राहुल द्रविड़: जानिए कौन था वो शख्स जिसने राहुल के टैलेंट को सबसे पहले पहचाना
वो शख्स जिसने राहुल की टैलेंट को सबसे पहले पहचाना
नई दिल्ली। 11 जनवरी 1973 को भारत में एक ऐसे बच्चे का जन्म हुआ था जो बाद में राहुल शरद द्रविड़ के नाम से जाना गया। अगर क्रिकेट की तकनीक को देखा जाए तो उन्हें दुनिया का आखिरी सबसे 'शानदार क्लासिकल टेस्ट' बल्लेबाज कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। नाम से दक्षिण भारतीय लगने वाले द्रविड़ मूलतः मराठी हैं लेकिन उनकी पढ़ाई-लिखाई और खेल कर्नाटक में हुई। ODI हो या टेस्ट, द्रविड़ हर परिस्थितियों में टीम इंडिया की नैया पार लगाने के लिए तैयार रहते थे. एक दिवसीय और टेस्ट को मिलाकर 16 साल के क्रिकेटिंग करियर में कुल 508 मैच खेलने के बाद 24177 रन बनाने वाले इस खिलाड़ी ने वो मुकाम हासिल किया जो कम खिलाड़ियों को नसीब होता है। क्रिकेट को अगर 'जेंटलमैन गेम' कहा जाता है तो राहुल इस खेल के सबसे बड़े 'जेंटलमैन' और ब्रांड एम्बेसडर हैं। अगर आपको लगता है कि आप क्रिकेट की इस सबसे बड़ी दीवार के बारे में सब कुछ जानते हैं तो पढ़िए वो दिलचस्प आंकड़े जो आपके लिए शायद नए हों।
क्रिकेट करियर की शुरूआत
राहुल शरद द्रविड़ का जन्म 11 जनवरी 1973 को इंदौर में हुआ था। इनका जन्म एक मराठी परिवार में हुआ था. इनकी मां का नाम पुष्पा और पिता शरद हैं. द्रविड़ को अपने परिवार की वजह से कर्नाटक शिफ्ट होना पड़ा था और उन्होंने अंडर-15, अंडर-17 और अंडर-19 क्रिकेट करियर की शुरूआत यहीं से की थी। स्कूल मैच के दौरान ही उन्होंने कीपिंग भी सीखी थी लेकिन वो सिर्फ एक पार्ट टाइम कीपर की भूमिका निभाते थे लेकिन बाद में टीम इंडिया में विकेटकीपर की अहम भूमिका निभाई थी।
पिता से सीखा क्रिकेट का ककहरा
राहुल द्रविड़ की मां पुष्पा यूनिवर्सिटी विश्वेस्वरया कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (UVCE) में एक आर्किटेक्चर प्रोफेसर थीं। वह एक कलाकार भी हैं और बेंगलुरू में आयोजित प्रदर्शनी में भी शामिल होती रहती हैं, पिता शरद द्रविड़ एक जैम फैक्ट्री में काम करते थे और क्रिकेट के बहुत बड़े प्रशंसक थे. वो जूनियर द्रविड़ को बचपन में अपने साथ अक्सर क्रिकेट मैच देखने ले जाया करते थे। राहुल सार्वजनिक मंच पर अपने पिता की कम चर्चा करते हैं लेकिन वो हमेशा कहते हैं कि मेरे पिता से ही मुझमें क्रिकेट के प्रति लगन और लगाव दोनों मिला।
द्रविड़ के कई उपनाम
टीम इंडिया के लिए खेलने से पहले ही राहुल द्रविड़ को उपनाम मिलने शुरू हो गए थे। द्रविड़ के पिता एक जैम फैक्ट्री में काम करते थे इसलिए उन्हें सबसे पहला उपनाम 'जैमी' मिला था। बाद में क्रिकेट में कई लंबी पारियां खेलने के बाद उन्हें अंग्रेजी में ‘The Wall' और ‘Mr. Dependable' जैसे विशेषण से सुशोभित किया गया वहीं हिंदी भाषी लोगों ने अपनी सुविधा के हिसाब से उन्हें टीम इंडिया की 'दीवार' कहा।
एक शिक्षित क्रिकेटर
