दर्दनाक हादसे में खोया था इकलौता बेटा तो पिता ने छोड़ दिया 144 करोड़ का कारोबार
शिमला। करीब चार साल पहले हैदराबाद के एक कालेज के छात्र अपने एजुकेशनल टूर पर हिमाचल भ्रमण पर आये तो उन्हें क्या पता था कि वह वापिस नहीं लौट पायेंगे। 24 छात्रों ने हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला के थलौट में बह रही व्यास नदी में जल समाधि ले ली थी। इस हादसे की यादें उस समय ताजा हो गईं जब हैदराबाद से मृतक छात्रों के परिजन थलौट में घटनास्थल पर जुटे व अपने लाडलों को श्रद्धांजलि दी।
थलौट में हुआ था दर्दनाक हादसा
मंडी जिला के थलौट में कल-कल बहती ब्यास नदी के किनारे हैदराबाद से आये परिजन अपने लाडलों का चर्तुवार्षिक श्राद्ध करने के लिये जुटे तो हर आंख रोयी। मातम के इस महौल में किसी ने अपने लाडलों की याद में घटनास्थल पर ब्यास नदी में स्नैक्स बहाए तो किसी ने कोल्ड ड्रिंक्स, किसी ने जाप किया तो कोई यहां के पत्थर घर ले गए। इन परिवारों के सिर्फ पुरुष सदस्य ही यहां आए हुए थे। करीब डेढ़ घंटे तक परिजन थलौट में व्यास नदी के किनारे वहीं पर बैठे रहे जहां उनके लाडले फोटो खिंचवाते वक्त नदी के तेज बहाव में बह गए थे। हादसे के वक्त जिस पत्थर पर 24 इंजीनियरिंग छात्र फोटो खिंचवा रहे थे, उसे परिजन करीब 2 घंटे तक एकटक निहारते रहे और अपने मोबाइल में उनके चित्र देख यादों में खो गए। इस दौरान मंडी प्रशासन की ओर से एक अधिकारी और पुलिस के जवान मौके पर मौजूद रहे।
बच्चों को श्रद्धांजलि देने आए परिजन
हैदराबाद से यहां आए ए. राधाकृष्णन ने बताया कि इस हादसे को वह कभी नहीं भुला सकते और चार वर्ष बीतने पर वह अपने बच्चों को श्रद्धांजलि देने यहां आए हैं। उन्होंने अभिभावकों से आह्वान किया कि वे अपने बच्चों को हिमाचल प्रदेश भेजने से पहले उनकी सुरक्षा सुनिश्चित कर लें ताकि ऐसे हादसों से बचा जा सके। साथ ही उन्होंने तेलंगाना सरकार को हादसे के वक्त किया हुआ वो वादा भी याद दिलाया जिसमें घटनास्थल पर स्मारक बनाने की बात कही गई थी। उन्होंने कहा कि यदि स्मारक बनता है तो इससे कई लोगों को पता चलेगा कि ऐसे हादसों से खुद को सुरक्षित रखना होगा।
घटना के बाद परिजनों का दर्द
हैदराबाद
से
ही
आए
एक
अन्य
अभिभावक
रॉबिन
बोस
ने
अपनी
बात
रखते
हुए
कहा
कि
जिम्मेदारी
से
बचने
के
लिए
हादसे
के
लिए
बच्चों
को
दोषी
ठहराया
गया
जबकि
यह
लापरवाही
वीएनआर
इंस्टीट्यूट,
लारजी
डैम
और
प्रशासन
की
है।
के.आर.वी.के.
प्रसाद
का
कहना
है
कि
विगनाना
ज्योति
इंस्टीच्यूट
ऑफ
इंजीनियरिंग
कालेज
के
एक
प्रोफेसर
की
गलत
पहचान
से
उसके
बेटे
केसरी
हर्षा
की
लाश
उन्हें
नहीं
मिल
पाई
क्योंकि
घटना
के
बाद
प्रशासन
ने
उन्हें
5
दिन
बाद
वापस
घर
भेज
दिया
था
और
घर
पहुंचते
ही
एम.
शिवा
प्रकाश
की
लाश
तो
आई
लेकिन
उनके
बेटे
केसरी
हर्षा
की
लाश
नहीं
पहुंची।
कुछ
दिन
बाद
एम.
शिवा
प्रकाश
के
नाम
से
और
लाश
आ
गई
तो
वे
हैरान
रह
गए,
जिससे
उन्हें
काफी
मानसिक
परेशानी
हुई
और
डी.एन.ए.
तक
कराना
पड़ा।
बाद
में
जांच
से
पता
चला
कि
बच्चों
के
साथ
घूमने
गए
कालेज
के
एक
प्रोफेसर
की
गलत
पहचान
से
उनके
बेटे
की
लाश
किसी
और
परिवार
को
भेज
दी
गई
और
उन्होंने
उसका
अंतिम
संस्कार
अपने
बेटे
की
लाश
समझ
कर
किया
और
बाद
में
जब
दूसरी
लाश
आई
तो
वह
उनके
ही
बेटे
की
निकली,
जिससे
दोनों
लाशों
का
अंतिम
संस्कार
एक
ही
परिवार
कर
पाया
जबकि
के.आर.वी.के.
प्रसाद
का
परिवार
आज
भी
बेटे
की
लाश
के
दर्शन
से
वंचित
है।
लिहाजा
वे
4
वर्ष
बाद
सभी
बच्चों
की
आत्मा
की
शांति
के
लिए
थलौट
आए
हैं।
औलादों के खोने के गम में डूबे माता-पिता
हादसे में अपने एकमात्र बेटे ऋत्विक को खोने वाले राम मोहन राव अब बिना औलाद के अपनी पत्नी के साथ दिन काट रहे हैं। यहां नम आंखों के साथ राम मोहन राव ने कहा कि ऋत्विक और केसरी हर्षा आपस में दोस्त थे। दोनों साथ रहते थे और घटना के दिन उसने पौने 7 बजे बेटे के फोन पर बात करनी चाही तो उसके किसी साथी ने फोन उठाकर बताया कि उनका बेटा यहां बाजार में कहीं खो गया और फोन काट दिया। थोड़ी देर बाद टीवी पर समाचार आया कि हिमाचल में घूमने आए छात्र पानी में बह गए तो उससे उन्हें आघात लगा। एक अन्य अभिभावक ने बताया कि उनका एक ही बेटा था और उसकी जान चले जाने के बाद उन्होंने अपना 144 करोड़ सालाना टर्न ओवर का कारोबार करना ही छोड़ दिया है।
कॉलेज प्रबंधन पर लापरवाही के आरोप
परिजनों ने इस पूरे मामले में विगनाना ज्योति इंस्टीच्यूट ऑफ इंजीनियरिंग कालेज की कथित लापरवाही पर कोर्ट केस कर रखा था और अब सुनवाई में यह बात सामने आई है कि कॉलेज प्रबंधन उनके बच्चों को इंडस्ट्रियल टूर के बहाने यहां लाया और बिना स्थानीय कोच हायर किए बच्चों को रिस्की पर्यटन स्थलों की ओर ले गए, जिससे उनके बच्चों को अपने प्राण प्रबंधन के फैकल्टी मेंबर और गाइड की लापरवाही से त्यागने पड़े।
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