अमित शाह का जम्मू और कश्मीर दौरा- क्या खोया, क्या पाया?
तनाव और पुंछ में जारी एनकाउंटर के बीच अमित शाह के कश्मीर दौरे से क्या निकलेगा, समझिए इस रिपोर्ट से,
"हम किसी लैब के चूहों की तरह है जिन्हें विभिन्न सूचनाओं और परिदृश्यों का डोज़ दिया जा रहा है और हमें हर स्थिति के लिए खुद को ढालना होता है."
ये हैं श्रीनगर में बिज़नेसमैन इशफ़ाक मीर.
इशफ़ाक ने साल 2011 में ईकॉमर्स साइट कश्मीर बॉक्स की सहस्थापना की थी. उनका सपना था अमेज़न की तर्ज पर देश और दुनिया में कश्मीर के हैंडीक्राफ़्ट, कालीन उद्योग को विशेष जगह दिलवाना, स्थानीय ब्रैंड्स को आगे बढ़ाना.
लेकिन घाटी में जारी हिंसा, साल 2014 की बाढ़, 2016 में चरममंथी बुरहानी वानी की मौत के बाद और साल 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद फैली अशांति और इंटरनेट के लंबे वक्त तक गायब हो जाने आदि की वजह से इशफ़ाक को कश्मीर बॉक्स का स्वरूप सीमित करना पड़ा.
इशफ़ाक कहते हैं, "हमारा स्टाफ़ 100 से घटकर आठ रह गया है. (लेकिन) हमारी कोशिश है कि हमने जो शुरुआत की थी, उसे ज़िंदा रखें."
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साल 2016 में कश्मीर बॉक्स को दिल्ली में सैटेलाइट दफ़्तर खोलना पड़ा था ताकि ऑर्डर के प्रोसेस का काम जारी रहे.
वो कहते हैं, "हम लगातार सांस ले रहे हैं और अपने चारों ओर के शोर पर ध्यान नहीं दे रहे हैं."
ऐसी परिस्थितियों में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तीन दिनों की यात्रा पर 23 अक्टूबर को जम्मू और कश्मीर पहुंचे.
दो साल पहले अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद ये उनकी पहली जम्मू और कश्मीर यात्रा थी. अमित शाह इस अनुच्छेद को जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद की जड़ बताते रहे हैं.
लेकिन रिपोर्टों के अनुसार जम्मू और कश्मीर में उनके आने के ठीक पहले चरमपंथियों के हाथों 11 आम नागरिकों की हत्या की गई. मरने वालों में हिंदू, मुसलमान और सिख शामिल थे. इसके अलावा पुंछ में चरमपंथियों के साथ मुठभेड़ जारी थी.
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दौरे पर असर
श्रीनगर में पत्रकार बशीर मंज़र के मुताबिक यात्रा के दौरान अमित शाह के जो भी वक्तव्य आए वो मित्रतापूर्ण थे.
वो कहते हैं, "जब उन्होंने कहा कि वो जम्मू कश्मीर के युवाओं से संपर्क करने आए हैं, उन्होंने कहा कि कश्मीर का युवा सकारात्मक है, हमें उसके साथ जुड़ना है, उस युवा को जम्मू और कश्मीर के विकास में पार्टनर बनाना है. उसे सराहा गया."
लेकिन वो कहते हैं कि कुछ घटनाओं ने अमित शाह के बयानों को हल्का कर दिया.
बशीर मंज़र कहते हैं, "दक्षिणी कश्मीर में एक सिविलयन की मौत हो गई जिसके बारे में अभी तक पता नहीं कि क्या हुआ. भारत पाकिस्तान मैच में पाकिस्तानी जीत के बाद बहुत सारे युवाओं को परेशान किया गया, उनके खिलाफ मामले दर्ज किए गए क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाया."
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घोषणाओं का सच?
एक रैली में अमित शाह ने कहा कि जम्मू और कश्मीर में 12,000 करोड़ रुपए का निवेश आ गया है और साल 2022 के पहले 51,000 करोड़ रुपए का निवेश आ जाएगा.
साथ ही उन्होंने मेडिकल कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज, आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम, आदि के बनाए जाने के अलावा लाखों नौकरियां देने की बात कही.
कौन हैं ये निवेशक जो जम्मू और कश्मीर में 12,000 करोड़ रुपए का निवेश कर चुके हैं.
