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बीजेपी और आरएसएस का मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों को रिझाने का दाँव

बीजेपी आदिवासी मूल की द्रोपदी मुर्मु को राष्ट्रपति बनाने के बाद ही बीजेपी ने संकेत दे दिए थे कि अब वो आदिवासियों को अपनी राजनीति के केंद्र में लाना चाहती है.

By BBC News हिन्दी
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मोहन भागवत
Getty Images
मोहन भागवत

जब भारतीय जनता पार्टी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में उतारा था, तभी से राजनीतिक गलियारों में इसको लेकर चर्चा होने लगी थी कि अन्य पिछड़े वर्ग में अपनी पैठ बनाने के बाद अब संगठन आदिवासियों को अपनी राजनीति के केंद्र में लाना चाहता है.

हालाँकि भारतीय जनता पार्टी की राजनीति पर नज़र रखने वालों का मानना है कि इससे भी पहले संगठन ने अपनी नई रणनीति के संकेत तब देने शुरू कर दिए थे जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संथाल विद्रोह के नायक बिरसा मुंडा की जयंती यानी 15 नवंबर को पूरे देश में 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की थी.

मध्य भारत के दो प्रमुख राज्य- छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आदिवासी क्षेत्रों में लोगों को लुभाने के लिए ज़्यादा ज़ोर लगाना शुरू कर दिया है.

जहाँ छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल सरगुजा संभाग में संघ के प्रमुख मोहन भगवत तीन दिवसीय दौरे पर हैं, वहीं मध्य प्रदेश में 'पंचायत-अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार-अधिनियम' यानी 'पेसा' क़ानून मंगलवार से ही लागू हो गया है.

वो भी राज्य के शहडोल में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मौजूदगी में.

संसद से 1996 में पारित होने के बाद ये पहली बार है जब इस क़ानून को मध्य प्रदेश में लागू किया जा रहा है.

माना जा रहा है कि इस क़ानून के लागू होने से आदिवासी समुदाय को कहीं ज़्यादा अधिकार मिल पाएँगे.

छत्तीसगढ़
Santosh Chaudhary
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पेसा क़ानून से क्या बदलेगा

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस पल को 'ऐतिहासिक' कहा क्योंकि 'पेसा' क़ानून राज्य के छह ज़िलों में पूर्णतः लागू हो रहा है.

इसके अलावा राज्य के 14 ऐसे ज़िले हैं जहाँ आदिवासी रहते हैं, वहाँ के कई इलाक़ों में भी इसे लागू किया जा रहा है.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक बयान में कहा कि पिछले साल प्रधानमंत्री 15 नवंबर को राज्य में आए थे तभी उन्होंने इस दिन को पूरे देश में 'जनजातीय गौरव दिवस' के रूप में मनाने की घोषणा की थी.

चौहान का कहना है कि पेसा क़ानून के लागू होने से राजस्व के मामलों के निपटारे आसान तो होंगे ही साथ ही साथ वन उपज और जल संसाधनों के प्रबंधन बेहतर तरीक़े से हो पाएँगे.

मध्य प्रदेश में आदिवासियों की आबादी 21.1 प्रतिशत है और मुख्यमंत्री का कहना है कि उनकी सरकार प्रदेश के अलग-अलग ज़िलों में आदिवासी नायकों के स्मारकों की स्थापना करेगी जिनमे भीमा नायक, और तांत्या मामा के नाम शामिल हैं.

लेकिन प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सवाल उठाए और पूछा कि जब राज्य में पिछले 20 वर्षों से भारतीय जनता पार्टी की सरकार रही तो फिर इस क़ानून को लागू करने में इतने साल क्यों लगे?

उनका आरोप है कि पेसा के नहीं लागू होने से कई सरकारी पद राज्य में ख़ाली पड़े हैं.

छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं.

मोदी
TWITTER/@NARENDRAMODI
मोदी

बीजेपी ने बदली रणनीति

वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह कहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने काम करने के तरीक़ों में पिछले कुछ सालों के अंदर काफ़ी बदलाव लाए हैं.

वो कहते हैं कि पार्टी उस छवि से बाहर आ रही है, जिसमें उसे सिर्फ़ 'उच्च जाति' या 'बनियों की पार्टी' के रूप में देखा जाता था.

