Gorakhpur में बोले केरल के राज्यपाल,कहा- टिप्पणी या आलोचना के बिना लोकतंत्र नहीं चल सकता
गोरखपुर में आज लिटरेरी फेस्टिवल का शुभारंभ हुआ। केरल के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ खान इसमें बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। दो दिनों तक चलने वाले इस काय्रक्रर्म में देश के प्रसिद्ध साहित्यकार व कलाकार आए हुए हैं।
Gorakhpur News: गोरखपुर के विवेक उत्सव लॉन में आयोजित लिटरेरी फेस्टिवल का शनिवार को शुभारंभ हुआ। केरल के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ बतौर मुख्य अतिथि इस कार्यक्रम में शामिल हुए। पहले दिन लोकतंत्र और साहित्य विषयक सत्र का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व अध्यक्ष साहित्य अकादमी प्रोफेसर विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने की। लेखिका मृदुला गर्ग व वरिष्ट पत्रकार अजय सिंह भी उपस्थित रहे।
आलोचना व टिप्पणी अनिवार्य
राज्यपाल आरिफ मोहम्मद ने कहा कि इस संसार में विषवृक्ष भी हैं लेकिन इसमें अमृत से भरे फल भी लगते हैं।ये फल हैं काव्य और सत्पुरुष। काव्य हमें जहां रस देते हैं वहीं सत्पुरुष हमारा मार्गदर्शन करते हैं।उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जहां उचित हो वहां टिप्पणी व आलोचना करना अनिवार्य होता है। बिना आलोचना व टिप्पणी के लोकतंत्र नहीं चल सकता है। हमारी बनाई हुई सरकारे हैं और यह अधिकार हमारा है कि आने वाले समय में ऐसी सरकारों को बदल दें जो हमारी भावनाओं पर खरी नहीं उतरती हो। इससे लोकतंत्र में एक आत्मविश्वास पैदा होता है और स्वयं का सशक्तिकरण होता है।
चुनौतियों को स्वीकार करने के बाद ही आती है चमक
प्रख्यात साहित्यकार मृदुला गर्ग ने कहा कि हमारी संस्कृति उन खूबसूरत संस्कृतियों में से है जो सर्व समाहित है। चूंकि हमें धुंधला देखने की आदत है इस कारण से हम रौशनी से घबराते हैं। हमें समझना होगा कि चुनौती को स्वीकार करने के बाद ही चमक आती है। लोकतन्त्र में साहित्य की महत्ता पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि लोकतंत्र स्वतन्त्र विचार की निर्भीक अभिव्यक्ति है और साहित्य भी वस्तुतः उसी चरित्र का है। लेखक के कथनी नहीं बल्कि उसके पात्रों की करनी का महत्व होता है। लोकतंत्र में 'मैं नहीं' की अपेक्षा 'मैं क्यूं नहीं' का प्रश्न अधिक सार्थक है। लोकतंत्र की रक्षा में साधारण कदम विशेष अवसरों को बल प्रदान करता है। समाज का साधारण व्यक्ति ही वास्तव में क्रांतियों का अगुआ बन जाता है। हम ऐसे कानूनों पर प्रश्न तो उठाते हैं जो स्वतन्त्रता में बाधक बनते हैं, पर हमनें कभी खुद पर सवाल उठाने की कोशिश नहीं की।
लोकतंत्र के अस्तित्व की कल्पना साहित्य के बिना अधूरी
वरिष्ट पत्रकार व राष्ट्रपति के प्रेस सचिव अजय कुमार सिंह ने इस अवसर पर कहा कि लोकतंत्र के अस्तित्व की कल्पना साहित्य के बिना अधूरी है। साहित्यिक रचनाएं कालजयी होतीं हैं और भविष्य हमेशा भूत से अच्छा होता है। साहित्य में स्थानीयता के साथ सार्वभौमिकता, दोनों के ही तत्व शामिल होते हैं। आज गीता प्रेस ने साहित्य को व्यापारिक लोकप्रियता दी है। प्रेमचंद्र के पात्र वैश्विक स्तर के पात्र बन जाते हैं। लेखक के पात्रों की सार्वभौमिकता कहीं भी पाई जा सकती है। अंचल का साहित्य इस मामले में विशेष है कि वह यहां से निकलकर देश ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर अपनी छाप छोड़ता है। किसी गांव या नगर से निकले हुए लेखक या कवि किस प्रकार वैश्विक स्तर पर अनुकरणीय होते चले जाते हैं उसका महत्वपूर्ण उदाहरण गोरखपुर है। साहित्य के सौंदर्य का अनुभव करने के लिए भाषा कोई बाध्यता नहीं है बल्कि भाव महत्वपूर्ण है। साहित्य का लोकतंत्र सही अर्थों में समावेशी है जो अंत्योदय तथा वसुधैव कुटुंबकम की भावना को बल देता है तथा आमजन के हृदय तक पहुंचता है। गोरखपुर की साहित्यिक विरासत पर विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि इस धरती ने फिराक जैसे महान लोगो को जन्म दिया है, उन्होंने उर्दू में ऐसी रचनाएं की जो आज भी प्रासंगिक हैं। वही साहित्य अमर है जो समाज के अंतिम व्यक्ति तक जाता है और उनके भावनाओ व दिलो को छूता है।
इंद्रियों को वश में करना ही सभ्यता
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार व साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि राजनीतिक विचारकों का यह मत रहा है कि वही व्यवस्था सर्वोत्तम है जिसमें सबसे कम शासन किया जाय। इस अर्थ में लोकतंत्र विशिष्ट है। राज्य स्वयं में मनुष्य के असभ्य होने का प्रमाण है और सभी मनुष्य सभ्य हो जाएं तो राज्य और क़ानून की आवश्यकता ही नहीं। महात्मा गांधी ने कहा था नीति का पालन तथा इंद्रियों को वश में करना ही सभ्यता है। हम स्वतन्त्रता के प्रश्न पर अधिकारों की बात तो करते हैं पर कर्तव्यों की बात नहीं करते। स्वाधीनता में कर्तव्य की भावना समाहित है। शासन व्यवस्था के साहित्य पर पड़ने वाले प्रभाव के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि तानाशाही शासन में अगर साहित्य की दुर्गति के प्रमाण देखना हो तो कम्युनिस्ट शासन से बेहतर उदाहरण और कोई नहीं हो सकता। लोकतंत्र राजनीतिक विचारकों तथा जागृत आत्माओं का लक्ष्य है और यही लक्ष्य साहित्यकार का भी है। लोकतंत्र की यही विशेषता है कि उसमें जो आप कहना चाहते हैं कह सकते हैं तथा आपको असहमति का अधिकार है । साहित्य तथा मीडिया पर प्रतिबंध तानाशाही व्यवस्था का द्योतक है। चीन और रूस इसके उदाहरण हैं। लेखक और साहित्य तानाशाही का शाश्वत विरोधी होता है। तानाशाही भले साहित्य के प्रसार को रोक दे पर वह साहित्य की रचना को नहीं रोक सकता।
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