अजित पवार बनाम सुप्रिया सुले: जुदा होते रास्ते
महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावी नतीजे 24 अक्टूबर को आए.
बीजेपी-शिव सेना गठबंधन को चुनाव में जीत हासिल हुई लेकिन इसके बाद शिव सेना ने ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की मांग कर दी. मुख्यमंत्री पद में 50: 50 की हिस्सेदारी की मांग के चलते शिव सेना और बीजेपी का गठबंधन टूट गया. इसके बाद बहुमत का आंकड़ा जुटाने के लिए राजनीतक जोड़ तोड़ का खेल शुरू हुआ.
महाराष्ट्र विधानसभा के चुनावी नतीजे 24 अक्टूबर को आए.
बीजेपी-शिव सेना गठबंधन को चुनाव में जीत हासिल हुई लेकिन इसके बाद शिव सेना ने ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की मांग कर दी.
मुख्यमंत्री पद में 50: 50 की हिस्सेदारी की मांग के चलते शिव सेना और बीजेपी का गठबंधन टूट गया.
इसके बाद बहुमत का आंकड़ा जुटाने के लिए राजनीतक जोड़ तोड़ का खेल शुरू हुआ.
चुनावी नतीजों के आने के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) खासकर शरद पवार की इस बात के लिए प्रशंसा भी हुई कि वे बीजेपी को बहुमत हासिल करने से रोकने में कामयाब हुए.
नतीजे आने के दो दिन बाद दिवाली का त्यौहार था. इस दिन पवार परिवार के सभी सदस्य काठेवाड़ी स्थित अजित पवार के फॉर्म हाउस पर भाई दूज मनाने के लिए जमा हुए.
पहले पवार परिवार के घरेलू कार्यक्रमों में मीडिया के प्रवेश की अनुमति नहीं मिलती थी लेकिन इस साल का जश्न अपवाद के तौर पर सामने आया था.
हर किसी ने देखा कि भाई दूज के मौके पर सुप्रिया सुले ने अपने चचेरे भाई अजित पवार की कलाई पर राखी बांधी. दोनों ने साथ साथ मीडिया इंटरव्यू दिए. परिवार के इस आपसी बंधन को देखने वालों में शायद ही किसी ने कल्पना की होगी एक महीने के अंदर ही राजनीतिक घटनाक्रम में चीज़ें इतनी तेजी से बदल जाएंगी.
परिवार में कैसे हुई टूट?
उस दिन एक न्यूज चैनल को इंटरव्यू देते हुए सुप्रिया सुले ने अजित पवार से उनका एक पसंदीदा गाना गाने का लगातार अनुरोध किया.
हिचकते हुए अजित पवार ने दो पंक्तियां गुनगुनाईं, "मेरे दिल में आज क्या है, तू कहे तो मैं बता दूं.."
कोई अनुमान नहीं लगा सकता कि उस दिन अजित पवार के मन में क्या रहा होगा, लेकिन एक महीने बाद स्थिति पूरी तरह साफ़ है.
अजित पवार ने अपनी नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से विद्रोह कर दिया है और परिवार में टूट हो गई.
अजित पवार के विद्रोह के बाद कई सवाल उठे हैं, इसमें एक सवाल की चर्चा महाराष्ट्र की राजनीति में बीते कई सालों से हो रही है- शरद पवार का राजनीतिक उतराधिकारी कौन है? इस सवाल का जवाब हमें मिल गया है, क्या हम ऐसा कह सकते हैं?
अगर अजित पवार पूरी तरह से विद्रोही बने रहते हैं और एनसीपी में अपनी वापसी के सभी दरवाजे बंद कर लेते हैं तो क्या इसका मतलब ये निकाला जाए कि सुप्रिया सुले शरद पवार की राजनीतिक उतराधिकारी बन गई हैं? इसका जवाब अगर हां है तो क्या वे मुख्यमंत्री पद की दावेदार भी बनेंगी?
या फिर अजित पावर ने पार्टी से विद्रोह का रास्ता ही इसलिए चुना कि सुले मुख्यमंत्री पद की संभावित उम्मीदवार बन सकती थीं?
शरद पवार का राजनीतिक उतराधिकारी कौन?
यह सवाल शरद पवार, सुप्रिया सुले और अजित पवार से कई बार पूछे गए हैं.
शरद पवार ने हमेशा यह कहा है कि अजित पवार की दिलचस्पी राज्य की राजनीति में हैं, इसलिए वे राज्य की विधानसभा में हैं और सुप्रिया सुले की दिलचस्पी राष्ट्रीय मुद्दों, महिलाओं और शिक्षा जैसे मुद्दों पर कहीं ज्यादा है, इसलिए वे संसद में हैं.
