जुनैद की हत्या के बाद सवालों के घेरे में कानून
हाशिम ने बताया कि सफर थोड़ा लंबा था इसलिए हम चारों ने लूडो खेलनी शुरू कर दी। इसी बीच भीड़ में से एक बुजुर्ग आए और भाई (जुनैद) से सीट मांगी।
दिल्ली। अफवाहों के आधार पर उग्र भीड़ द्वारा मुसलमानों की लगातार की जा रही हत्या भारतीय लोकतांत्रिक संरचना को नए सिरे से परिभाषित करने को विवश कर रहा है। इस तरह की घटनाएं एक-दो या कभी-कभार हो तो अनायास माना जा सकता है, लेकिन लगातार होती इस तरह की वारदातें कानून को ही कठघरे में खड़ा कर रही हैं। पिछले दिनों बल्लभगढ़ के पास एक लोकल ट्रेन में चार मुस्लिम लड़कों की पिटाई और एक लड़के जुनैद की हत्या ने मानवता में विश्वास रखने वालों को दहलाकर रख दिया है। दरअसल, जुनैद की हत्या ईद से ठीक पहले हुई थी, इसलिए यह कुछ ज्यादा ही मर्माहत कर रही है। फलतः बल्लभगढ़ के पास खन्दावली गांव में ज्यादातर लोगों ने ईद की नमाज काली पट्टी बांधकर पढ़ी और ईद नहीं मनाई। लोगों का कहना था कि उन्हें इंसाफ चाहिए और सरकार को ऐसे मामलों को लेकर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
ईद के मौके पर हर कोई उनके गम में शरीक दिखा। घरवाले इंसाफ की मांग कर रहे हैं। जुनैद के पिता जलालुद्दीन का कहना है कि अब मेरा बेटे तो चला गया लेकिन सरकार अब देश में बिगड़ते माहौल को ठीक करे जिससे फिर कोई और जुनैद की मौत न मारा जाए। जुनैद की मां शायरा के मुताबिक घर में जुनैद का शव आने के बाद पता चला कि उनके बेटे को मारा गया है। सायरा जुनैद को याद करते हुए कहती हैं कि जुनैद अक्सर कहा करता था कि वह एक दिन दिल्ली की जामा मस्ज़िद का इमाम बनेगा। लेकिन मेरे बेटे को पीट-पीटकर मार डाला गया। क्या गलती थी उस मासूम की? इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है।
गौरतलब है कि जुनैद की बल्लभगढ़ के पास असावती में भीड़ ने पीटकर और चाकू मारकर हत्या कर दी थी। चश्मदीदों के मुताबिक झगड़े के दौरान सांप्रदायिक टिप्पणी भी हुईं। पुलिस अब तक एक ही आरोपी को पकड़ सकी है। बाकी आरोपियों का सुराग देने पर एक लाख का इनाम रखा गया है। लोग इस घटना को लेकर सरकार के रुख से नाराज हैं। मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों का कहना है कि आजकल टोपी पहनकर, दाढ़ी रखकर चलने में डर लगता है, इससे समझा जा सकता है कि कानून-व्यवस्था की क्या हालत है। जुनैद की मौत समाज में फैल रही नफरत का नतीजा है। यही वजह है कि आज मुस्लिम समुदाय डरा हुआ है। हिन्दू भी इसी देश का है और मुस्लिम भी इसी देश का है। लोग कौन होते हैं उन्हें पाकिस्तानी कहने वाले।
सवाल किया जा रहा है कि क्या आप गाय के नाम पर इंसानों का कत्ल करोगे। बताते हैं कि जुनैद हाफिज़ बीते दिनों रात में लोकल ट्रेन से दिल्ली से बल्लभगढ़ जा रहे थे। उनकी उम्र 16 साल थी। हुआ ऐसा कि जुनैद, उनके भाई हाशिम व शाकिर और पड़ोसी दोस्त मोहसिन दिल्ली के सदर बाज़ार से ईद की खरीदारी कर घर लौट रहे थे। जब वो ट्रेन में चढ़े तो ट्रेन पूरी तरह खाली थी, तो उन्हें बैठने के लिए सीट भी मिल गई। आगे चलकर ओखला में 20-25 लोग ट्रेन में चढ़े। चढ़ने में धक्का मुक्की हुई। उसी में जुनैद को धक्का लगा तो वो नीचे गिर गए। इस पर जुनैद ने कहा कि धक्के क्यों मार रहे हो। उन्होंने उनके सर पर टोपी देख कर कहा कि तुम मुसलमान हो, देशद्रोही हो, तुम पाकिस्तानी हो, मांस-मीट खाते हो। उन लोगों ने सर से टोपी हटा दी और उनकी दाढ़ी पकड़ने की कोशिश की। जब उन्होंने रोकने की कोशिश की तो उन्होंने मार-पीट शुरू कर दी।