90 के दशक में टीम इंडिया में बहुत पढ़े-लिखे क्रिकेटरों की कमी थी लेकिन राहुल बहुत ही शिक्षित क्रिकेटर्स में से एक थे। उनकी शुरूआती पाठशाला St. Joseph's Boys High School, Bangalore से हुई और उन्होंने कॉमर्स में स्नातक की परीक्षा पास की। St Joseph's College of Business Administration में MBA की पढ़ाई करने के दौरान उनका चयन टीम इंडिया में हुआ था।
केकी तारपोरे ने पहचानी द्रविड़ की प्रतिभा
द्रविड़ ने महज 12 साल की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था. वह अपने शुरूआती दिनों में ही अपने खेल से चयनकर्ताओं को प्रभावित करने में सफल रहे थे और अंडर-15, अंडर-17 और अंडर-19 में कर्नाटक क्रिकेट का प्रतिनिधित्व किया। केकी तारपोरे, पूर्व क्रिकेटर ने इन्हें खेलते हुए देखा और कहा था कि यह लंबी रेस लगाएगा। उस स्कूली मैच में द्रविड़ ने शतक जड़ा था।
1993 में किया प्रथम श्रेणी क्रिकेट में पदार्पण
द्रविड़ ने अपने कॉलेज के दिनों में (1993) रणजी करियर की शुरुआत की। अनिल कुंबले और जवागल श्रीनाथ के साथ मुंबई के खिलाफ खेलते हुए इन्होंने 82 रनों की पारी खेली थी जो मैच बाद में ड्रा हो गया था। अगले सत्र में उन्होंने 2 शतक के साथ 63.30 की औसत से 380 रन ठोक डाले। इस प्रदर्शन के बाद उन्हें साउथ जोन से दिलीप ट्रॉफी खेलने वाली टीम में शामिल होने का मौका मिला।
ODI और टेस्ट में हुआ शानदार आगाज
द्रविड़ को 1996 में विनोद कांबली की जगह टीम में शामिल किया गया। उन्होंने अपने पहले ODI मुकाबले में महज 3 रन बनाए थे. उन्होंने अपना ODI डेब्यू श्रीलंका के खिलाफ सिंगापुर में किया था. इस मैच में टीम इंडिया को जीत मिली थी। क्रिकेट के मक्का कहे जाने वाले लॉर्ड्स पर अपने टेस्ट डेब्यू (1996) में ही द्रविड़ ने पहले मैच में सातवें नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए 95 रनों की पारी खेली और महज 5 रनों से अपना पहला शतक चूक गए। द्रविड़ ने अपने डेब्यू सीरीज में ही 62.33 की औसत से रन बनाए थे। इसी मैच में दादा ने भी डेब्यू किया था। इन दो दिग्गज खिलाड़ियों के बीच 94 रनों की साझेदारी हुई थी। द्रविड़ ने पोस्ट मैच कॉन्फ्रेंस में कहा था कि मैं खुश हूँ कि मैं ने स्कोर किया। शतक से चूकने के बाद उन्होंने कहा 'मैं इसे आधे खाली कप की वजाय आधा भरा कप की तरह देखता हूँ' यह एक बड़े खिलाड़ी की पहली दस्तक थी. टेस्ट में संजय मांजरेकर के चोटिल होने की वजह से द्रविड़ को खेलने का मौका मिला था।
जनवरी 16-20, 1997 (पहला टेस्ट शतक)
राहुल द्रविड़ के शानदार प्रदर्शन की वजह से उन्हें नंबर तीन पर प्रमोट किया गया। टीम इंडिया के दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर उन्होंने वांडरर्स की तेज पिच पर 148 और 81 रनों की पारी खेली और टीम को एक बड़ी जीत की ओर अग्रसर कर दिया था लेकिन बारिश की वजह से मैच ड्रा घोषित किया गया। यह राहुल द्रविड़ का पहला टेस्ट शतक था।
1999 विश्व कप में सबसे अधिक रन
1999 के विश्व कप से पहले तक द्रविड़ पर सिर्फ टेस्ट प्लेयर होने का ठप्पा लग गया था, ODI में कुछ विफलताओं की वजह से उनकी आलोचना होने लगी थी। इस टूर्नामेंट के 8 मैच में उन्होंने सर्वाधिक 461 रन बनाए और अपने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया। टीम इंडिया भले ही सेमीफाइनल मुकाबले तक भी नहीं पहुँच पाई लेकिन 65.85 की औसत और 85.52 के स्ट्राइक रेट से रन बनाने वाले द्रविड़ ने अपनी एक अलग पहचान बना ली थी।