यह हमेशा माना जाता रहा है कि पवार का यह जवाब उनकी उस रणनीति का हिस्सा है जिससे वे अपनी पार्टी और परिवार में राजनीतिक उतराधिकार के नाम पर किसी तरह की फूट पड़ने की आशंका को रोकते आए हैं.
अजित पवार के पार्टी से अलग बीजेपी के साथ जाने के बाद शरद पवार ने 23 नवंबर को एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित किया.
प्रेस कांफ्रेंस में उनसे यही सवाल एक बार फिर पूछा गया, उनसे पूछा गया कि क्या अजित पवार ने ये फैसला इसलिए लिया क्योंकि सुप्रिया सुले का नाम मुख्यमंत्री की रेस में था? इसके जवाब में शरद पवार ने कहा, "सुप्रिया सुले की राज्य की राजनीति में दिलचस्पी नहीं है. वे लोकसभा की सदस्य हैं. लोकसभा में उनका चौथा कार्यकाल है और उनकी दिलचस्पी राष्ट्रीय राजनीति में है."
अजित पवार हमेशा से मुख्यमंत्री की रेस में रहे हैं, लेकिन सुप्रिया सुले का नाम भी वैकल्पिक उम्मीदवार के तौर पर सामने आ रहा था. फरवरी, 2018 में बीबीसी मराठी ने अजित पवार से पूछा था क्या वे सुप्रिया सुले को महाराष्ट्र की पहली महिला मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं तो उनका जवाब था, "निश्चित तौर पर, कौन भाई अपनी बहन को मुख्यमंत्री बनते नहीं देखना चाहेगा?"
इसी इंटरव्यू में उन्होंने उतराधिकार के नाम पर परिवार के अंदर किसी विवाद से जुड़े सवाल पर कहा था, "दूसरे परिवारों में जो भी होता आया है वह पवार परिवार में नहीं होगा. मैं आपको इसका भरोसा दिलाता हूं."
हालांकि एनसीपी में हमेशा ताई कैंप (सुप्रिया सुले का कैंप) और दादा कैंप (अजित पवार का कैंप) को लेकर चर्चा होती रहती हैं.
राज्य की राजनीति में अजित पवार का प्रभाव ज्यादा है बावजूद इसके पार्टी के कुछ विधायक और कारपोरेटर्स ताई के नजदीकी के लिए जाने जाते हैं.
एनसीपी कार्यकर्ताओं के बीच भी यह चर्चा का मुद्दा रहा है कि शरद पवार की विरासत आखिर किसको मिलेगी.
अजित पवार के विद्रोह के बाद भी क्या पार्टी के सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं ने सुप्रिया सुले को शरद पवार का उतराधिकारी मान लिया है, यह स्पष्ट नहीं है.
क्या राजनीतिक उतराधिकारी परिवार से ही होना चाहिए?
अजित पवार की राजनीति पर करीबी नजर रखने वाले और न्यूज 18 लोकमत समूह के वरिष्ठ पत्रकार अद्वैत मेहता कहते हैं, "शरद पवार की राजनीतिक विरासत किसके पास होगी, अजित पवार या सुप्रिया सुले के पास, इसका तो जवाब मिल गया है लगता है लेकिन मुझे लगता है कि पवार की पूरी विरासत की जगह लेने वाले का फैसला हो गया हो, इसका जवाब अभी नहीं मिला है."
अद्वैत मेहता कहते हैं, "शरद पवार एक बार खुद कह चुके हैं कि राजनीतिक उतराधिकारी बनने के लिए परिवार से होना जरूर नहीं है. इसका मतलब है कि उनके बाद पार्टी की कमान पवार परिवार के बाहर भी जा सकती है. लेकिन अभी तक इसको लेकर सुप्रिया सुले और रोहित पवार के नामों की चर्चा हो रही है, जो परिवार के सदस्य ही हैं. जयंत पाटील का पवार से कोई पारिवारिक संबंध नहीं है लेकिन वे पवार के सबसे करीबी माने जाते हैं. हालांकि इन सबके बीच राजनीति की दिशा भी इस मुद्दे को तय करेगा."
अद्वैत मेहता के मुताबिक, "दूसरी ओर, हमें यह भी देखना होगा कि क्या अजित पवार शरद पवार की पहली पसंद थे? क्योंकि उन्होंने अजित पवार से पहले ही छगन भुजबल, विजय सिंह मोहिते पाटील और आर.आ. पाटील को मौके दिए थे. अजित पवार जब उपमुख्यमंत्री बने हैं तो यह उन्होंने विधायकों के समर्थन होने के दम पर किया है."
