों के मुद्दे को भावनात्मक रूप से पेश कर बीजेपी इसका फ़ायदा उठा सकती है.''
बैकफुट पर विरोधी
बीजेपी नेता अलग-अलग मंचों से बाहरी घुसपैठियों की बात करके भारतीय जनमानस के मन में ये बात बिठाने की कोशिश कर रहे हैं कि देश में रह रहे बाहरी लोग देश की सुरक्षा और विकास के लिए कितना बड़ा ख़तरा हैं.
खुद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं, ''बाहर से आए ये लोग आतंकवादियों के रूप में घुसते हैं तो भारत की सुरक्षा में छिद्र नहीं करते हैं क्या? ये लोग बहुत से बम धमाकों में संदिग्ध पाए गए हैं. क्या वोटबैंक के लिए इन्हें खुला छोड़ देना होगा ? हम चुन-चुन कर इन्हें देश से बाहर निकाल देंगे.''
अमित शाह अपने कड़े तेवरों में वोट बैंक की राजनीति की बात करते हैं और इसी के ज़रिए एक खास वोट बैंक पर उनकी नज़र होती है.
प्रदीप सिंह इस संदर्भ में कहते हैं, ''बीजेपी को इसका फ़ायदा इस रूप में मिलेगा क्योंकि बाकी पार्टियों के पास इस बात को काटने का कोई तर्क नहीं है, आखिर कांग्रेस या अन्य पार्टियां कैसे यह कह पाएंगी कि बीजेपी इसके ज़रिए गलत कर रही है.''
हममें एनआरसी लागू करने की हिम्मत हैः अमित शाह
असम में क्या रहा प्रभाव
एक तरफ जहां बीजेपी एनआरसी के जरिए वोट हासिल करने की कोशिश करती दिख रही है वहीं दूसरी तरफ असम में उन लोगों को अपनी नागरिकता की चिंता सता रही है जिनका नाम एनआरसी में नहीं आया है.
असम में एनआरसी का कितना प्रभाव रहा, इस बारे में असम में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार और दैनिक पूर्वोदय के संपादक रवि शंकर रवि कहते हैं, ''जिन ज़िलों में ये माना जाता था कि बाहरी नागरिक बसे हुए हैं वहां जिन्होंने एनआरसी के तहत आवेदन किया था उनमें से 4 या 5 प्रतिशत के ही नाम गायब हुए हैं इसके उलट गुवाहाटी जैसी हिंदू बहुल क्षेत्रों से लगभग 16 प्रतिशत लोगों के नाम गायब हैं, ऐसे में यह कहा जा सकता है कि एनआरसी अपने मकसद में कामयाब नहीं रहा है.''
पूर्वोत्तर या देश के अन्य सीमावर्ती इलाकों में एनआरसी लागू करने कितना संभव हो पाएगा इसका अंदाजा तो असम के उदाहरण से ही लगाया जा सकता है.
असम में एनआरसी की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में पूरी हो रही है. इसके अनुसार एनआरसी में मार्च 1971 के पहले से असम में रह रहे लोगों का नाम दर्ज़ किया गया है, जबकि उसके बाद आए लोगों की नागरिकता को संदिग्ध माना गया है.
ये शर्तें 15 अगस्त, 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और असम आंदोलन का नेतृत्व कर रही असम गण परिषद (एजीपी) के बीच हुए असम समझौते के अनुरूप हैं.
बीजेपी को आगामी चुनावों में एनआरसी का फ़ायदा मिलेगा या नहीं यह अभी स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता लेकिन बाहरी घुसपैठियों देश से बाहर निकालने की बात उठाकर बीजेपी नेता इसे चुनावी मुद्दा बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
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