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बिहार आये 40 लाख प्रवासी मजदूरों में कितने हुए संक्रमित ? सरकार के पास आंकड़ा नहीं

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नई दिल्ली, 15 मई। बिहार में कोरोना की भयावह स्थिति है। संक्रमण और मौत के आंकड़ों में ज्यादातर शहर ही शमिल होते हैं। गांवों की चर्चा नहीं के बराबर होती है। जब कि वहां के हालात कम खराब नहीं हैं। गांवों में कोरोना से कितनी मौत हुई इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा सरकार के पास नहीं है।

government have not figures how many infected among the 40 lakh Migrant workers who came to Bihar?

अब पटना हाईकोर्ट ने पंचायतीराज जनप्रतिनिधियों को अपने क्षेत्र में होने वाली मौत का ब्योरा देने को कहा है। यह निर्देश इसलिए दिया गया है ताकि कोरोना से मौत के वास्तविक आंकड़ों का पता लगाया जा सके। पिछले साल 40 लाख प्रवासी मजदूर बिहार आये थे। इनमें कितने लोग अभी बिहार में हैं, कितने लोग बाहर चले गये, दूसरी लहर में कितने लोग लौटे, इनमें कितने संक्रमित हैं ? इन बातों की जानकारी भी सरकार के पास नहीं है। अब हाईकोर्ट ने इन आंकड़ों को एकत्र करने का निर्देश दिया है। यानी बिहार में कोरोना से संबंधित जो आंकड़े बताये जा रहे हैं वे पूर्ण नहीं हैं, क्यों इनमें गांवों की जानकारी नहीं है।

छिपा रहे कोरोना के लक्षण

छिपा रहे कोरोना के लक्षण

गांवों में लोग बीमार हैं। सर्दी-खांसी होने के बाद स्थानीय दवा दुकानदारों से ही पूछ कर दवा खा लेते हैं। कुछ लोग ठीक भी हो जाते हैं। जो ज्यादा बीमार होते हैं वे प्रखंड या जिला के अस्पतालों में इलाज के लिए जाते हैं। गांव के लोग कोरोना जांच से कतरा रहे हैं। उनके मन में इस बात का डर समाया हुआ है कि अगर कोरोना मरीज घोषित हो गये तो लोग अछूत जैसा सलूक करने लगेंगे। इस महामारी के बीच गांव में भी मरने वालों की संख्या कोई कम नहीं। जांच नहीं होने की वजह से इनकी मौत का कारण पता नहीं चलता। कोरोना के लक्षण वाले रोगी भी अगर मरते हैं तो उन्हें हर्ट अटैक से मरा हुआ बता दिया जाता है। इसकी वजह से कई लोग संक्रमित हो जा रहे हैं। फिर भी इस मर्ज को छिपने की प्रवृति कम नहीं हो रही। गांवों में सोशल डिस्टेंसिंग का बिल्कुल पालन नहीं होता। मास्क पहनने पर लोग मजाक उड़ाते हैं।

जांच से कतरा रहे गांव के लोग

जांच से कतरा रहे गांव के लोग

भोजपुर जिले के पीरो अनुमंडल के एक व्यक्ति ने बताया कि कुछ दिन पहले सरदी-बुखार हुआ था। गांव के डॉक्टर (क्वैक) से दवा लेकर खा ली। कुछ दिन के बाद स्वाद और गंध लेने की क्षमता भी चली गयी। उनके पड़ोसी ने कोरोना की जांच कराने की सलाह दी। लेकिन उन्होंने जांच नहीं करायी। गांव से अस्पताल जाने के लिए आटो वाले ने सौ रुपये मांगे। इतने पैसे थे नहीं। इसलिए नहीं गये। अब वे ठीक हैं। ठीक हो जाने के बाद वे जांच-वांच को फालतू का झंझट मानते हैं। इसी तरह पश्चिम चम्पारण के नौरंगिया पंचायत में कई लोग सर्दी-खांसी से परेशान हैं। इस इलाके में टायफाइड का प्रकोप रहा है। वे टायफाइड समझ कर इसकी जांच नहीं करा रहे। एक-डेढ़ हफ्ते में करीब 12 लोग मर चुके हैं। ये लोग कैसे मरे ? इस बात की जानकारी नहीं। कितने लोग मरे ? इस बात की भी जानकारी नहीं। इस तरह की मौत का कोई सरकारी आंकड़ा तैयार नहीं होता। शहर में तो जांच कराने, इलाज कराने और ऑक्सीजन की सुविधा भी है। लेकिन गांव के लोगों को नजदीकी अस्पताल जाने के लिए चार-पांच किलोमीटर तक चलना पड़ता है। प्रखंड स्तर के अस्पतालों में कोरोना के इलाज के लायक कोई सुविधा भी नहीं होती।

किस हाल में हैं 40 लाख प्रवासी मजदूर ?

किस हाल में हैं 40 लाख प्रवासी मजदूर ?

पटना हाईकोर्ट ने गांवों में कोरोना की वास्तविक स्थिति का ब्यौरा इसलिए देने को कहा है ताकि समय रहते चिकित्सा सुविधा को अपग्रेड किया जा सके। तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए गांवों में मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ाना बेहद जरूरी है। महामारी की दूसरी लहर में गांवों की हालत बहुत खराब हो गयी है। इस बात को ध्यान में रख कर ही कोर्ट ने पिछले साल आये 40 लाख प्रवासी मजदूरों के संबंध में जानकारी मांगी है कि वे किस हाल में हैं, कहां हैं और कैसे हैं ? पिछले तीन दिनों से बिहार में कोरोना संक्रमण की दर में गिरावट की बात कही जा रही है। संक्रमण दर में गिरावट का आंकड़ा लिये गये जांच नमूनों के आधार पर बताया जा रहा है। लेकिन सवाल ये है कि जो जांच का नमूना लिये गया वह कुल आबादी का कितना प्रतिशत है ? गांवों मे जांच की कछुआ चाल को देखते हुए संक्रमण में गिरावट के इस आंकड़े पर कितना भरोसा किया जा सकता है। अब देखना ये है कि हाईकोर्ट के निर्देश के बाद बिहार सरकार कैसे इतनी जल्दी गांव के आंकड़ों को दुरुस्त करती है।

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English summary
government have not figures how many infected among the 40 lakh Migrant workers who came to Bihar?
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