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पहली बार, ऑस्ट्रेलिया के राज्य ने नियुक्त किया ऑटिज्म मंत्री

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ऑटिजम दुनियाभर में समस्या है

कैनबरा, 15 अगस्त। ऑस्ट्रेलिया में पहली बार ऑटिज्म मंत्री नियुक्त किया गया है. साउथ ऑस्ट्रेलिया के प्रीमियर (मुख्यमंत्री) पीटर मैलीनोसकस ने घोषणा की है कि एमिली बॉर्क 'अस्सिटेंट मिनिस्टर फॉर ऑटिज्म' होंगी. मुख्यमंत्री मैलीनोसकस ने कहा कि इस स्थिति के लोगों का बेहतर प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के मकसद से यह कदम उठाया गया है.

उन्होंने कहा, "मैंने बहुत सारे साउथ ऑस्ट्रेलियाइयों से सुना है कि अब वक्त आ गया है कि राज्य सरकार ऑटिज्म को प्राथमिकता बनाए और समर्पित कोशिश करे. इसीलिए हमने यह नई भूमिका बनाई है. हम ऑटिज्म से जुड़ी समावेशी रणनीति लागू करने के प्रतिबद्ध हैं, जिसकी शुरुआत स्कूलों से होगी."

मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि चुनाव किए अपने वादे को निभाने के लिए हर सरकारी प्राथमिक स्कूल में एक प्रशिक्षित शिक्षक की नियुक्ति होगी और प्री-स्कूलों यानी आंगनवाड़ियों में ऐसे कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जाएगी जिन्हें ऑ टिजम संबंधी प्रशिक्षण मिला हो. इसके लिए 2.88 करोड़ ऑस्ट्रेलियाई डॉलर यानी लगभग डेढ़ अरब रुपये का निवेश किया जाएगा.

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राज्य सरकार ने कहा है कि बाल केंद्रों में सहायता उपलब्ध कराने, ऑटिज्म रणनीति बनाने और 100 अतिरिक्त स्पीच पैथोलॉजिस्ट, ऑक्युपेशनल थेरेपिस्ट, साइकॉलजिस्ट और काउंसिलर उपलब्ध कराने के लिए करीब 5 करोड़ डॉलर यानी लगभग 2.8 अरब रुपये का निवेश किया जाएगा.

अपनी नई भूमिका में बॉर्क राज्य में ऑटिज्म एजुकेशन अडवाइजरी ग्रुप का गठन करेंगी जिसमें ऑटिज्म से पीड़ित लोग, ऑटिज्म -पीड़ित बच्चों के माता-पिता, विशेषज्ञ और अन्य सामुदायिक संगठन शामिल होंगे. बॉर्क ने माना कि उन्हें ऑटिज्म का निजी अनुभव नहीं है लेकिन उन्होंने कहा कि उन्होंने ईमेल, पत्र-व्यवहार, फोन और अन्य माध्यमों से इस बारे में सालों तक जानकारी जुटाई है.

बॉर्क ने कहा, "मैं तीन बच्चों की मां हूं तो जानती हूं कि हर माता-पिता और अभिभावक चाहता है कि उनका बच्चा अपनी व्यक्तिगत क्षमताओं को हासिल कर पाए."

एक अनुमान के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में दो लाख लोग ऑटिज्म से पीड़ित हैं और देश की विकलांगता बीमा योजना के मुताबिक यह सबसे बड़ा प्राथमिक अपगंता समूह है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ऑटिज्म से पीड़ित लोगों की दसवीं क्लास तक पढ़ पाने की संभावना अन्य लोगों के मुकाबले आधी होती है जबकि अन्य विकलांग लोगों के मुकाबले उनके बेरोजगार रहने की संभावना तीन गुना ज्यादा होती है.

ऑटिज्म अवेयरनेस ऑस्ट्रेलिया नामक संस्था की निकोल रॉजरसन कहती हैं कि यह सही दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है. डॉयचे वेले हिंदी से बातचीत में उन्होंने कहा ऑस्ट्रेलिया में हर सौ में से एक व्यक्ति ऑटिस्टिक है और उन्हें स्कूलों में मदद देने का अर्थ होगा कि आने वाले सालों में वे ज्यादा आत्मनिर्भर होंगे.

