Ayodhya Verdict: जानिए हिंदू-मुस्लिम दोनों पक्षों ने किस तर्क के आधार पर किया दावा
नई दिल्ली। अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी होने के बाद आज इस ऐतिहासिक मामलें में कोर्ट अपना फैसला सुना सकता है। कोर्ट के फैसले पर हर किसी की नजर टिकी हुई है। इस पूरे विवाद पर सभी पक्षकारों ने अपना पक्ष सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान रखा। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद इस मामले की सुनवाई 16 अक्टूबर को पूरी कर ली थी और अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
पांच जजों की पीठ ने की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने अयोध्या विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा 2010 में दिए गए फैसले के खिलाफ दायर तमाम याचिकाओं पर सुनवाई की। बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में निर्मोही अखाड़ा, हिंदू पक्षकार, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और राम लला के पक्षकारों के बीच जमीन को बराबर हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था। जिसके बाद तमाम पक्षों ने कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीस जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने की थी।
हिंदू पक्ष का तर्क
हिंदू पक्ष में निर्मोही अखाड़ा, भगवान श्री राम लला विराजन, ऑल इंडिया हिंदू महासभा और राम जन्मभूमि न्यास सहित अन्य लोग शामिल थे। इन सभी पक्षकारों ने मुख्य रूप से ये अहम तर्क कोर्ट के सामन पेश किए थे-
- अयोध्या में पूरा विवादित स्थल भगवान राम का जन्मस्थान है, इससे लोगों की आस्था जुड़ी है।
- लोगों का विश्वास अपने आप में इस बात का सबूत है कि भगवान राम का जन्म यहीं हुआ था।
- राम जन्मस्थान कानूनी पक्षकार हैं, राम जन्मभूमि अब भगवान राम का ही रूप है, लिहाजा उनकी पूजा होनी चाहिए। लोगों का मानना है कि भगवान राम का जन्मस्थान पर निवास है।
- रामजन्मभूमि की दैवीयता यहां पर मस्जिद बनने के बाद भी नहीं खत्म हुई। अगर मंदिर भले ही नष्ट हो गया हो लेकिन इसकी पवित्रता बरकरार है।
- मुसलमानों ने यहां पर नमाज जरूर अदा की होगी, लेकिन इससे उनका इस जमीन पर अधिकार नहीं हो जाता।
- बाबरी मस्जिद के भीतर जो तस्वीरें हैं, वह इस दावे को खारिज करती है कि यहां पर मस्जिद थी। यह तस्वीरें इस्लाम की मान्यता के खिलाफ है।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 2003 की रिपोर्ट के अनुसार विवादित स्थल पर एक मंदिर था।
- हिंदुओं को यहां पर प्रार्थना का अधिकार कई दशकों से है। इसकी रक्षा की जानी चाहिए।
- इस्लाम की पवित्र कुरान में विवादित स्थल पर मस्जिद की इजाजत नहीं दी गई है।
- मुगल शासक बाबर ने इस मस्जिद को नहीं बनवाया और ना ही वह विवादित स्थल का मालिक है। लिहाजा सुन्नी वक्फ बोर्ड का इसपर कोई दावा नहीं है।
हिंदू पक्ष ने क्या साबित करने की कोशिश की
- मंदिर कई दशक पहले बना था, इसे संभवत: राजा विक्रमादित्य ने बनाया था, इसे 11वीं शताब्दी में फिर से बनाया गया था।
- मंदिर को 1526 में बाबर ने या फिर 17वीं शताब्दी में औरंगजेब ने संभवत: तोड़ दिया था।
- स्कंद पुराण और कई यात्रा वृतांत में इसका जिक्र है कि लोगों का विश्वास है कि अयोध्या ही भगवान राम का जन्मस्थान है।
- मस्जिद को लेकर इस्लामिक किताबों में जो कहा गया है कि वह कुरान और हदीथ के खिलाफ है।
मुस्लिम पक्ष का तर्क
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यह साफ नहीं कर सका है कि उस जगह पर मंदिर या किसी अन्य ढांचे को गिराया गया और विवादित स्थल पर मस्जिद को बनाया गया।
- पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार पर किसी का हस्ताक्षर नहीं है और यह नहीं पता है कि अंतिम विश्लेषण किसने किया और किसने अंतिम रिपोर्ट को तैयार किया।
- जिस जगह को भगवान राम का जन्मस्थान कहा गया है वह जन्मस्थान नहीं है और इसे बाबरी मस्जिद कहते हैं जिसे बाबर के काल में बनाया गया था।
- इस जगह पर हिंदुओं की प्रार्थना के कोई सबूत नहीं हैं। प्रार्थना हमेशा से राम चबूतरा पर की गई जोकि बाहर है।
- पहली बार 1949 में मूर्ति को गुंबद के भीतर रखा गया था।
- हिंदुओं ने जो तर्क दिया है वह बिखरे हुए सूत्रों पर आधारित है, यह तर्क यात्रा वृतांत, पर्यटकों के वृतांत आदि पर आधारित है, लिहाजा इससे पुष्टि नहीं होती है।
- सभी सरकारी दस्तावेजों में उस स्थान पर बाबरी मस्जिद होने की बात कही गई है। किसी भी दस्तावेज में राम जन्मभूमि होने की बात नहीं कही गई है।
- पुराने शासकों ने क्या किया इसके इतिहास में जाने की जरूरत नहीं है, अन्यथा काफी कुछ सामने आएगा और इतिहास को फिर से लिखना पड़ेगा। अगर बाबर इसमे शामिल किए जाएंगे तो फिर अशोक का भी जिक्र किया जाएगा।
मुसलमानों का तर्क किसपर आधारित है
- मस्जिद 1528 से उस स्थल पर मौजूद है।
- मस्जिद उस वक्त से ही वहां पर है, जिसपर 1855, 1934 में हमला किया गया। 1949 में विश्वासघात किया गया और 1992 में इसे तोड़ दिया गया, जोकि दस्तावेजों में साबित होता है।
- अंग्रेजो ने बाबर द्वारा बाबरी मस्जिद के लिए दिए गए अनुदान को मान्यता दी थी।
- 22/23 दिसंबर 1949 से यह स्थल मुसलमानों के अधिकार में है और यहां पर नमाज अदा की जाती है।
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