जानिए उस शख्स को जिसने बनाया हमारा तिरंगा, गरीबी से हुई थी मौत
नयी
दिल्ली।
आज
से
दो
दिन
बाद
हर
जगह,
हर
कोने
में
तिरंगा
लहराता
दिखाई
देगा।
जी
हां
स्वतंत्रता
दिवस
(15
अगस्त)
जो
है।
क्या
आपने
कभी
यह
जानने
की
कोशिश
की
है
कि
आखिर
इस
तिरंगे
को
किसने
बनाया?
जानेंगे भी कैसे क्योंकि तिरंगा बनाने वाला शख्स कई सालों तक गुमनाम रहा। उसे इतने महत्वपूर्ण योगदान के लिए मौत के 46 साल बाद सम्मान मिला। तो आईए आज हम आपको उस शख्स के बारे में बताते हैं।
पिंगली वैंकैया था उनका नाम
पिंगली वैंकैया का जन्म 2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के निकट एक गांव में हुआ था। 19 साल की उम्र में पिंगली ब्रिटिश आर्मी में सेना नायक बन गए। दक्षिण अफ्रिका में एंग्लो-बोअर युद्ध के दौरान पिंगली की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। बदस्तूर जारी है तिरंगे का अपमान
पिंगली महात्मा गांधी से इतना प्रेरित हुए कि वो उनके साथ ही हमेशा के लिए भारत लौट आए। भारत लौटने के बाद वो स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी बन गए। उसके बाद पिंगली ने 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वजों का अध्यन शुरु किया। वो 1916 से 1921 तक इस विषय पर रिसर्च करते रहे। उसके बाद उन्होंने तिरंगे का डिजइन किया।
आपको बता दें कि उस वक्त तिरंगे में लाल रंग हिंदुओं के लिए, हरा रंगा मुस्लिमों के लिए और सफेद रंग बाकी सभी धर्मों के लिए रखा गया था। ध्वज के बीच में उस वक्त चरखा होता था, जिसे प्रगति का प्रतिक कहा गया था।
1931 में तिरंगे को लेकर आया प्रस्ताव
1931 में तिरंगे को अपनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। इस प्रस्ताव में कुछ संशोधन हुआ और लाल रंग हटाकर केसरिया रंग कर दिया गया। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा में इसे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपना लिया गया। इसके कुछ समय बाद ही एक बार फिर संसोधन किया गया जिसमें चरखे को हटाकर सम्राट अशोक के धर्मचक्र को शामिल कर लिया गया।
एक झोपड़ी में हो गई मौत
आप
जानकर
हैरान
जरूर
होंगे
कि
जिसने
देशवासियों
को
गर्व
महसूस
कराने
वाला
तिरंगा
दिया
उसकी
पूरी
जिंदगी
गरीबी
में
गुजर
गई।
1963
में
पिंगली
का
विजयवाड़ा
में
एक
झोपड़ी
में
देहांत
हो
गया।
उसके
बाद
भी
पिंगली
को
कोई
नहीं
जाना।
जब
साल
2009
में
पिंगली
के
नाम
से
एक
डाक
टिकट
जारी
हुआ
तो
लोगों
को
पता
चला।
सम्मान
मौत
के
46
साल
बाद
मिला।