Fertility Rate of Muslim Women: क्या कहते हैं भारतीय मुस्लिम महिलाओं में प्रजनन और मृत्यु दर से जुड़े आंकड़े
AIUDF सांसद बदरुद्दीन अजमल ने कहा है कि हिंदुओं को अपनी लड़कियों की शादी 18 से 20 साल में करने के मुस्लिम फॉर्मूले को अपनाना चाहिए। इससे उनकी आबादी बढ़ जाएगी।
Fertility Rate of Muslim Women: AIUDF (All India United Democratic Front) प्रमुख और असम से सांसद बदरुद्दीन अजमल द्वारा हिंदू लड़कियों पर की गई विवादित टिप्पणी के बाद राजनीति गरमा गई है। साथ ही अपने बयान के बाद अब वे माफी भी मांग रहे हैं। असम के हिंदू युबा छात्र परिषद ने बदरुद्दीन अजमल की टिप्पणी को लेकर उनके खिलाफ नौगांव सदर थाने में शिकायत दर्ज कराई है।
ऐसा क्या कह दिया था बदरुद्दीन अजमल ने?
बदरुद्दीन अजमल ने कहा था कि हिंदुओं को अपनी लड़कियों की शादी 18-20 साल में करने के मुस्लिम फॉर्मूले को अपनाना चाहिए ताकि इससे हिंदुओं की आबादी बढ़ जाएगी। अजमल ने कहा था कि हिंदू लड़कियों का 40 साल की उम्र तक विवाह नहीं होता। वे (हिंदू) लोग 40 साल से पहले गैरकानूनी तरीके से 2-3 बीवियां रखते हैं। 40 साल के बाद उनमें बच्चा पैदा करने की क्षमता नहीं रहती है। उनको (हिंदुओं) मुसलमानों के फॉर्मूले को अपनाकर अपने बच्चों की 18-20 साल की उम्र में शादी करा देनी चाहिए।
आइए अब हम आंकड़ों के जरिए समझने की कोशिश करते है कि भारत में जहां पर आज मुस्लिम आबादी ज्यादा है। वहां पर कम उम्र में मुस्लिम लड़कियों की शादी कर देने पर क्या होता है उनका जीवन स्तर, प्रजनन दर, मृत्युदर, शिक्षा और आर्थिक स्तर।
73 जिलों में मुस्लिम आबादी
साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 73 ऐसे जिले हैं, जहां मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक या महत्वपूर्ण भूमिका में हैं। यह सभी जिले 16 राज्यों में स्थित है। इसमें 50 प्रतिशत से अधिक मुसलमान जनसंख्या वाले 30 जिले, 40 प्रतिशत से अधिक लेकिन 50 प्रतिशत से कम वाले 10 जिले, 39 प्रतिशत से 30 प्रतिशत वाले 18 जिले, और 29 प्रतिशत से 25 प्रतिशत वाले 15 जिले हैं।
मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर
NFHS की साल 2015-16 की रिपोर्ट के मुताबिक मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर 3.10 थी। वहीं साल 2019-21 में मुस्लिम महिलाओं की प्रजनन दर 2.66 हो गई है। हालांकि, इसमें कोई दो राय नहीं है कि मुस्लिमों में प्रजनन दर कम हुआ है। मगर यह अन्य धर्मों के मुकाबले सर्वाधिक बना हुआ हैं।
जबकि रिपोर्ट के मुताबिक हिन्दुओं में वर्तमान कुल प्रजनन दर 1.9, ईसाइयो में 1.9, सिक्खों में 1.6, बौद्धों/नव बौद्धों में 1.4 और जैनों में 1.6 है। यही नहीं, रिपोर्ट यह भी बताती है कि 15 से 19 वर्ष की 8 प्रतिशत मुस्लिम लड़कियां गर्भधारण कर रही हैं। यह प्रतिशत भी किसी अन्य धर्म के अपेक्षाकृत सबसे अधिक है।
जम्मू-कश्मीर दूसरे मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र से बेहतर
साल 2021 में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर देश में इकलौता मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र है, जहां प्रजनन दर लगातार कम हो रही है। करीब पांच साल पहले यहां प्रजनन दर दो थी। लोग हम दो हमारे दो की सरकार की नीति को अपनाते थे। अब प्रजनन दर सिर्फ 1.4 रह गई है।
