मोदी की वजह से ही बीजेपी-शिवसेना में बढ़ी थी खटास, अब नहीं रहेंगे साथ, जानिए बड़ी बातें
बीजेपी और शिवसेना की दोस्ती लगभग 3 दशक पुरानी रही है। आक्रामक हिंदुत्व की हिमायती शिवसेना ने बीजेपी का साथ 1989 में पकड़ा और दोनों पार्टियों ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में गठबंधन किया
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी दोनों को ही नजर अब आगामी लोकसभा चुनाव पर है। इसी बीच 2019 से पहले एनडीए को बड़ा झटका लगा है। एनडीए के अहम सहयोगी दल शिवसेना ने शुक्रवार को आगामी चुनाव को लेकर बड़ी घोषणा की है। शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि 2019 का अगला लोकसभा चुनाव और महाराष्ट्र का विधानसभा चुनाव एनडीए से अलग होकर पार्टी अपने दम पर लड़ेगी। इसके साथ ही, उद्धव ठाकरे की पदोन्नति करते हुए उन्हें पार्टी की कोर टीम का हिस्सा बनाया गया है। बीजेपी और शिवसेना के बीच खटास तो नरेंद्र मोदी के बीजेपी में बढ़ते कद के साथ ही शुरू हो गई थी। 2012 में बालासाहब ठाकरे ने सार्वजनिक तौर पर सुषमा स्वराज को बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार बताया था।
शिवसेना ने बीजेपी का साथ 1989 में पकड़ा था
बीजेपी और शिवसेना की दोस्ती लगभग 3 दशक पुरानी रही है। आक्रामक हिंदुत्व की हिमायती शिवसेना ने बीजेपी का साथ 1989 में पकड़ा और दोनों पार्टियों ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में गठबंधन किया। इसके बाद से दोनों पार्टियां बेस्ट फ्रेंड की तरह बीएमसी चुनाव में एक-दूसरे के साथ रहीं और लगातार बीएमसी पर राज भी किया। बीजेपी और शिवसेना गठबंधन में रहकर महाराष्ट्र की सत्ता पर भी काबिज हुए। 1995 से 1999 तक दोनों पार्टियों की मिली-जुली सरकार राज्य में रही। इस सरकार में मुख्यमंत्री बने शिवसेना के मनोहर जोशी और फिर लगभग 7-8 महीनों के लिए नारायण राणे। हालांकि, बाद में शिवसेना में हुए आंतरिक बिखराव के बाद राणे पाला बदलकर कांग्रेस में शामिल हो गए।
शिवसेना ने गुजरातियों को बताया था बाहरी
नरेंद्र मोदी के बीजेपी में बढ़ते कद के साथ ही दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते में दरार पड़नी शुरू हो गई थी। 2012 में बालासाहब ठाकरे ने सार्वजनिक तौर पर सुषमा स्वराज को बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के लिए सबसे योग्य उम्मीदवार बताया था। 2013 में मोदी बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिए गए। अपने संघर्ष के दिनों में शिवसेना ने गुजरातियों को बाहरी बताकर निशाना बनाया था। 2014 लोकसभा चुनावों में दोनों पार्टियों लेकिन एक साथ ही रहीं।
शिवसेना बीजेपी को 119 से अधिक सीटें देने के लिए तैयार नहीं थी
2014 विधानसभा चुनावों से पहले भी दोनों के रिश्तों के बीच खटास बढ़ गई और दोनों पार्टी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकीं। शिवसेना बीजेपी को 119 से अधिक सीटें देने के लिए तैयार नहीं थी और बीजेपी को अब इस रिश्ते में 'छोटे भाई' वाली भूमिका नामंजूर थी। चुनावों में दोनों पार्टियां अलग-अलग ही लड़ीं। हालांकि, चुनाव बाद हुए गठबंधन में शिवसेना ने बीजेपी को समर्थन दे दिया। शिवसेना और बीजेपी ने गठबंधन में रहकर 25 सालों तक बीएमसी पर राज किया। 2017 में इस रिश्ते में दरार और गहरी उस वक्त हो गई जब पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे ने बीजेपी से अलग होकर बीएमसी चुनाव लड़ने की घोषणा की। चुनाव के बाद एक बार फिर दोनों पार्टियां साथ में आ गईं, लेकिन अब बीजेपी और शिवसेना पहले जैसे दोस्त नहीं रहे।
असहज महसूस कर रही थी शिवसेना
गौरतलब है कि राज्य में भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन में शिवसेना काफी असहज महसूस कर रही है और उसने लगातार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कुछ नीतियों का खुलकर विरोध भी किया है। भाजपा-शिवसेना गठबंधन में दरार उस वक्त उभर कर सामने आयी थी जब 2017 के बीएमसी चुनाव दोनों ही दलों ने अपने दम पर अलग लड़ने का फैसला किया था। इस पूरे चुनाव कैंपने के दौरान दोनों के बीच वाकयुद्ध चला और भ्रष्टाचार और अक्षमता का भी आरोप लगाया गया। इस चुनाव में शिवसेना बड़ी पार्टी बनकर उभरी और उसने 227 सदस्यीय नगरपालिका में से 84 सीटें जीती जबकि भाजपा 82 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर रही।इस वक्त महाराष्ट्र में भाजपा और शिवसेना की गठबंधन वाली सरकार है। 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा में भाजपा के पास 122 सीटें है जबकि शिवसेना के 63 सीटें है। वहां पर सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत का आंकड़ा 145 होना चाहिए। ऐसे में अगर शिवसेना राज्य की सत्ता से हटने का भी फैसला करती है तो मौजूदा फड़णवीस सरकार को भी खतरा हो सकता है।
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