रस्मो-रिवाज़ और जेंडर की सीमा से परे एक अनोखी प्रेम कहानी
जब शादी की बात आती है तो अधिकांश लोग इसे धूमधाम से मनाना चाहते हैं. चेन्नई में उस दोपहर की गई एक शादी में कई ख़ासियतें एक साथ थीं.इसमें सबसे पहले तो ये कि यह बिना किसी तैयारी और दिखावे के सम्पन्न हुई. दूसरी ख़ास बात ये थी कि ये शादी बिना रिवाज़ों के हुई. यह शादी थी प्रीतिशा और प्रेम कुमारन की. प्रीतिशा लड़का पैदा हुई थीं जबकि कुमारन लड़की.
जब शादी की बात आती है तो अधिकांश लोग इसे धूमधाम से मनाना चाहते हैं. चेन्नई में उस दोपहर की गई एक शादी में कई ख़ासियतें एक साथ थीं.
इसमें सबसे पहले तो ये कि यह बिना किसी तैयारी और दिखावे के सम्पन्न हुई. दूसरी ख़ास बात ये थी कि ये शादी बिना रिवाज़ों के हुई.
यह शादी थी प्रीतिशा और प्रेम कुमारन की. प्रीतिशा लड़का पैदा हुई थीं जबकि कुमारन लड़की.
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के दिन चेन्नई में दोनों एक 'आत्मसम्मान विवाह' में शादी के बंधन में बंध गए.
प्रीतिशा ने बीबीसी से कहा, "मैंने लड़के के रूप में जन्म लिया था. लेकिन जब मैं 14 साल की हुई तो मुझे लगा कि मेरे भीतर कुछ लड़की जैसा है."
'आत्मसम्मान विवाह', बिना रिवाज़ों वाली शादी को यही नाम दिया जाता है. तर्कवादी पेरियार ने ये परंपरा शुरू की थी.
यह उन लोगों के लिए है जो किसी जाति या धार्मिक रीति रिवाज़ों से अपनी शादी नहीं करना चाहते हैं.
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क्या है प्रीतिशा की कहानी?
छह साल पहले प्रीतिशा और प्रेम फ़ेसबुक पर दोस्त बने. उनकी दोस्ती बाद में प्यार में बदल गई.
तमिलनाडु में तिरुनेलवेली के कल्याणीपुरम गांव में 1988 में जन्मी प्रीतिशा अपने माता-पिता की तीसरी संतान हैं.
स्कूल के दौरान प्रीतिशा को स्टेज नाटक में भाग लेना पसंद था और आज वो एक प्रोफ़ेशनल स्टेज आर्टिस्ट और ऐक्टिंग ट्रेनर हैं.
प्रीतिशा कहती हैं, "यह 2004 या 2005 की बात है जब मैं अपने रिश्तेदार से मिलने पांडिचेरी गई, तो मुझे सुधा नामक एक ट्रांसजेंडर से मिलने का मौका मिला. उनके माध्यम से मुझे कड्डलूर की पूंगोडी के बारे में पता चला."
पूंगोडीअम्मा (पूंगोडी को प्रीतिशा मां की तरह संबोधित करती हैं इसलिए पूंगोडी अम्मा बुलाती हैं) और तमिलनाडु के कुछ अन्य ट्रांसजेंडर पुणे में एक किराए के मकान में रहते थे.
उन्हें पता चला कि उस मकान में रहने वाले अधिकांश ट्रांसजेंडर अपनी जीविका के लिए या तो भीख मांगते थे या वेश्वावृति में थे. प्रीतिशा ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहती थीं.
सुधा की सलाह से उन्होंने ट्रेन में चाबियों वाली ज़ंजीरें और मोबाइल फ़ोन बेचना शुरू किया.
"कई ट्रांसजेंडरों ने इसका कड़ा विरोध किया कि वो भीख मांगने का काम करते हैं और अगर मैं चीजें बेचूंगी तो लोग उनसे सवाल पूछेंगे."
जेंडर चेंज की सर्जरी
लोकल ट्रेनों में चीज़ें बेचने पर पाबंदी के बावजूद वो छोटे-से कारोबार को शुरू करने में कामयाब रहीं.
"इससे हमें हर दिन 300-400 रुपये कमाने में मदद मिलती थी."
17 साल की उम्र में उन्होंने अपनी कमाई के पैसे से लिंग परिवर्तन की सर्जरी करवा ली.
प्रीतिशा ने कहा कि उनके परिवार ने उस सर्जरी के बाद उन्हें स्वीकार कर लिया और अब वो अपने परिवार के संपर्क में हैं.
बाद में वो दिल्ली में एक ट्रांसजेंडर आर्ट क्लब से जुड़ गईं और राष्ट्रीय राजधानी और इसके आसपास अभिनय करना शुरू कर दिया.
तीन-चार साल के बाद वो वापस चेन्नई लौट आईं.
