सावन विशेष: हिमाचल के काली नाथ में महाकाली ने किया था इस गलती का प्रायश्चित
शिमला। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में विख्यात प्राचीन काली नाथ महोदव का ऐतिहासिक मंदिर देहरा उपमंडल के कालेश्वर में व्यास नदी के तट पर स्थित है। यूं तो इस मंदिर के साथ शांत रूप में बहती व्यास नदी की अविरल धारा में पूर्णिमा, अमावस्या एवं ग्रहण इत्यादि पर लोगों द्वारा स्नान करके पुण्य प्राप्त किया जाता है। लेकिन सावन महीने में इस स्थल पर पूजा अर्चना एवं स्नान का विशेष महत्व है। आज भी श्रद्धालुओं का सुबह से ही दर्शनों के लिए यहां तांता लगा हुआ है।
जमीन में धंसकर क्या बता रहा है शिवलिंग?
कालेशवर में स्थापित कालेशवर महादेव मंदिर में ऐसा शिवलिंग है, जो जमीन के अंदर धंसता जा रहा है। हालांकि आम तौर पर शिवलिंग धरती के ऊपर ही होता है। लेकिन यहां जमीन के अंदर है व ऐसी मान्यता है कि ये शिवलिंग हर साल जौ भर जमीन के अंदर समा रहा है। ये शिवलिंग हर किसी के मन मस्तिक में कौतूहल पैदा करता है। यहां बड़ी तादाद में श्रद्धालु दर्शनों को आते हैं।
गर्भ गृह में शिवलिंग से जुड़ी है ये मान्यता
उज्जैन के महाकाल मंदिर के बाद हिमाचल प्रदेश में कालेश्वर मंदिर एकमात्र ऐसा मंदिर है जिसके गर्भ गृह में ज्योतिर्लिंग स्थापित है। यहां भगवान शिव एक अद्भुत लिंगरूप में विराजमान हैं यहां शिवलिंग जलहरी से नीचे स्थित हैं। ऐसी मान्यता है कि जब धरती पर ज्यादा पाप बढ़ जायेगा तो शिवलिंग पाताल लोक पूरी तरह समा जाएगा। कहा जाता है कि इसी मंदिर में पाताल जाने का एक गुप्त रास्ता भी है। जहां से पाताल होकर कैलाश पर्वत पहुंच कर ऋषिमुनि शिव तपस्या करने जाते थे।
पांडवों से जुड़ा है इतिहास
कालेशवर का अर्थ है कालस्य ईश्वर अर्थात काल का स्वामी और काल के स्वामी शिव हैं। कालेश्वर में स्थित कालीनाथ मंदिर का इतिहास पांडवों से जुड़ा है। जनश्रुति के अनुसार इस स्थल पर पांडव अज्ञात वास के दौरान आए थे। जिसका प्रमाण व्यास नदी तट पर उनके द्वारा बनाई गई पौड़ियों से मिलता है। एक अन्य किवदंती के अनुसार महर्षि व्यास ने यहां घोर तपस्या की थी इसका प्रमाण इस स्थल पर स्थित ऋषि मुनियों की समाधियों से मिलता है। इस मंदिर परिसर में कालीनाथ के अतिरिक्त राधा कृष्ण, रुद्र, पांच शिवालय सहित नौ मंदिर तथा 20 मूर्तियां अवस्थित हैं।
ये है मंदिर का इतिहास, ऐसे बना खास...
एक सर्वेक्षण के अनुसार मंदिर 15वीं सदीं का बना हुआ है। जिसके अनुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों, कुटलैहड़ एवं जम्मू की महारानी तथा राजा गुलेर ने करवाया था। इस तीर्थ स्थल के साथ महाकाली के विचरण का महात्म्य भी जुड़ा है। ऋगवेद के अनुसार सतयुग में हिमाचल की शिवालिक पहाड़ियों में दैत्य राज जालंधर का आंतक भरा सम्राज्य था। दैत्य राज के आतंक से निजात पाने के लिए सभी देवता एवं ऋषि मुनियों ने भगवान विष्णु के दरबार में फरियाद की। देवों, ऋषियों, मुनियों ने सामर्थ्य अनुसार अपनी शक्तियां प्रदान करने पर विराट शक्ति महाकाली प्रकट हुई। जिनके द्वारा सभी राक्षसों का अंत करने के उपरांत महाकाली का क्रोध शांत करने के लिए भगवान शिव रास्ते में लेट गए और उनके स्पर्श से महाकाली शांत हुई। महाकाली इस गलती का प्रायश्चित करने के लिए वर्षों हिमालय पर विचरती रहीं और एक दिन इसी स्थान पर व्यास के किनारे भगवान शिव को याद किया। भगवान शिव ने महाकाली को दर्शन दिए और इस पावन स्थली पर महाकाली ने प्रायश्चित किया। उसी समय यहां ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई और इस स्थान का नाम महाकालेश्वर पड़ गया।