Bihar elections 2020: क्या नीतीश कुमार की सत्ता में वापसी की चाबी अब सिर्फ पीएम मोदी के पास है
नई दिल्ली- बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के एनडीए गठबंधन से बाहर निकलकर अकेले चुनाव लड़ने के ऐलान को जेडीयू भले ही आधिकारिक तौर पर 'आत्मघाती कदम' बता रहा हो, लेकिन सच्चाई ये है कि नीतीश कुमार की पार्टी जूनियर पासवान के फैसले से असहज है। पार्टी अभी तक इस दुविधा में है कि यह फैसला चिराग पासवान का है या फिर इसमें बीजेपी की भी मौन सहमति है। वैसे बीजेपी औपचारिक तौर पर यही कह रही है कि नीतीश कुमार ही गठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। लेकिन, एलजेपी की ओर से जिस तरह से नीतीश कुमार को निशाना बनाने की कोशिश की जा रही है, उससे पार्टी को अंदर ही अंदर चुनावों में बड़े नुकसान की आशंका सताने लगी है। उसकी उम्मीद की किरण अब सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ही टिक गई है। उसके नेताओं को लगता है कि सिर्फ पीएम मोदी ही चुनावों में नीतीश की पार्टी को होने वाले नुकसान से उबार सकते हैं।
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जेडीयू
में
धीरे-धीरे
बढ़
रही
है
चिंता
बिहार
विधानसभा
चुनाव
के
ठीक
पहले
एलजेपी
ने
जिस
तरह
से
सत्ताधारी
गठबंधन
का
साथ
छोड़कर
जेडीयू
के
खिलाफ
उम्मीदवार
उतारने
का
फैसला
किया
है,
उसने
पार्टी
की
चिंता
बढ़ा
रखी
है।
सार्वजनिक
तौर
पर
तो
पार्टी
यही
दावे
कर
रही
है
कि
इससे
कोई
फर्क
नहीं
पड़ेगा
और
बीजेपी-जेडीयू
गठबंधन
तीन-चौथाई
बहुमत
से
सत्ता
में
वापसी
करेगी।
उदाहरण
2010
के
विधानसभा
चुनाव
का
भी
दिया
जा
रहा
है
जब
एलजेपी
एनडीए
का
हिस्सा
नहीं
थी,
तब
भी
बीजेपी-जेडीयू
को
243
में
से
206
सीटें
मिली
थीं।
उधर
बीजेपी
की
ओर
से
भी
बार-बार
कहा
जा
रहा
है
कि
पार्टी
नेतृत्व
ने
बार-बार
कहा
है
कि
बिहार
में
नीतीश
कुमार
ही
गठबंधन
के
नेता
हैं।
लेकिन,
सच्चाई
ये
है
कि
इन
आश्वासनों
के
बावजूद
जेडीयू
के
अंदर
एक
चिंता
की
लकीर
साफ
नजर
आ
रही
है।
जेडीयू
के
लिए
एक-एक
सीट
पर
संघर्ष
जेडीयू
के
नेता
भले
ही
खुलकर
बोलने
से
बच
रहे
हैं,
लेकिन
अंदर
ही
अंदर
वह
चुनाव
के
बाद
वाली
परिस्थितियों
को
लेकर
सोच
में
पड़े
नजर
आ
रहे
हैं।
क्योंकि,
उन्हें
लगता
है
कि
चिराग
पासवान
के
फैसले
से
जेडीयू
के
परफॉर्मेंस
पर
असर
पड़
सकता
है
और
बीजेपी
फायदे
में
रह
सकती
है।
मसलन
ईटी
से
बातचीत
में
पार्टी
के
एक
नेता
ने
नाम
नहीं
बताने
की
शर्त
पर
कहा
है
कि,
'करीब
40
शहरी
विधानसभा
सीट
ऐसे
हैं,
जहां
पर
बीजेपी
को
किसी
से
चुनौती
नहीं
है
और
वह
आसानी
से
जीत
सकती
है।
जबकि,
हम
ज्यादातर
ग्रामीण
क्षेत्रों
में
लड़
रहे
हैं,
जहां
त्रिकोणीय
मुकाबले
की
संभावना
है।
इसका
मतलब
है
कि
जेडीयू
को
एक-एक
सीट
जीतने
के
लिए
बहुत
ही
कड़ा
संघर्ष
करना
होगा।'
बीजेपी
की
बी-टीम
है
एलजेपी?
जेडीयू
के
नेताओं
को
इस
बात
का
डर
सता
रहा
है
कि
एलजेपी
ने
जेडीयू
उम्मीदवारों
के
खिलाफ
लोकल
और
मजबूत
प्रत्याशियों
को
टिकट
दे
दिया
तो
पार्टी
को
काफी
नुकसान
हो
सकता
है।
सबसे
बड़ी
बात
है
कि
चिराग
पासवान
ने
कहना
शुरू
कर
दिया
है
कि
एक
भी
वोट
जेडीयू
को
देने
का
मतलब
है
कि
अपना
वोट
बर्बाद
करना।
जबकि,
वो
खुलेआम
चुनाव
के
बाद
बीजेपी-एलजेपी
की
सरकार
बनाने
के
दावे
भी
कर
रहे
हैं।
जाहिर
है
कि
ऐसे
में
एंटी-इंकंबेंसी
झेल
रही
सत्ताधारी
पार्टी
के
उम्मीदवारों
की
हालत
पतली
हो
सकती
है।
इसलिए
जेडीयू
के
नेताओं
को
लग
रहा
है
कि
एलजेपी
का
सिर्फ
एक
ही
मकसद
है
कि
बीजेपी
का
वोट
जेडीयू
में
जाने
से
रोक
दिया
जाए।
इससे
जेडीयू
के
मुकाबले
बीजेपी
का
स्ट्राइक
रेट
काफी
बढ़
जा
सकता
है।
उस
जेडीयू
नेता
का
कहना
है
कि,
'ऐसा
लगता
है
कि
एलजेपी,
बीजेपी
की
बी-टीम
है।
लेकिन,
हम
अभी
से
कुछ
क्यों
कहें
?
हम
इसपर
बीजेपी
की
प्रतिक्रिया
का
इंतजार
करेंगे।'
पीएम मोदी-नीतीश की साझा रैली का इंतजार
ऐसे में जेडीयू के नेता अब सिर्फ एक बात का ही इंतजार करना चाहते हैं। उनको उम्मीद है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार की साझा रैली होगी तभी वोटरों के सामने स्थिति साफ हो सकेगी। उन्हें लगता है कि जब पीएम मोदी नीतीश को आशीर्वाद देने की अपील करेंगे तो वोटरों में पैदा हो रहा कंफ्यूजन दूर हो जाएगा।