"उन्हें शायद इसका एहसास हो गया हो कि वे शरद पवार के राजनीतिक उतराधिकारी नहीं हो सकते. मौजूदा गठबंधन की बातचीत में, शरद पवार ने ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद की दावेदारी भी नहीं की है. शिव सेना के पास एनसीपी से महज दो विधायक ज्यादा हैं लेकिन शरद पवार पूरे कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री का पद शिव सेना को देने को तैयार हो गए. मेरे ख्याल से इस बात अजित पवार ने विद्रोह का रास्ता चुनने का फैसला लिया होगा."
लेकिन उतराधिकारी का सवाल बना हुआ है.
अजित से आगे निकलीं सुप्रिया
हालांकि, वरिष्ठ पत्रकार विजय चोरमारे के मुताबिक अब अजित या सुप्रिया का सवाल अप्रासंगिक हो चुका है.
वे कहते हैं, "पार्टी के मौजूदा संकट ने इस सवाल को खत्म कर दिया है. सुप्रिया सुले को बढ़त मिल चुकी है. दूसरी ओर, रोहित पवार का नाम प्रमोट किया जा रहा है. लेकिन मेरे ख्याल से उन्हें समय दिया जाना चाहिए. उन्होंने अब पार्टी और विधानसभा के कामकाज को सीखने का अनुभव हासिल करना होगा."
मौजूदा समय में, विजय चोरमारे के मुताबिक राजनीतिक विरासत का सवाल उतना गंभीर मसला भी नहीं है.
चोरमारे कहते हैं, "यह सवाल इस वक्त मुद्दा नहीं है. अभी सब कुछ शरद पवार के हाथों में है और जयंत पाटिल को पार्टी ने विधायक दल का नेता चुना है. उनकी भूमिका अहम है क्योंकि वे एनसीपी के राज्य अध्यक्ष हैं. हालांकि सुप्रिया सुले राज्य में ही हैं लेकिन उन्होंने अपना ध्यान दिल्ली की राजनीति पर ही केंद्रित रखा है. अगर महा विकास अगाड़ी की सरकार बनी और मुख्यमंत्री पद को लेकर शिव सेना और एनसीपी के बीच शेयरिंग हुई तो सुप्रिया सुले का नाम सामने आ सकता है."
जनता करेगी फ़ैसला
अजित पवार की राजनीति पर वरिष्ठ पत्रकार प्रताप अस्बे कई सालों से नजर रखते आए हैं. वे कहते हैं कि अजित या सुप्रिया का सवाल अभी नहीं सामने हो लेकिन शरद पवार की राजनीतिक उतराधिकारी कौन होगा, इसका फैसला तो लोग करेंगे.
अस्बे कहते हैं, "पवार भी ऐसी राय स्पष्ट तौर पर जाहिर कर चुके हैं. अगर वे किसी को प्रमोट करते हैं तो क्या लोग उन्हें स्वीकार करते हैं या नहीं, ये बड़ा सवाल है. पार्टी को यह देखना होगा कि लोग किसको पसंद करेंगे. परिवार और राजनीतिक विरासत दो अलग अलग चीजें हैं. राजनीतिक विरासत को आप केवल राजनीतिक कामों से आगे बढ़ा सकते हैं. राहुल गांधी को सोनिया गांधी के राजनीतिक उतराधिकारी के तौर पर चुना गया लेकिन नतीजा क्या रहा है, ये हमलोग जानते हैं. हर कोई सोचा था कि बाल ठाकरे के राजनीतिक उतराधिकारी राज ठाकरे होंगे. लेकिन विरासत मिली उद्धव ठाकरे को, उन्होंने अपना दमखम साबित किया. हर किसी को राजनीतिक विरासत आगे ले जाने का दमखम साबित करना पड़ता है."
सुप्रिया सुले महाराष्ट्र में सरकार बनाने की कोशिशों वाली बैठकों में शामिल रही हैं.
उनकी इन बैठकों में मौजूदगी से भी नए तरह के राजनीतिक समीकरणों के कयास लगाए जा रहे हैं. सुप्रिया सुले दिल्ली में हुई बैठक में थीं.
अजित पवार के विद्रोह के बाद वे मुंबई में हमेशा शरद पवार के साथ मौजूद रहीं. बाद में पवार के प्रेस कांफ्रेंस में भी वो मौजूद दिखीं.
उन्होंने अजित पवार से वापस लौट आने की भावुक अपील भी की. इस मुद्दे पर उनका व्हाट्सऐप स्टेट्स भी सुर्खियों में रहा.
दूसरी ओर अजित पवार ने ट्वीट किया, "मैं अभी भी नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी में हूं. शरद पवार हमारे नेता हैं. "लेकिन शरद पवार ने तुरंत ही इसका खंडन कहते हुए लिखा, "अजित पवार का बयान झूठा है और वे लोगों के बीच भ्रम और अफवाह फैला रहे हैं."
लेकिन कहा जाता है कि राजनीति में कुछ भी संभव है. फिलहाल पाटी की पूरी कमान शरद पवार के हाथों में है.