गणेश चतुर्थी: यहां नदी में नहीं किया जाता गणपति का विसर्जन
रोचक बात ये है कि मेले के अंतिम दिन गणेश भगवान के हारियान टाला बांधने की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। अपने आप में अद्भुत इस परंपरा के निर्वहन के लिए गांव के लोग आजकल तैयारियों में जूट गए हैं।
शिमला। गणेश चतुर्थी को हर घर में भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करने की परंपरा है और ठीक 11 दिनों के बाद मूर्ति का जल में विसर्जन किया जाता है। इस आशा के साथ कि गणपति भगवान अगले साल भी इसी तरह से लोगों के घरों में आएं और साथ में खुशहाली भी लाएं। ग्यारह दिनों तक गणेश भगवान के समक्ष घर का हरेक सदस्य पूजा अर्चना करता है और कथा पाठ आदि होता है।
वहीं हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले के ज्वालापुर इलाके में एक ऐसा भी गांव है जहां पर गणेश भगवान वाद्ययंत्रों की धुन पर मंदिर से बाहर निकलते हैं और पूरे ग्यारह दिन तक मंदिर से बाहर अपने हारियान क्षेत्र के भ्रमण पर रहते हैं। हालांकि परिक्रमा केवल नौ दिन ही होती है और बचे तीन दिनों में देवता के विशेष स्थान में मेला आयोजित किया जाता है। विशेष बात ये है कि इस गांव में गणेश भगवान की मूर्ति का जल में विसर्जन नहीं होता है। रोचक बात ये है कि मेले के अंतिम दिन गणेश भगवान के हारियान टाला बांधने की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। जिसे गणेश विसर्जन माना जाता है। अपने आप में अद्भुत इस परंपरा के निर्वहन के लिए गांव के लोग आजकल तैयारियों में जूट गए हैं।
जानकारी के मुताबिक ज्वालापुर क्षेत्र के भटवाड़ी गांव में गणेश भगवान का अति प्राचिन मंदिर है। इस मंदिर में हर वर्ष की तरह इस साल भी 25 अगस्त को गणेश चतुर्थी अवसर पर 18 वाद्ययंत्रों की धुनों के साथ गणेश भगवान की भव्य झांकी निकलेगी। ये गांव ब्राह्मणों का गांव है और देव कार्यों को पूरा करवाने में अन्य समुदाय के लोगों के अलावा ब्राह्मणों की विशेष भूमिका रहती है। स्थानीय लोगों के मुताबिक 25 अगस्त को ही देवता के प्राचिन भंडार से एक दिव्य रथ निकलेगा जिसे खारा कहा जाता है।
ये दिव्य रथ साल में एक बार ही इस दिन यानि गणेश चतुर्थी को ही निकलता है। मूर्ति को मंदिर पहुंचाया जाएगा जिसके बाद हर समुदाय के लोगों को बुलाने के लिए परंपरागत आवजें लगाई जाएंगी। इसके पश्चात ये सभी लोग अपने-अपने घरों से मशालें लेकर मंदिर पहुचेंगे, जहां पर इन मशालों को इकऋ जलाया जाएगा। इस भयानक आग में देवता के सात गुर नृत्य करते हैं। वहीं उसी दिन रात को भूत-प्रेतों को भी भगाया जाता है तो वहीं अगले दिन प्रातरू के समय देवताओं के गुरों के समक्ष पूछ डाली जाती है।
भटवाड़ी गांव में नहीं आता कोई अन्य देवता
भटवाड़ी गांव में नरोल होने के कारण किसी भी अन्य देवता को अपने की अनुमति नहीं है। ये पूरा गांव ब्राह्मणों का है और परंपरानुसार ब्राह्मणों के घरों में तुलसी को रखा जाना आवश्यक होता है। लेकिन इस गांव के ब्राह्मण अपने घरों में तुलसी नहीं रखते हैं। मान्यता है कि तुलसी व गणेश भगवान की किसी वजह से आपस में नहीं बनती है। वहीं गणेश चतुर्थी की रात्रि को जगने वाली जाग में लाई जाने वाली मशालें केवल एक ही पेड़ को काटकर बनाई जाती हैं।
अगले 11 दिनों तक क्षेत्र भ्रमण पर रहते हैं गणेश भगवान
25 अगस्त के बाद देवता गणेश उत्सव के अंतिम दिन तक मंदिर में बाहर ही रहेंगे। स्थानीय वासी सुरेश शर्मा ने बताया कि देवता अपने हारियान क्षेत्र में जाएंगे और 9 दिन देवता ओड़ीधार गांव में पहुंचेंगे। यहां पर तीन दिन तक मेले का आयोजन होगा और अंतिम दिन यानि 11वें दिन टाली बांधने की रस्म किया जाएगा। इसके बाद साधारण तरीके से ही देवता का रथ ले जाया जाएगा और देवता का गुर सभी परंपराओं को पूरी तरह से निर्वहन होने की घोषणा करेगा। इसके बाद साधारण तरीके से ही देवता का रथ प्राचीन भटवाड़ी मंदिर में लाया जाता है। हालांकि देवता का दिव्य रथ खार दूसरे दिन ही वापस भंडार में जा चुका होता है।
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