कोलकाता का अविस्मरणीय मैच
क्रिकेट के इतिहास मे कुछ तारीख ऐसे हैं जो अद्वितीय और अविस्मरणीय हैं, कुछ ऐसा ही हुआ था कोलकाता के ईडन गार्डन्स के मैदान पर. साल 2001 में लक्ष्मण-द्रविड़ ने 11 से 15 जनवरी के बीच चले टेस्ट मैच में जो पारी खेली उसकी मिसालें अगले कई सालों तक दी जाएगी। इस मैच से पहले शेन वार्न ने पिछली तीन पारियों में दो बार द्रविड़ को आउट किया था। उन्होंने खराब फॉर्म की वजह से नंबर-6 पर डिमोट कर दिया गया। पहली पारी में ऑस्ट्रेलिया के 445 रनों के जवाब में फॉलो ऑन खलने उतरी टीम इंडिया ने 657/7 पर पारी घोषित की। राहुल और लक्ष्मण के बीच 375 रनों की साझेदारी हुई और भारत ने इस मैच में 171 रनों से जीत हासिल की। द्रविड़ ने इस मैच की दूसरी पारी में 20 चौकों की मदद से 180 रनों की पारी खेली और वार्न के 51 गेंदों में 41 रन ठोक दिए।
टेस्ट की 4 पारियों में चार लगातार शतक
राहुल द्रविड़ टीम इंडिया के एक मात्र ऐसे बल्लेबाज हैं जिन्होंने चार लगातार पारियों में चार शतक जड़े हैं। जून से सितंबर 2002 के बीच उन्होंने इंग्लैंड खिलाफ लगातार तीन शतक और चौथा विंडीज के खिलाफ जड़ा। उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ ये तीनों शतक भारत के 2002 इंग्लैंड दौरे में जड़ा था जिसमें इंग्लैंड के खिलाफ लगाया (217) उनका पहला दोहरा शतक भी शामिल है।
एक सीजन में 3 दोहरा शतक
राहुल द्रविड़ 2003-2004 में अपने करियर के प्राइम फॉर्म में थे उन्होंने एक सीजन में 3 अलग-अलग टीमों के खिलाफ तीन दोहरे शतक लगाए थे। न्यूजीलैंड के खिलाफ 222, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 233 और पाकिस्तान के खिलाफ 270 रनों की पारी खेली थी।
सभी टेस्ट खेलने वाले देशों में शतक
राहुल द्रविड़ पहले ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने सभी टेस्ट खेलने वाले देशों में शतक जड़ा है।साल 2004 में उन्होंने चटगांव में बांग्लादेश के खिलाफ 160 रनों की पारी खेल कर यह रिकॉर्ड बनाया था। ICC अगर अब किसी देश को टेस्ट प्लेइंग नेशन की मान्यता नहीं देता है तो द्रविड़ की रिकॉर्ड की सिर्फ बराबरी की जा सकती है उसे तोड़ा नहीं जा सकता है। यह कारनामा उन्होंने बांग्लादेश के खिलाफ दिसंबर (17-21, 2004) को किया था।
नवंबर 2005 को राहुल को मिली टीम की कमान
गांगुली के खराब प्रदर्शन और कोच ग्रेग चैपल के साथ विवाद और ईमेल लीक किए जाने के बाद 22 नवंबर 2005 को द्रविड़ को टीम इंडिया की कमान सौंपी गई. इतना ही नहीं इसके साथ ही दादा की कप्तानी पारी का अंत हो गया था।
टेस्ट कप्तान के तौर पर पहला शतक
पाकिस्तान के खिलाफ 13-17 जनवरी 2006 को लाहौर में खेले गए मुकाबले में उन्होंने कप्तान के तौर पर पहला शतक जड़ा। टीम इंडिया के सबसे तूफानी बल्लेबाज वीरेंद्र सहवाग के साथ मिलकर उन्होंने पहले विकेट के लिए 410 रनों की पारी खेली और इसके बाद अगले टेस्ट मैच में भी उन्होंने शतक जड़ दिया।
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