वो कहते हैं, "भारतीय जनता पार्टी अब हर वर्ग में अपनी पैठ बनाने की कोशिश कर रही है. पहले ये सिर्फ़ बनियों या उच्च वर्ग की पार्टी कहलाती थी. इस पर उस वर्ग की पार्टी का तमगा लगा हुआ था जिनको आदिवासियों का शोषण करने वालों की तरह देखा जाता रहा था. फिर संगठन ने अन्य पिछड़ा वर्ग के बीच पैठ बनायी और अब आदिवासियों के बीच जा रही है. सिर्फ़ हिंदुत्व के मुद्दे को छोड़कर भाजपा काफ़ी कुछ नया कर रही है."

उनका ये भी कहना था कि मध्य प्रदेश में भी आदिवासियों को रिझाने के लिए भाजपा छोटे छोटे पहल ही सही, लेकिन कुछ कुछ करती आ रही रही है.

उन्होंने हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति स्टेशन किए जाने का उदाहरण दिया. उनका कहना है कि पिछले दो वर्षों से भारतीय जनता पार्टी ने आदिवासी इलाक़ों पर ध्यान देना शुरू किया है.

लेकिन कमलनाथ का आरोप है कि आदिवासियों पर हमले बढे ही हैं.

हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि आदिवासियों में पैठ कम हो जाने की वजह से पिछले विधानसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को, दोनों ही राज्यों, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में सीटों का काफ़ी नुकसान भी झेलना पड़ा.

सिर्फ़ उत्तरी छत्तीसगढ़ की अगर बात की जाए, तो वहाँ कांग्रेस ने अंबिकापुर और जशपुर के इलाक़े में 14 की 14 सीटें जीतीं थीं.

आदिवासी बहुल दक्षिण छत्तीसगढ़ में भी भाजपा को नुक़सान हुआ था.

वहीं मध्यप्रदेश में भाजपा ने आदिवासी बहुल इलाक़ों से सिर्फ़ 16 सीटें ही जीतीं थीं जबकि कांग्रेस को इन इलाक़ों से 31 सीटें मिलीं थीं.

मध्य प्रदेश में कुल 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं.

छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को 'पथ संचालन' कार्यक्रम में हिस्सा लिया और अगले दो दिनों तक वो क्षेत्र का दौरा भी करेंगे और प्रबुद्ध लोगों से भी मुलाक़ात करेंगे.

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मोहन भागवत का छत्तीसगढ़ दौरा

उन्होंने संघ की ही एक इकाई अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के कार्यक्रम में बोलते हुए कहा कि आदिवासी भोले भाले लोग होते हैं जो किसी के भी बहकावे में आसानी से आ सकते हैं.

उन्होंने आदिवासियों को मज़बूती के साथ खड़े रहने की सलाह दी. भागवत ने आदिवासी समाज को कहा कि 'आदिवासियों की संस्कृति ही भारत की संस्कृति है.'

उन्होंने कहा, "जनजातीय समुदाय की जीवन पद्धति ही भारतीय जीवन पद्धति का मूल्य है. हमारे भोलेपन का लाभ लेकर ठगने वाली दुनिया से बचना होगा. अगर हम मज़बूत हैं तो कोई हमारा क्या कर सकता है. हमारे पास अपना गौरव है, धर्म है और अपना स्वाभिमान है."

मोहन भागवत का छत्तीसगढ़ का ये दूसरा दौरा है. इससे पहले वो सितंबर माह में रायपुर में आयोजित चिंतन शिविर में भाग लेने आए हुए थे.

इस चिंतन शिविर में आदिवासियों के 'धर्म परिवर्तन के मामलों में वृद्धि' पर गहन चिंतन भी किया गया.

इस बार उनका कार्यक्रम आदिवासी बहुल उत्तरी छत्तीसगढ़ के आदिवासी बहुल उन इलाकों में हो रहा है जहां वर्ष 2013 तक भारतीय जनता पार्टी के उस इलाक़े के सबसे बड़े नेता दिलीप सिंह जूदेव ने धर्म परिवर्तन कर ईसाई बन गए आदिवासियों के बीच 'घर वापसी का' कार्यक्रम चलाया था.

राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि जूदेव द्वारा चलाये जा रहे घर वापसी के कार्यक्रमों से भारतीय जनता पार्टी की आदिवासी इलाकों में काफ़ी पैठ बन गई थी.

