Ayodhya Verdict: 'रामलला' के वकील परासरण, जिन्होंने 92 साल की उम्र में लड़ी कानूनी लड़ाई
नई दिल्ली। देश के सबसे चर्चित मामलों में से एक अयोध्या भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने शिया वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज करने के साथ ही विवादित जमीन का मालिकाना हक रामलला विराजमान को देने फैसला सुनाया। इसके अलावा कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष को मस्जिद के लिए अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने का फैसला सुनाया। इस मामले में फैसला आने के बाद रामलला विराजमान की तरफ से पैरवी करने वाले वरिष्ठ वकील 92 साल के. परासरण संतुष्ट होंगे। के. परासरण ने हाल ही में कहा था कि उनकी आखिरी इच्छा है कि उनके जीवित रहते रामलला कानूनी तौर पर विराजमान हो जाएं। उम्र के 9 दशक पार कर चुके परासरण ने अयोध्या मामले में 40 दिनों तक चली रोजाना सुनवाई के दौरान अपनी दलीलें पेश कीं।
92 साल के हैं के परासरण
92 साल की उम्र में पूरी ताकत से केस लड़ने वाले परासरण को भारतीय वकालत का 'भीष्म पितामह' कहा जाता है। रोजाना सुनवाई के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर दूसरे पक्ष के वकीलों ने कहा था कि उम्र को देखते हुए परासरण के लिए ये मुश्किल होगा। लेकिन परासरण 40 दिनों तक चली सुनवाई के दौरान कोर्टरूम में मौजूद रहे और रामलला विराजमान के पक्ष में दलीलें पेश करते रहे। परासरण की उम्र को देखते हुए कोर्ट ने उन्हें बैठकर दलील पेश करने की अनुमति दी थी लेकिन उन्होंने ये कहकर इनकार कर दिया कि वे भारतीय वकालत की परंपरा का पालन करेंगे।
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भारत के अटॉर्नी जनरल रहे हैं परासरण
वरिष्ठ वकील परासरण को भारतीय इतिहास, वेद-पुराण और धर्म के साथ-साथ संविधान का व्यापक ज्ञान है। उन्होंने सुनवाई के दौरान स्कंद पुराण के श्लोकों का जिक्र करते हुए राम मंदिर के अस्तित्व को साबित करने की कोशिश की। 9 अक्टूबर 1927 को जन्मे परासरण पूर्व राज्यसभा सांसद और 1983 के 1989 के बीच भारत के अटॉर्नी जनरल रहे। इस दौरान वे तत्कालीन इंदिरा गांधी और राजीव गांधी सरकार में इस पर रहे।
वेद-पुराण के साथ संविधान के भी बड़े जानकार हैं परासरण
पद्मभूषण और पद्मविभूषण से सम्मानित परासरण को तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने संविधान के कागजात की समीक्षा के लिए ड्राफ्टिंग एंड एडिटोरियल कमेटी में शामिल किया था। इसके पहले, शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन को रामलला विराजमान को देने का फैसला सुनाया है। बता दें कि ये रामलला ना तो कोई संस्था है और ना ही कोई ट्रस्ट, यहां बात स्वयं भगवान राम के बाल स्वरुप की हो रही है। यानी सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को लीगल इन्टिटी मानते हुए जमीन का मालिकाना हक उनको दिया है।
विवादित जमीन का मालिकाना हक रामलला विराजमान को मिला
सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट को खारिज नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद को खाली जमीन पर नहीं बनाया गया था, खुदाई में जो ढांचा पाया गया वह गैर-इस्लामिक था। अयोध्या के संवेदनशील मामले पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने यह भी कहा कि ढांचा को गिराया जाना कानून का उल्लंघन था। सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता में 5 जजों की संविधान पीठ ने 40 दिनों की मैराथन सुनवाई के बाद 16 अक्टूबर को अयोध्या मामले में अपना फैसला सुरक्षित कर लिया गया था।