कश्मीर चेंबर और कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के प्रमुख शेख आशिक अहमद के मुताबिक ज़्यादातर निवेशक स्थानीय ज़म्मू और कश्मीर के हैं.
जम्मू चेंबर औफ़ कॉमर्स के महासचिव गौरव गुप्ता को इस बारे में सरकारी आदेश का इंतज़ार था जिससे और जानकारी मिल सके.
दरअसल जम्मू और कश्मीर में प्रशासन पर आरोप लगते रहे हैं कि वो जानकारी को नियंत्रित करती है.
श्रीनगर से आर्थिक मामलों के जानकार इजाज़ अयूब कहते हैं, "हमारा अनुभव हमें बताता है कि (सरकार की) कथनी और करनी में फर्क रहा है इसलिए हमें संदेह है, लेकिन हम इन घोषणाओं का स्वागत करते हैं."
जम्मू और कश्मीर में उद्योग और वाणिज्य प्रमुख सचिव रंजन प्रकाश ठाकुर घोषणाओं को लेकर किसी भी संशय से इनकार करते हैं.
श्रीनगर से उन्होंने बीबीसी से बातचीत में बताया कि जम्मू के कठुआ ज़िले में रवि जयपुरिया ग्रुप पैकेजिंग और बेवरेज प्लांट में करीब 500 करोड़ रुपए का निवेश कर रही है और उसके लिए ज़मीन अलॉट की जा चुकी है.
इसके अलावा पुलवामा में 150 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले जेएसडब्ल्यू कंपनी के स्टील प्लांट पर काम शुरू होने वाला है.
कुछ दिनों पहले दुबई सरकार के जम्मू और कश्मीर के रियल इस्टेट, इंडस्ट्रियल पार्क, सुपर स्पेशलटी पार्क आदि में निवेश की भी खबर आई थी लेकिन आंकड़ों के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी.
पत्रकार बशीर मंज़र कहते हैं, "ज़मीन पर तभी फर्क पड़ेगा जब कुछ आएगा. अभी तक बातें हो रही हैं. बातों के अलावा कुछ नहीं हुआ है."
रंजन प्रकाश ठाकुर के मुताबिक निवेशकों की सूची लंबी है, निवेशकों में जम्मू और कश्मीर के भीतर और बाहर के लोग शामिल हैं, और बीबीसी से बातचीत के वक्त उनके पास वो सूची नहीं थी.
इजाज़ अयूब निवेश की घोषणाओं पर सवाल उठाते हुए पूछते हैं कि आखिर मुनाफ़ा तलाशने वाली भारतीय कंपनियां निवेश के लिए ऐसी जगह क्यों आएंगी जहां सड़कें खस्ताहाल हैं, इंटरनेट सरकार के भरोसे पर है, बिजली की कमी है और हुनरमंद लोगों की कमी है.
वो कहते हैं, "यहां के उद्योग सामान लपेटकर बाहर का रुख कर रहे हैं."
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करोड़ों का बिज़नेस नुकसान
कश्मीर चेंबर और कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के प्रमुख शेख आशिक अहमद के मुताबिक एक दिन के लॉकडाउन से घाटी के बिज़नेस को करीब 150 करोड़ रुपए का नुकसान होता है. अनुच्छेद 370 ख़त्म करने के बाद घाटी में प्रदर्शन, लॉकडाउन, कर्फ्यू, इंटरनेट कटौती आदि हुई उसका बिज़नेस पर गहरा असर पड़ा.
शेख आशिक अहमद के मुताबिक अगस्त 2019 से अगस्त 2019 तक घाटी के बिज़नेस को 40,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. इसमें कोविड से प्रभावित वक्त भी शामिल था.
अगले एक साल यानि अगस्त 2021 तक बिज़नेस को 10,000 करोड़ रुपए का और नुकसान हुआ. ऐसे में सरकार के लिए चुनौती है कि बिज़नेस के लिए कैसे हालात बेहतर हों
शेख आशिक अहमद के मुताबिक अमित शाह के साथ उनकी बैठक में चेंबर सदस्यों ने रिवाइवल पैकेज, पर्यटन सेक्टर की मदद, कर्ज़ों के पुनर्गठन आदि जैसी मांगें रखी. जबकि जम्मू चेंबर ऑफ़ कॉमर्स के गौरव गुप्ता के मुताबिक वो चाहते हैं कि पुराने उद्योगों को नए उद्योगों के बराबर प्रोत्साहन दिया.
लेकिन क्या अमित शाह के घोषणाओं की दिशा ठीक है?