जूदेव संगठन के सबसे कद्दावर नेता रहे थे, लेकिन जब राज्य अलग हुआ तो वो मुख्यमंत्री सिर्फ़ इस लिए ही नहीं बन पाए क्योंकि वो 'पैसों को लेकर विवाद' में फंस गए थे.

भाजपा पर भी आरोप लगा कि उसने दिलीप सिंह जूदेव की मृत्यु के बाद उनके परिवार को अलग थलग कर दिया था और पार्टी को इसका नुक़सान होता रहा.

'घर वापसी' के कार्यक्रम में जूदेव ख़ुद अपने हाथों से उन आदिवासियों का पैर धोते थे जो ईसाई बन गए थे और फिर 'अपने धर्म पर वापस लौटे' थे.

लेकिन संगठन का कहना है कि दिलीप सिंह जूदेव की प्रतिमा वो जशपुर में वर्ष 2013 से ही लगाना चाहते था. प्रतिमा बनी भी 'लेकिन किसी कारणवश' इसका अनावरण स्थगित होता रहा.

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घर वापसी कार्यक्रम से कितनी उम्मीदें

दिलीप सिंह जूदेव के पुत्र प्रबल प्रताप सिंह जूदेव ने आरोप लगाया कि उनके पिता षड्यंत्र का शिकार को गए थे.

वो कहते हैं, "सिर्फ़ छत्तीसगढ़ ही नहीं, मेरे पिता ने ओडिशा और झारखंड में भी घर वापसी का कार्यक्रम चलाया. भारतीय जनता पार्टी को उनके कार्यक्रमों का राजनीतिक लाभ भी हुआ. अब संघ के प्रमुख का आकर उनकी प्रतिमा का अनावरण करना हमारे लिए बहुत बड़ी बात है. ये बहुत बड़ा सम्मान है."

प्रबल सिंह जूदेव 'अखिल भारतीय घर वापसी अभियान' के अध्यक्ष भी हैं. उनकी बात का समर्थन करते हुए भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता धरमलाल कौशिक, जो हाल तक प्रतिपक्ष के नेता भी रहे हैं, कहते हैं कि जूदेव के परिवार की अनदेखी हुई है इसमें कोई शक नहीं.

उनका कहना था कि संगठन ने जब उनके परिवार के लोगों को टिकट नहीं दिया तो वो निर्दलीय ही लड़े और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा.

वो कहते हैं, "जशपुर और आस पास की ऐसी सीटें हैं जो हम कभी हार ही नहीं सकते थे. ये सही है कि दिलीप सिंह जूदेव के नहीं रहने से भारतीय जनता पार्टी को नुक़सान हुआ है और धर्मांतरण भी बढ़ गया है. उनका कहना था कि संगठन ने भी आदिवासी क्षेत्रों में उतना ज़ोर नहीं लगाया था जितना करना चाहिए था."

वो कहते हैं, "प्रधानमंत्री जी के भी भाषण आपने सुने होंगे जिनमे उन्होंने आदिवासियों की संस्कृति और उनके साहस की मिसाल बार बार दी है. अब संगठन ने भी पूरी ताक़त लगा दी है आदिवासी इलाकों के लोगों को जागरूक करने के लिए. जहाँ आदिवासी जागरूक नहीं हैं, वहाँ धर्मांतरण के मामले ज़्यादा हैं."

राजनीतिक विश्लेषक गिरजा शंकर अलग राय रखते हैं.

उनका कहना है, "इसी मुद्दे पर विवाद है कि 'आदिवासी हिंदू हैं या नहीं.' आदिवासियों का एक बड़ा तबक़ा ऐसा है जिसका कहना है कि वो हिंदू नहीं हैं. वहीं घर वापसी के ज़रिए आदिवासियों को हिंदू बनाने का काम वनवासी कल्याण आश्रम वर्षों से कर रहा है."

वो कहते हैं कि इसका राजनीतिक लाभ मिलना या नहीं मिलना बिल्कुल अलग चीज़ें हैं क्योंकि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट पर जो मतदान का रुझान होता है, वो आम सीटों जैसा ही होता है.

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English summary
BJP and RSS in Madhya Pradesh and Chhattisgarh
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