प्रीतिशा कहती हैं, "जब मैंने चेन्नई में अभिनय करना शुरू किया, मेरी मुलाकात मणिकुट्टी और जेयारमण से हुई. उनसे हुई दोस्ती से मेरा अभिनय और निखर गया. उनकी मदद से ही आज मैं फ़ुल टाइम परफ़ॉर्मर हूं और अभिनय सिखाती भी हूं."
क्या है प्रेम की कहानी?
प्रेम कुमारन का जन्म तमिलनाडु के इरोड ज़िले में 1991 में एक लड़की के रूप में हुआ था.
हालांकि उनका बचपन सामान्य था, लेकिन जब वो किशोरावस्था में पहुंचे तो उन्हें लगा कि उनके महिला शरीर में एक पुरुष की भावना है. उन्होंने इसे अपनी मां को बताया तो उन्होंने इसे ख़ारिज कर दिया.
उनके माता-पिता को लगा कि उनका यह बोध समय के साथ बदल जाएगा.
प्रेम ने एक लड़की के रूप में कॉलेज में दाखिला लिया. कॉलेज के दिनों में वो एक दुर्घटना में घायल हो गए और उन्हें आगे की पढ़ाई छोड़नी पड़ी.
2012 में प्रेम लिंग परिवर्तन के ऑपरेशन की जानकारी लेने चेन्नई आए. वो प्रीतिशा और उनके दोस्तों के साथ ठहरे.
यह इन दोनों की पहली मुलाकात थी और फिर दोनों अच्छे दोस्त बन गए. उस दौरान वो प्रीतिशा के पास दो-तीन दिनों के लिए ठहरे थे.
उसी दौरान उन्होंने फ़ैसला किया कि वो पुरुष बनना चाहते हैं और प्रीतिशा को अपनी इच्छा बताई. उन्होंने प्रेम को उस जेंडर को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जिसमें वो सहज महसूस करते थे.
दोनों सोशल मीडिया के ज़रिए एक दूसरे से जुड़े रहे और कभी-कभी मिलते रहे. प्रेम ने अपने ट्रांसजेंडर मित्रों से लिंग परिवर्तन सर्जरी के बारे में पूछा.
प्रेम ने बीबीसी से कहा कि 2016 में उन्होंने अपने एक शुभचिंतक की मदद से चेन्नई में लिंग परिवर्तन सर्जरी करवाई. उनके परिवार को इसकी जानकारी नहीं थी.
चेन्नई में काम के लिए ठहरने के दौरान प्रेम और प्रीतिशा ने एक दूसरे को प्यार में मिली नाकामी की बात बताई.
एक दिन प्रीतिशा ने प्रेम से एक अप्रत्याशित प्रश्न पूछा, "हम दोनों को ही एक ही कारण से प्यार में नाकामी मिली है, क्या हम दोनों साथ रह सकते हैं?"
प्रेम को हालांकि आश्चर्य हुआ, लेकिन उन्होंने तुरंत इस प्रस्ताव को स्वीकार लिया और उनकी दोस्ती प्यार में बदल गई.
प्रेम ने आशंका व्यक्त की कि जाति के बाहर शादी करने पर उनके परिवार का उनके रिश्तेदार बहिष्कार कर सकते हैं. विडंबना यह है कि वो उसी शहर से हैं जहां जातिवाद के विरोधी ईवी रामास्वामी का जन्म हुआ था.
और फिर जब दोनों ने शादी की...
ये दोनों चेन्नई स्थित 'पेरियार आत्मसम्मान शादी केंद्र' पहुंचे. यह केंद्र पेरियार के तरीके से लोगों को शादी में मदद करता है.
विश्व महिला दिवस के दिन दोनों ने कुछ गवाहों की मौजूदगी में शादी कर ली. दोनों ने जीवन भर एक-दूसरे के साथ रहने का प्रण लिया.
उन्होंने किसी रिवाज़ का अनुसरण नहीं किया जैसे कि मंगलसूत्र बांधना.
प्रीतिशा कहती हैं, "कुछ लोग हमें परेशान करते हैं. मेरे पड़ोसी हमें यहां से जाने के लिए कहते हैं. हालांकि हमारा मकान मालिक हमें समझता है और हमारा समर्थन भी करता है, इसिलिए हम इस घर में रह रहे हैं."
दोनों को आर्थिक समस्या से भी दो चार होना पड़ रहा है. प्रेम ने एक शोरूम में काम शुरू किया था जहां उसे घंटों खड़ा रहना पड़ता था. कुछ समय के बाद वो वहां काम नहीं कर सका. अब कुछ महीनों से वो खाली है और दूसरी नौकरी तलाश रहा है.
प्रीतिशा ने बीबीसी से कहा, "मैं प्रेम की पढ़ाई पूरी करवाऊंगी, कम से कम दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से ही."
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