वो 5 कारण, तलाक की नौबत के बीच साथ रहने को मजबूर हुए शिवसेना भाजपा
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नई दिल्ली। शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी दो दशक से भी अधिक समय से एक दूसरे के सहयोगी हैं। लेकिन पिछले कुछ समय में शिवसेना और र भाजपा के बीच जमकर तकरार देखने को मिली। शिवसेना ने तमाम मौकों पर ना सिर्फ भाजपा, केंद्र सरकार बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर हमला बोला। यही नहीं कई मौकों पर विपक्ष ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा तो वह विपक्ष के साथ भी खड़ा नजर आया। दोनों ही पार्टियों के बीच लगातार बढ़ते तनाव के बाद माना जा रहा था कि इस बार लोकसभा चुनाव दोनों ही दल अलग-अलग लड़ेंगे। लेकिन इन तमाम तकरार को दरकिनार करते हुए भाजपा-शिवसेना में आगामी चुनाव को लेकर बात बन गई है और दोनों ही दल मिलकर एक साथ चुनाव लड़ेंगे।
हिंदू वोटों के बिखराव का खतरा
शिवसेना और भाजपा के बीत तीखी बयानबाजी के बाद भी आखिर किस वजह से दोनों दलों के बीच गठबंधन हुआ उसपर नजर डालना काफी अहम है। दरअसल जिस तरह से देशभर में विपक्ष लगातार भाजपा और केंद्र सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में जुटा है उसके बीच भाजपा एक बार फिर से सत्ता में वापसी करने के लिए अपने पुराने साथियों को नाराज करने का जोखिम नहीं लेना चाहती है। इस कड़ी में महाराष्ट्र एक अहम कड़ी है। ना सिर्फ भाजपा बल्कि शिवसेना भी भाजपा से अलग होकर प्रदेश में हिंदू वोटरों के बिखराव का जोखिम नहीं लेना चाहती है।
एक ही मुद्दे पर अलग-अलग लड़ना पड़ता भारी
1989 से दोनों ही दल एक दूसरे के साथ गठबंधन में हैं, दोनों ही पार्टियों ने एक दूसरे के राजनीतिक मकसद को मजबूती दी है और चुनावी रण में एक दूसरे को मजबूत किया है। हालांकि गठबंधन में शिवसेना ने लंबे समय तक हावी रहा है। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से भाजपा ने जबरदस्त जीत दर्ज की और अकेले दम पर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी उसकी वजह से शिवसेना बैकफुट पर आ गई थी। यही वजह थी कि शिवसेना ने बतौर जूनियर भाजपा के साथ प्रदेश में गठबंधन किया था। लेकिन हर संभव मौके पर शिवसेना ने भाजपा की आलोचना का कोई मौका नहीं छोड़ा। दरअसल दोनों ही दल राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की राजनीति करते हैं, लिहाजा एक ही मुद्दे पर दोनों दलों का एक दूसरे के खिलाफ चुनाव
दोनों ने एक दूसरे को किया मजबूत
शिवसेना और भाजपा के राजनीतिक सफर की बात करें तो जबसे दोनों ही दल साथ हैं शिवसेना ने हमेशा से ही भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करने का काम किया है। हालांकि भाजपा महाराष्ट्र में उतनी मजबूत नहीं हो सकी थी, लेकिन शिवसेना के साथ गठबंधन का उसे राष्ट्रीय स्तर पर जरूर फायदा हुआ था। शुरुआती चरण की बात करें तो शिवसेना को महाराष्ट्र विधानसभा में अधिक सीट मिली थी और भाजपा को लोकसभा में अधिक सीटें हासिल हुई थी। लेकिन 2014 में यह समीकरण बदल गया था।
अलग-अलग लड़ने में नुकसान
2014 में भाजपा ने लोकसभा चुनाव में 24 सीटों पर जीत दर्ज की और शिवसेना ने 20 सीटों पर जीत दर्ज की। जबकि विधानसभा चुनाव में दोनों दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। दरअसल लोकसभा चुनाव के बाद शिवसेना में इस तरह की विचार सामने आया कि गठबंधन में भाजपा को अधिक लाभ होता है, यही वजह थी कि दोनों दलों ने अलग-अलग विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन चुनाव नतीजों के बाद भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई और एक बार फिर से दोनों दलों को चुनाव के बाद गठबंधन करना पड़ा और प्रदेश में शिवसेना-भाजपा गठबंधन की सरकार बनी।
एनसीपी-कांग्रेस की चुनौती
इन तमाम व्यक्तिगत मतभेद के अलावा शिवसेना और भाजपा को एनसीपी की बड़ी चुनौती ना सिर्फ महाराष्ट्र में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर मिल रही है। एनसीपी दोनों ही दलों के लिए मुख्य चुनौती है। जिस तरह से एनसीपी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन का फैसला लिया उसके बाद भाजपा और शिवसेना के पास गठबंधन के अलावा कोई और विकल्प शेष नहीं बचा था।
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