उत्तर प्रदेश में सपा मिटाएगी दलितों से दूरियां
लखनऊ।
उत्तर
प्रदेश
में
सत्तारूढ़
समाजवादी
पार्टी
(सपा)
ने
लोकसभा
चुनाव
में
खराब
प्रदर्शन
के
बाद
विधानसभा
उपचुनाव
में
बेहतरीन
प्रदर्शन
कर
जोरदार
वापसी
की
थी।
पार्टी
की
निगाहें
अब
मिशन-2017
पर
टिकी
हैं।
इसी
लक्ष्य
को
साधने
की
कड़ी
में
सपा
अब
दलितों
से
दूरियां
मिटाने
के
लिए
दलित
महासम्मेलनों
का
आयोजन
करने
जा
रही
है।
यानी
मायावती
का
वोटबैंक
खतरे
में
पड़ने
वाला
है।
पार्टी के रणनीतिकारों की मानें तो पार्टी की कोशिश उन वर्गो में पैठ बनाने की है, जिनसे सपा की दूरियां बनी हुई हैं। इसी लिहाज से सपा अब दलितों की ओर कदम बढ़ा रही है। सपा की कोशिश है कि समाजवादी योजनाओं का लाभ राज्य के दलितों तक भी पहुंचाया जाए और इसका फायदा उसे मिशन-2017 में मिल सके।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, 11 जुलाई से पांच दिसंबर तक अलग-अलग हिस्सों में सपा की ओर से 18 दलित सम्मेलन आयोजित जाएंगे। इनमें से कुछ में मुख्यमंत्री अखिलेश व कुछ में पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव के साथ ही सूबे के बड़े नेता शिरकत करेंगे।
सपा के एक नेता ने कहा, "हमें पता है कि दलितों में पैठ बनाना आसान नहीं होगा, लेकिन हमने यह चुनौती स्वीकार की है। अगर दलितों का पांच फीसदी भी वोट मिल गया, तो हम समझेंगे कि पार्टी का प्रयास सफल रहा।"
दलित वर्ग को अपने पाले में लाने की सपा की अब तक तमाम कोशिशें हालांकि नाकाम रही है। यही वजह है कि पार्टी ने इस वर्ग पर कम फोकस किया था। वर्ष 2014 के संसदीय चुनाव में इस वर्ग के मतदाता जिस तरह भाजपा के पाले में गए, उससे सत्तारूढ़ पार्टी भी चौकन्नी हुई।
दलित सम्मेलनों का आयोजन
सपा नेता डॉ. सी.पी. राय ने कहा कि पार्टी वर्ग विशेष के साथ भेदभाव नहीं करती। पार्टी की कोशिश है कि दलित सम्मेलनों के माध्यम से समाजवादी नीतियों और सरकार की योजनाओं को समाज के दलित एवं वंचित लोगों तक पहुंचाया जा सके।
पार्टी के सूत्र बताते हैं कि सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कुछ दिन पहले एक निजी कंपनी से दलित समुदाय के मतदाताओं पर सर्वेक्षण कराया था, जिसमें पाया गया कि दलितों में भी 'मध्यम वर्ग' विकसित हो गया है। यह वर्ग न सिर्फ सेल्फी खींचता है, बल्कि फेसबुक, ट्विटर पर बेबाकी से राय भी रखता है। सपा की कोशिश इसी वर्ग को अपने पाले में लाने की है।
पार्टी के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष को राज्य में दलित महासम्मेलन कराने का जिम्मा सौंपा गया है। शुरुआत 30 जून को मुलायम के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ से होगी, जिसमें आधा दर्जन मंत्री हिस्सा लेंगे। मुलायम परिवार के नुमाइंदे के रूप में सांसद धर्मेद्र यादव भी मौजूद रहेंगे।
इसके बाद वाराणसी, कानपुर, झांसी, मेरठ, आगरा, बांदा व गोंडा मंडलों में दलित महासम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। संभावना है कि 15 से 17 जुलाई के बीच वाराणसी में प्रस्तावित सम्मेलन में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद हिस्सा लेंगे।
दलित जोड़ो अभियान
सपा के अनुसूचित जाति प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष व सैदपुर (गाजीपुर) से विधायक सुभाष पासी ने कहा कि दलित समुदाय जानता है कि सपा में ही उसके हित सुरक्षित हैं। आजमगढ़ से 'दलित जोड़ो' अभियान की शुरुआत के बाद पांच दिसंबर को लखनऊ में दलित महारैली के आयोजन की योजना भी है।
यह पूछे जाने पर कि सपा को इतने दिनों बाद अचानक दलितों की याद कैसे आई, पासी ने कहा, "ऐसी बात नहीं है कि दलित सपा से बिल्कुल कटा हुआ है। सूबे में 85 में से 56 आरक्षित सीटें सपा ने ही जीती है। हमारी कोशश है कि सरकार की योजनाओं का लाभ भी दलित समुदाय को अधिक से अधिक मिले और इसी मकसद से दलित सम्मेलनों का अयोजन किया जा रहा है।"
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में राज्य की 85 आरक्षित सीटों से 56 पर सपा के प्रत्याशी जीते थे। बावजूद इसके, माना गया था कि दलित वर्ग का एकमुश्त वोट सपा को नहीं मिला। अब परिस्थितियां बदली हैं। लैपटॉप, समाजवादी पेंशन, महिला सम्मान और लोहिया आवास जैसी योजनाओं का फायदा अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों को भी मिला है। सपा यह बात इन सम्मेलनों में जोरदार ढंग से रखे जाने की रणनीति पर काम कर रही है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।