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बड़ी गलती कर रहे अमित शाह, इस बार नहीं मिलेगी माफी!

By हिमांशु तिवारी आत्मीय
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आगामी 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव से मुखातिब होने वाला है। लेकिन भाजपा के भीतर फिलहाल महज पिछड़े वर्ग को बढ़ावा देने की बात पर एक खेमे का नाराज होना तय है। जी हां ब्राह्म्मण वर्ग का। क्योंकि पिछड़े वर्ग की फिक्र में भाजपा अपने तय वोटबैंक को नजरंदाज करने लगी है। सच पूछिए तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह एक बार फिर बड़ी गलती करने जा रहे हैं। और अगर इस बार कुछ भी गलत हुआ, तो जमीनी स्तर पर रात दिन एक करने वाले कार्यकर्ता उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे।

BJP's Amit Shah doing big mistake

भाजपा में ब्राह्म्मण हाशिए पर!

2014 में लोकसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी को प्रदेश से 71 सीटें हासिल हुईं, जिसमें दो अन्य सहयोगी दलों को भी मिलीं। किसी ने इसका श्रेय तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी को दिया तो कोई इन अप्रत्याशित सीटों का कारण अमित शाह को बताने लगा। हालांकि जीत है तो निश्चित तौर पर हिस्सा भी सबका है, साथ भी सभी का है। हां विकास किसका है इसकी सच्चाई पार्टी ने कुछ अलग तरीके से दिखा दी। केशव मौर्या को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर।

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वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता शिव प्रताप शुक्ला समेत पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रमापति राम त्रिपाठी, आगरा से कद्दावर एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सानिध्य में रहे हरद्वार दुबे को पार्टी लगातार दरकिनार करती दिखाई दे रही है।

पार्टी के ही अंदरूनी सूत्रों की मानें तो नवंबर 1999 में सूबे में कलराज मिश्र को मुख्यमंत्री बनाने की पूरी तरह से तैयारियां कर ली गईं थीं, लेकिन जातिगत राजनीति के तमाम पहलुओं को समझने के बाद राम प्रकाश गुप्ता के हाथों में सूबे की कमान सौंप दी गई।

किसका 'साथ' किसका 'विकास'?

लोकसभा चुनावों के दौरान भाजपा की रैलियों से उस नारे की गूंज अभी लोगों के दिलों से नहीं मिट पाई है कि सबका साथ, सबका विकास। हालांकि मौजूदा परिस्थितियों को देखकर सवाल खड़े होने लगे हैं कि वास्तव में किसका साथ और किसके विकास की बात हो रही है। जबकि पार्टी महज एक खेमे पर ही अपना पूरा ध्यान केंद्रित किए हुए है।

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हां गर बात की जाए अन्य छोटे बड़े सियासी दलों की तो जातीय समीकरणों को समान तौर पर साधने की लिए सभी ने जुगत लगाना शुरू कर दिया है। बसपा हरिजन वोट को अपना पारंपरिक वोट मानती है। जिसमें सेंध लगाने की कोशिश भाजपा ने केशव के जरिए की है।

सर्वधर्म हिताय, सर्वजन सुखाय

वहीं बसपा सुप्रीमों ने ब्राह्म्मणों के मद्देनजर भी सियासत शुरू कर दी है। इसका शंखनाद 2014 में लोकसभा चुनावों के दौरान ही कर दिया था। पर, ये बात अलग है कि उस वक्त मायावती अपना खाता भी नहीं खोल पाईं थीं। 2009 में भी मायावती ने एक चौथाई टिकट ब्राहम्मणों को ही दिया था। लेकिन बात जब विधानसभा चुनावों की हो तो सर्वधर्म हिताय, सर्वजन सुखाय के नारे के साथ चलना ही बुद्धिमानी है।

2007 चुनावों की गर बात की जाए तो मायावती ने ब्राहम्मण वोटों को साधते हुए सत्ता हासिल की थी। क्योंकि माना जाता है कि ब्राह्म्मण ही एक वर्ग है जो एक मुश्त किसी भी पार्टी के साथ नहीं जाता। जहां पर वो दमदार चेहरा देखता है, उसी की ओर झुकाव ले लेता है। जिसके साथ ही बनी बनाई जीत का रूख भी बदल जाता है।

हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं...

जी हां जबरदस्त रहा यह नारा। और कामयाब भी। दरअसल इस नारे की उत्तपत्ति ने मायावती को कई संकटों से उबार दिया। लखनऊ में हाथी की मूर्तियां लगवाए जाने पर जब अलग अलग दल बसपा का घिराव करने लगे तो बहुजन समाजवादी पार्टी से बयान आया कि हाथी नहीं गणेश हैं, ब्रह्मा विष्णु महेश हैं। इस बयान के कई सारे मतलब निकाले गए।

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हां सबका अर्थ सियासी फायदा ही था। पर इस फायदे में बसपा से ब्राह्मणों का जुड़ाव भी एक रहा। बसपा ब्राहम्ण मतों का मतलब सीधे तौर पर एक बड़े उटलफेर के रूप में समझती है। फलस्वरूप वर्ष 2013 में लोकसभा चुनाव के लिहाज से एक और बड़ा बयान ब्राह्म्मणों के लिए दिया गया। और बयान था कि ब्राह्म्मण शंख बजाएगा, तभी हाथी दिल्ली जाएगा। लेकिन इस बार ब्राह्म्मण वर्ग मोदी की कथित लहर में बहकर भारतीय जनता पार्टी के खेमे में फिर से एक जुट हो गया।

फिर से ये भूल कर रही है भाजपा

1- बीते साल बिहार में मंडल राजनीति का हश्र देख लेने के बावजूद पार्टी एक बार फिर जाति विशेष की राजनीति में फंसकर खुद को गफलत में डाल रही है।

2- केशव प्रसाद मौर्या भाजपा के द्वारा एक सियासी दांव हैं। वो कुछ इस तरह कि मौर्य एक कुशवाहा है, एक निचली पिछड़ी जाति, जिसे बीजेपी यूपी और बिहार दोनों राज्यों में लुभाने की कोशिश कर रही है।

3- फिलहाल ब्राह्म्मण वर्ग को नजरंदाज कर पार्टी अपने तय वोटों पर ही ध्रुवीकरण होने का अवसर दे रही है।

भाजपा कार्यकर्ताओं के मन में ही उठ रहे हैं सवाल

बीते महीनों की बात की जाए या फिर हालिया पीएम मोदी रैलियों की, एक बात मुख्यधारा में रही। जिसे बक्सर में पीएम मोदी न कहा कि भाईयों और बहनों मैं एक अतिपिछड़े वर्ग से आया हूं। इस बात से ही भाजपा खेमे में शामिल ब्राह्म्मण वर्ग में सुगबुगाहट पैदा होना लाजमी था कि आखिर ब्राहम्मण वर्ग ही हाशिए पर क्यों है, जिसे सूबे में भाजपा दल में खंगालकर देखा भी जा सकता है।

सपा हो या फिर बसपा ब्राह्म्मण वोटबैंक का मतलब भली भांति जानती है। लेकिन भाजपा पूर्णतया पिछड़े वर्ग पर ही अपना ध्यान केंद्रित कर रही है। जिसके साथ ही पार्टी के ही कई चेहरों ने दबी आवाज में हाईकमान पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। देखना दिलचस्प होगा कि आखिर भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व यूपी 2017 विधानसभा चुनाव के लिहाज से किस नीति का पालन करते हुए आगे बढ़ता है।

English summary
BJP's president Amit Shah is doing another big mistake. That will be in Uttar Pradesh Elections 2017.
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