जुनैद के भाई हाशिम ने उसे पूरे घटनाक्रम को बयां करते हुए बताया कि कैसे उन तीनों भाइयों व दो दोस्तों के साथ हमलावरों की भीड़ ने दरिंदगी की। हाशिम ने बताया कि सफर थोड़ा लंबा था इसलिए हम चारों ने लूडो खेलनी शुरू कर दी। इसी बीच भीड़ में से एक बुजुर्ग आए और भाई (जुनैद) से सीट मांगी। वह तुरंत खड़ा हो गया। उसकी सीट पर बैठे बुजुर्ग ने उसे मुस्करा कर देखा तो हम लोगों के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। ये शायद उस वाक्ये के बाद की हमारी अंतिम मुस्कुीराहट थी। आने वाले खतरे से बेखकर मैंने हमलावरों का विरोध किया तो वो बदसलूकी पर उतर आए। उन्होंने हमसे गाली गलौज करते हुए हंगामा शुरू कर दिया। कोई हमें बीफ खाने वाला कह रहा था तो कोई धर्म को लेकर टिप्पणी कर रहा था। भीड़ से खचाखच भरे डिब्बे के बीच हम चारों अचानक अकेले और असहाय चुके थे। कुछ हिम्मत जुटाकर हमने इसका प्रतिरोध किया तो भीड़ के बीच से कुछ लोग बेकाबू हो गए और हाथापाई शुरू कर दी। हमारी टोपी उतार दी गई और दाढ़ी खींचने का भी प्रयास किया गया। इससे पहले की हम कुछ सोच पाते यह देखकर हम अचंभे में रह गए कि जिस बुजुर्ग के लिए जुनैद ने सीट छोड़ी थी उसने सबसे पहले उस पर हाथ छोड़ा। भीड़ में से 10-15 लोग ऐसे थे जो हमें लगातार गालियां देकर पीटे जा रहे थे। हम जैसे ही मुंह खोलने की कोशिश करते वो लात घूसों से पीटकर हमारी जुबान चुप करा देते। हमलावरों की पिटाई से कुछ देर में ही जुनैद का शरीर बेजान हो गया। तब तक शायद हमलावरों का गुस्सा भी निकल चुका था। दुख इस बात का था कि घटना के वक्त डिब्बे में से 100-150 लोग मौजूद थे लेकिन उनमें से कोई हमारी मदद के लिए नहीं आया। कुछ तो मारो-मारो कहकर हमलावरों का समर्थन कर रहे थे।
गौरतलब है कि इस तरह के हमले लगातार हो रहे हैं। हाल ही में जम्मू-कश्मीर में पुलिस अफसर अयूब पंडित की पीट-पीटकर बेरहमी से हत्या कर दी गई। इससे पहले राजस्थान के अलवर में भीड़ द्वारा पहलू खां की हत्या हुई। दादरी में अखलाक हत्या कांड भी चर्चा में रहा। कुछ लोगों का आरोप है कि केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद से मुस्लिम समुदाय के लोगों पर हमलों की संख्या बढ़ी है। उनका मानना है कि हमलावरों को सत्ता का संरक्षण प्राप्त है, क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो इनके अंदर इतनी साहस कहां से आती? केंद्र में बीजेपी की सरकार के बाद एक के बाद एक लगातार मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं, फिर भी प्रधानमंत्री मोदी इस गंभीर मसले पर अभी तक अपनी चुप्पी नहीं तोड़े हैं। जिस वजह से हमलावरों को सरकार की तरफ से परोक्ष रूप से समर्थन मिल रहा है। जब 15 वर्षीय जुनैद खान को हरियाणा के बल्लभगढ़ में मार दिया गया तो पीएम मोदी भारत में ही थे। घटना के बाद वे पुर्तगाल और अमेरिका के दौरे पर निकले। संभव है कि जुनैद की हत्या पर पीएम मोदी की चुप्पी के पीछे कोई वजह हो। 23 जून को पीएम मोदी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि, हिमाचल प्रदेश के सीएम वीरभद्र सिंह को जन्मदिन की शुभकामना, इसरो को पीएसएलवी लॉन्च और एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार रामनाथ कोविंद के साथ नामांकन में जाने से जुड़े ट्वीट किए। पर जुनैद मसले पर कुछ भी नहीं लिखा।
बता दें कि जब यूपी में फ्रीज में बीफ रखने के आरोप में 28 सितंबर 2015 को मोहम्मद अखलाक की भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी थी तो उसके कुछ देर पहले ही पीएम मोदी ने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ मुलाकात की थी। घटना के आठ दिन बाद पीएम मोदी ने बिहार के नवादा में विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान कानून को अपने हाथों में लेने वालों को चेतावनी दी थी। पीएम मोदी ने कहा था कि मैं पहले भी कह चुका हूं। हिंदुओं को तय करना होगा कि उन्हें मुसलमानों से लड़ना है या गरीबी से। मुसलमानों को भी तय करना होगा कि उन्हें हिंदुओं से लड़ना है या गरीबी से। दोनों को गरीबी से लड़ने की जरूरत है। राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला ने मुस्लिमों की हो रही लगातार हत्याएं देश के लिए चिंता का विषय है। यही वजह है कि देश का बौद्धिक वर्ग इस तरह की घटनाओं के विरोध में नेशनल कैंपेन एगेन्स्ट मोबलाइंचिंग के बैनर तले एकजुट होने लगा है। हमारी सरकार से मांग है कि वह इस तरह की वारदातों को रोकने के लिए कड़े कानून बनाए। बहरहाल, स्थितियां अनुकूल नहीं हैं। देखते हैं आगे क्या होता है?