आर्थिक मामलों के जानकार इजाज़ अयूब के मुताबिक जम्मू और कश्मीर के औद्योगीकरण के लिए ज़रूरी है कि रोड और रेल से कनेक्टिविटी और इंटरनेट सुविधाएं बेहतर हों, उद्योगों को बिजली मिले और कर्ज़ लेने वाले उद्योगों को विशेष सुविधाएं मिलें.
अयूब कहते हैं, "अभी जब मैं आपसे बात कर रहा हूं तो श्रीनगर के केंद्र के बहुत इलाकों में इंटरनेट नहीं है... हमारे इंजीनियरिंग संस्थान जिस तरह के लोगों को तैयार कर रहे हैं, वो उद्योगों की ज़रूरतों के साथ मेल नहीं खाते..."
"आरबीआई के कानून कहते हैं कि अगर आप तीन महीनों तक कर्ज़ की किश्त नहीं दे पाते तो आपको आम परिस्थितियों में नॉन परफ़ॉर्मिंग ऐसेट या एनपीए घोषित कर दिया जाता है लेकिन हमारे यहां आम हालात नहीं हैं."
बिज़नेसमैन इशफ़ाक मीर कहते हैं, "(हमारे लिए) अगर आप बिज़नेस शुरू करना चाहते हैं तो फंडिंग का स्रोत जम्म एंड कश्मीर बैंक है जहां आपको अपने पिता के घर को गिरवी रखना होता है, और 14-15 प्रतिशत का ब्याज़ देना होता है."
जम्मू और कश्मीर का आर्थिक सर्वे?
इजाज़ अयूब इशारा करते हैं कि जम्मू और कश्मीर में साल 2017 के बाद से आर्थिक सर्वे छपा ही नहीं है जिसकी वजह से अर्थव्यवस्था के कई पहलुओं को समझना आसान नहीं होता.
वो कहते हैं, "हमें इस बारे में समाचार के माध्यम से ही पता चलता है. (यहां) सूचना को नियंत्रित करके रखा जाता है और डेटा के पहुंचने को रोका जाता है."
हमने इस बारे में जम्मू और कश्मीर के डायरेक्टोरेट ऑफ़ इकोनॉमिक एंड स्टैटिस्टिक्स, के अलावा सरकार के प्रवक्ता रोहित कंसल से भी संपर्क करने की कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
उधर जम्मू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर दीपांकर सेनगुप्ता के मुताबिक जब भी बजट प्रस्तुत होता है तो बजट के बारे में जानकारियों से पता चला जाता है कि वहां क्या खर्च हो रहा है.
वो कहते हैं, "जम्मू और कश्मीर में पहली बार हुआ है कि गांवों को पहली बार इतना धन सौंपा गया है. पहले अंश में हर पंचायत को 23 लाख रुपए मिले हैं."
जम्मू और कश्मीर में आर्थिक प्रगति को लेकर बनी समिति के सदस्य डॉक्टर मनोज भट्ट के मुताबिक ताज़ा आर्थिक सर्वे कुछ ही हफ़्तों में आ जाएगा.
सरकार को उम्मीद है कि जम्मू से शारजाह के लिए शुरू अंतरराष्ट्रीय उड़ानो से निवेश के प्रयासों को गति मिलेगी.
उद्योग और वाणिज्य प्रमुख सचिव रंजन प्रकाश ठाकुर के मुताबिक 28,000 करोड़ रुपए के निवेश के प्रस्ताव पहले ही आ चुके हैं, हालांकि जम्मू और कश्मीर ग्लोब इन्वेस्टर समिट में हो रही लगातार देरी पर वो कहते हैं कि प्रसासन की ज़्यादा दिलचस्पी उद्योगपतियों से सीधा संपर्क साधने की है.
वो कहते हैं, "समिट उस वक्त होगा जब (कोविड से जुड़े) हालात बेहतर होंगे और लोग सफ़र कर पाएंगे."
उधर जम्मू और कश्मीर में लोगों की निगाह होगी कि सरकारी वायदे कितने पूरे होंगे.
श्रीनगर में बिज़नेसमैन इशफ़ाक मीर कहते हैं, "हम डरे हुए हैं और हमें नहीं पता कि किस बात की उम्मीद करें. हमारी एक निगाह मीडिया पर रहती है कि वो क्या कह रही है, और हम मानसिक तौर पर खुद को बचाने की कोशिश करते हैं."
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