साथ ही जम्मू-कश्मीर में नवजात मृत्यु दर 9.5 फीसद है। शहरी क्षेत्रों में 7.5 फीसद और ग्रामीण क्षेत्रों में 10.5 फीसद है। इसी तरह शिशु मृत्यु दर 16.3 फीसद है। इसमें शहरी क्षेत्रों में 14.7 फीसद और ग्रामीण क्षेत्रों 16.7 फीसद है। पांच साल से कम आयु वर्ग में मृत्यु दर 18.5 है। इसमें शहरी क्षेत्रों में 15.7 और ग्रामीण क्षेत्रों में 19.4 है।
कम उम्र में मुस्लिम लड़कियों की हुईं शादियां
जिन जिलों में मुसलमान 90 प्रतिशत से ऊपर है वहां NFHS (National Family Health Survey) के अनुसार लड़कियों की कम उम्र में शादी का प्रतिशत लगभग न के बराबर है। इसमें जम्मू और कश्मीर के कुछ जिलों का नाम सबसे आगे है। हालाँकि, कुछ इलाकों में फर्क है, जैसे राजौरी और डोडा की मुस्लिम जनसंख्या क्रमशः लगभग 62 प्रतिशत और 53 प्रतिशत है तो वहां कम उम्र में लड़कियों की शादी का प्रतिशत क्रमशः 12 और 11 है। इसी प्रकार किश्तवाड़ और रियासी में लगभग ऐसे ही हालात बन रहे हैं।
वहीं जिन जिलों में मुस्लिम आबादी 50 फीसदी या उससे कम है, वहां बालिका विवाह की दर बहुत अधिक है। यह सभी जिले बिहार, असम, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में हैं। यहां बालिका विवाह अधिक होने की वजह से प्रजनन दर भी प्रभावित हो रही है।
15-19 साल में मां बनीं मुस्लिम लड़कियां
NFHS 2019-20 के अनुसार जहां मुस्लिम आबादी 90 फीसदी से भी ज्यादा है। वहां सर्वे के समय 15-19 साल की लड़कियों के मां या गर्भवती होने की संख्या लगभग शून्य थी। जबकि जिन जिलों में मुस्लिम आबादी 50 प्रतिशत से कम और पर्याप्त संख्या में है, वहां 15-19 साल की लड़कियों के मां या गर्भवती होने की संख्या बहुत ही ज्यादा अधिक है। यह जिले बिहार, असम, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के हैं।
शिशु मृत्यु दर भी कम नहीं
IndiaSpend ने NFHS की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया हैं कि भारत में मुसलमान महिलाओं की प्रसव के दौरान देखभाल, और उनको भरपूर खाना एवं दवाई भी नहीं मिल पाती है। आंकड़ों के मुताबिक केवल 77 प्रतिशत महिलाओं की ही थोड़ी बेहतर देखभाल हो पाती है। साथ ही शिशु मृत्यु दर प्रति 1000 बच्चों पर मुस्लिम महिलाओं में 40 है, जोकि चिंताजनक है।
मुस्लिम लड़कियों की साक्षरता दर
NFHS 2019-20 के अनुसार जिन जिलों में मुस्लिम आबादी 30 से 70 प्रतिशत के बीच में है, वहां पर मुस्लिम लड़कियों की साक्षरता दर बेहद ही खराब है। उन जिलों में उत्तर प्रदेश के बहराइच, श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर; झारखंड के पाकुर और साहिबगंज; हरियाणा का मेवात; बिहार के अररिया, पूर्णिया और किशनगंज शामिल हैं।
तलवार की तरह है 'इस्लामिक पर्सनल लॉ'
BBC की एक रिपोर्ट में मुस्लिम महिलाओं की स्थिति का खुलासा किया गया है। उस रिपोर्ट में महिला आयोग ने यह पाया था कि मुस्लिम महिलाओं में अशिक्षा और बेरोज़गारी की बड़ी समस्या है। उसके साथ इस्लामिक निजी कानून उनकी मुश्किलों को कम करने की बजाय अधिक बढ़ा देते हैं। तीन तलाक पर तो कानूनी रोक लग गयी है लेकिन बहुविवाह/चार शादियां, हलाला जैसे नियम-कायदे इन महिलाओं पर पर नंगी तलवार की तरह लटकते रहते हैं।
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