आखिर क्यों Bitcoin में बांग्लादेश से ज्यादा खर्च हो रही बिजली ? जानिए इस बारे में सब कुछ
नई दिल्ली। एक ऐसे समय में जब इनवेस्टर क्रिप्टोकरेंसी के पीछे भाग रहे हैं। इसमें बिटकॉइन सबसे आगे है जिसकी वर्तमान में कुल वैल्यू लगभग एक ट्रिलियन डॉलर के पार है। सिर्फ कुछ ही लोग हैं जो बिटकॉइन या फिर क्रिप्टोकरेंसी के चलते होने वाले पर्यावरण के खतरे के बारे में सोच रहे हैं। खासतौर पर तब जबकि क्रिप्टोकरेंसी बाजार में इतनी ऊर्जा खर्च हो रही है और उससे जो कॉर्बन निकल रहा है वह इतना ज्यादा है जो किसी बड़ी कंपनी या फिर कई देशों से भी ज्यादा है।

एक देश के बराबर ऊर्जा
बिटकॉइन की ही बात करें तो इसकी माइनिंग में इस साल ऊर्जा की खपत 128 टेरावॉट प्रति घंटा (टीडब्ल्यूएच) ऊर्जा खर्च तक पहुंच सकती है। इस मात्रा को जब देखें तो यहा दुनिया में बिजली उत्पादन का 0.6 प्रतिशत है। 2017 में बिटकॉइन नेटवर्क 30 टेरावॉट प्रति घंटा ऊर्जा इस्तेमालकर रहा था जो कि इस समय में विभिन्न स्रोतों के अनुसार 80 टीडब्ल्यूएच से 101 टीडब्ल्यूएच के बीच में है।
इसे थोड़ा आसान करके ऐसे समझ सकते हैं कि बिटकॉइन की माइनिंग और ट्रांजेक्शन में इस समय बांग्लादेश या फिर आस्ट्रिया के बराबर ऊर्जा खर्च हो रही है।
2019 में गूगल के पूरे ऑपरेशन में 12.2 टीडब्ल्यूएच ऊर्जा खर्च हुई और दुनिया भर के डेटा सेंटर इनमें वह भी शामिल हैं जहां बिटकॉइन की माइनिंग होती है वहां पर संयुक्त रूप से 200 टेरावॉट प्रतिघंटा सालाना ऊर्जा की खपत हुई।
क्यों बिटकॉइन में खर्च होती है इतनी बिजली?
बिटकॉइन में इतनी बिजली क्यों खर्च होती है इसे समझने के लिए ये जानना जरूरी है कि बिटकॉइन कैसे तैयार होती है। बिटकॉइन दरअसल कम्यूटर के जरिए तैयार की जाती है। जिस नेटवर्क के जरिए लोग बिटकॉइन कमाते हैं उसे 'माइनर्स' कहते हैं। इस दौरान कम्यूटर भारी मात्रा में बहुत की जटिल समीकरण तैयार करता है जिसे प्रूफ ऑफ वर्क प्रोटोकॉल करहते हैं।
यह प्रक्रिया इतनी जटिल होती है कि इसमें भारी मात्रा में ऊर्जा इस्तेमाल करने वाले हाईटेक कम्यूटर इस्तेमाल होते हैं। इसकी खासियत यह है कि बाजार में जितने नए बिटकॉइन मौजूद होंगे ने बिटकॉइन की माइनिंग में उतना ही अधिक प्रोसेस लगेगा। इसके लिए अधिक मशीनों के इस्तेमाल की जरूरत होगी। इसका मतलब यह हुआ कि जैसे-जैसे इंडस्ट्री में अधिक लोग शामिल होते हैं इसकी ऊर्जा खपत बढ़ती ही जाएगी।
पर्यावरण के लिए भी खतरनाक
जाहिर है कि जब बिटकॉइन की माइनिंग में ऊर्जा खर्च हो रही है तो इसका असर पर्यावरण पर भी होगा। आखिर बिजली बनाने की प्रक्रिया में कॉर्बन उत्सर्जन होता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में सामने आया है कि बिटकॉइन हर साल 38 मीट्रिक टन कॉर्बन फुटफ्रिंट छोड़ रहा है। जो कि मुंबई शहर द्वारा निकाले जाने वाले कुल कॉर्बन फुटप्रिंट से ज्यादा है।
अध्ययन के मुताबिक 2017 में ईधन के इस्तेमाल से मुंबई में 2017 में सालाना CO2 उत्सर्जन की मात्रा 32 मीट्रिक टन मापी गई थी जबकि बेंगलुरु में यह 21.60 मीट्रिक टन थी।
बिटकॉइन के बड़े आलोचकों में एक माइक्रोसॉफ्ट के फाउंडर बिल गेट्स ने भी जलवायु पर इसके असर को लेकर चिंता जताई है। पिछले दिनों की न्यूयॉर्क टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि बिटकॉइन के ट्रांजेक्शन में दुनिया के किसी भी ज्ञात माध्यम से ज्यादा ऊर्जा खर्च होती है।
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