यूं तो ऑस्ट्रेलिया में नेशनल डिसेबिलिटी इंश्योरेंस एजेंसी है जो जो विकलांग लोगों के लिए हर तरह की सुविधा सुनिश्चित करने का काम संभालती है. फिर भी, जानकार महसूस करते हैं कि ऑटिस्टिक लोगों के लिए खासतौर पर स्कूलों में ज्यादा मदद की जरूरत है. रॉजरसन बताती हैं, "मेरे ख्याल से साउथ ऑस्ट्रेलिया की सरकार पहली ऐसी सरकार है जिसने इस जरूरत को समझा है कि ऑटिस्टिक विद्यार्थियों को मिल रही मदद नाकाफी है. ऐसे में ना सिर्फ एक नीति बनाना बल्कि इस क्षेत्र में एक मंत्री की नियुक्त एक बहुत अहम कदम है."

क्या है ऑटिज्म?

ऑटिज्म को तकनीकी भाषा में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसॉर्डर (एएसडी) कहा जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह कई तरह की समस्याओं का एक समूह होता है जिन्हें सामाजिक बातचीत और सामाजिक रूप से संवाद में मुश्किल के अलग-अलग स्तरों पर बांटा जा सकता है. ऑटिज्म के मरीजों को व्यवहार और सामाजिक मेलजोल में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है जो हर मरीज के लिए अलग हो सकती हैं. साथ ही मरीज को एक काम से दूसरे काम में जाने, जानकारियों को ग्रहण कर पाने और प्रतिक्रिया देने में भी दिक्कत हो सकती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठ कहता है कि ऑस्टिस्टिक लोगों की जरूरतें और क्षमताएं भी अलग-अलग हो सकती हैं और वे समय के साथ बदल भी सकती हैं. एक तरफ तो कुछ ऑटिस्टिक लोग स्वतंत्र रूप से जीवन यापन कर सकते हैं जबकि कुछ लोगों को ताउम्र सहारे की जरूरत होती है.

ऑटिज्म की शुरुआत गर्भ में हो जाती है

ऑटिज्म का असर पढ़ाई और रोजगार की संभावनाओं पर होने के कारण बहुत से विशेषज्ञ इन लोगों के लिए विशेष सुविधाओं की मांग करते रहे हैं. ऐसे बच्चों या लोगों के परिवारों को भी विशेष रूप से समर्थन और मदद की मांग की जाती है. डबल्यूएचओ कहता है कि ऑटिस्टिक लोगों को लेकर सामाजिक दृष्टिकोण भी एक समस्या है जिस कारण राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर नीतिगत मदद जरूरी है ताकि ऑटिज्म के साथ जीने वालों के जीवन की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके.

भारत में ऑटिज्म

भारत में भी ऑटिज्म एक बड़ा मसला है. ऑटिज्म इंडिया नामक संस्था के मुताबिक दस साल से कम उम्र के बच्चों में लगभग एक फीसदी इस समस्या से जूझ रहे हैं जबकि हर आठ में से एक बच्चा किसी न्यूरोलॉजिकल समस्या से पीड़ित है. संस्था की रिपोर्ट कहती है कि 2011 की जनगणना में 1.3 प्रतिशत लोगों में न्यूरोलॉजिकल समस्या होने की बात कही गई थी लेकिन असली आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है.

मिला ऑटिज्म का इलाज

इस संबंध में इन्कलेन (आईएनसीएलईएन) ट्रस्ट इंटरनेशनल ने एक अध्ययन किया था जिसमें इस समस्या के लिए सरकारी नीति की जरूरत पर जोर दिया या. ट्रस्ट के नरेंद्र अरोड़ और उनके साथियों ने घर-घर जाकर यह अध्ययन किया. देश के पांच अलग-अलग हिस्सों से संस्था ने 2 से 5 साल के 2,057 बच्चों और 6 से 9 साल के 1,907 बच्चों को चुनकर उनका अध्ययन किया गया.

इस टीम ने अपने अध्ययन में पाया ऑटिज्म का स्तर अब तक के आंकड़ों से ज्यादा है. एक इंटरव्यू में अरोड़ा ने कहा कि 2011 के आंकड़े 'बहुत कम अनुमान' हैं.

Source: DW

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English summary
in a first australian state gets new autism minister
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