फिर निकला रैगिंग का ‘जिन्न', जानें Ragging को लेकर क्या है कानून?
भारत में पिछले साल रैगिंग के 511 मामले रिपोर्ट किए गए। रैगिंग की वजह से हर साल सैकडों छात्र मानसिक प्रताड़ना झेलते है। कई छात्र-छात्राएं इसकी शिकायत भी नहीं करते हैं।
हमने 80 और 90 के दशक में कई फिल्मों में रैगिंग के दृश्य देखे होंगे, जिसमें जब कोई जूनियर स्टूडेंट किसी कॉलेज या होस्टल में आता या आती है, तो उसके सीनियर्स उससे रैगिंग के नाम पर उटपटांग काम करवाते हैं। फिल्मों में इसे मजाक के तौर पर दिखाया जाता है, लेकिन वास्तविक जीवन में कई बार यह इतने खतरनाक होते हैं कि रैगिंग शब्द का नाम सुनकर ही विद्यार्थी सिहर जाते हैं।
शिक्षण संस्थानों में हल्की-फुल्की रैगिंग को शुरुआत में बुलिंग माना जाता था, लेकिन समय के साथ इसने गंभीर रूप धारण कर लिया। साल 1990 के दशक में रैगिंग की वजह से कई छात्र मानसिक प्रताड़ना का शिकार हुए। 1997 में रैगिंग के सबसे ज्यादा मामले तामिलनाडु में रिपोर्ट किए गए। कई विद्यार्थियों ने रैगिंग की वजह से कॉलेज छोड़ दिए, जबकि कई डिप्रेशन में चले गए। साल 2001 में सुप्रीम कोर्ट ने रैगिंग को पूरी तरह से बैन कर दिया था।
पिछले दशक में रैगिंग की कई घटनाएं सुनने को मिली हैं, जिसकी वजह से कई युवाओं की जान तक चली गई है। सबसे ताजा मामला असम के डिब्रूगढ़ यूनिवर्सिटी के कॉमर्स डिपार्टपेंट के एक जूनियर छात्र आनंद शर्मा का है, जो रैगिंग के डर से होस्टल के दूसरी फ्लोर से नीचे कूद गया। इसकी वजह से उसे कई गंभीर चोटें आई और अस्पताल में भर्ती कराया गया।
डिब्रूगढ़ पुलिस ने छात्र के माता-पिता की शिकायत पर एक पूर्व और चार वर्तमान छात्रों को गिरफ्तार किया है। इसके बाद असम के मुख्यमंत्री हेमंता विस्वा सरमा ने छात्रों से अपील करके रैंगिग नहीं करने की सलाह दी है।
असम के सीएम ने अपने ट्विटर हैंडल से छात्रों को "Say No to Ragging" की सलाह दी है। सामने आ रही रिपोर्ट के मुताबिक, आनंद शर्मा के अलावा दो और जूनियर स्टूडेंट्स भी थे, जो रैगिंग के शिकार हुए हैं।
UGC द्वारा बनाए गए नियम
पिछले दशकों में खास तौर पर मेडिकल, इंजीनियरिंग जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के कई मामले सामने आए थे, जिसे देखते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने रैगिंग के खिलाफ कड़े नियम बनाए थे। आइए, जानते हैं रैगिंग को रोकने के लिए यूजीसी द्वारा बनाए गए नियमों के बारे में...
इन्हें रैगिंग माना जाएगा
अगर किसी संस्थान या हॉस्टल में किसी स्टूडेंट (छात्र या छात्रा) पर उसके रंगरूप या पहनावे के आधार पर टिप्पणी की जाए और उसके स्वाभिमान को आहत किया जाए या फिर उसे अजीबोगरीब नाम लेकर पुकारा या प्रताड़ित किया जाए तो इसे रैगिंग माना जाएगा।
संस्थान या हॉस्टल में किसी स्टूडेंट को उसकी क्षेत्रीयता, भाषा या जाति के आधार पर अपमानजनक नाम लेकर पुकारना और प्रचलित करना भी रैगिंग की श्रेणी में आएगा। यही नहीं, स्टूडेंट की नस्ल या पारिवारिक अतीत या आर्थिक पृष्ठभूमि को लेकर उसे लज्जित करना और अपमान करना रैगिंग माना जाएगा।
इसके अलावा छात्राओं खासकर नई छात्राओं को अजीबोगरीब नियमों के तहत परेशान करना या अपमानजनक टास्क देना भी रैगिंग माना जाएगा। यूजीसी ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि यदि धर्म, जाति या क्षेत्रीयता के आधार पर किसी छात्र को मजाक से भी अपमानजनक लगता है तो उसे रैगिंग की श्रेणी में माना जाएगा।
क्या है सजा?
यूजीसी स्पष्ट कर चुका है कि अगर कॉलेज या संस्थान रैगिंग की शिकायत करने वाले छात्रों की मदद नहीं करेगा तो पीड़ित निसंकोच यूजीसी के पास जाकर वहां से मदद ले सकते हैं। दोषियों पर रैगिंग रेग्यूलेशन एक्ट के तहत कार्रवाई की जाएगी।
रैगिंग के खिलाफ सबसे कड़ी सजा दोषी को तीन साल तक सश्रम कैद है। रैगिंग विरोधी कानून की बात की जाए तो किसी भी कॉलेज में रैगिंग एक बड़ा अपराध है। रैगिंग का दोष साबित होने पर स्टूडेंट्स के साथ-साथ संबद्ध कॉलेज पर भी कार्रवाई होगी और उस पर आर्थिक दंड भी लगाया जाएगा।
अमन काचरू का केस
भारत में रैगिंग के खिलाफ कानून बनाने में अमन काचरू के केस का अहम योगदान रहा है। साल 2009 में धर्मशाला के राजेन्द्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज में रैगिंग और प्रताड़ना के शिकार हुए छात्र की मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए रैगिंग के खिलाफ कानून बनाने के लिए उपसमिति गठित की। समिति द्वारा दायर की गई रिपोर्ट में रैगिंग को शिक्षा व्यवस्था में सबसे बड़ा घाव बताते हुए इसके खिलाफ कड़े नियम बनाने के निर्देश जारी किए गए।
रैगिंग दोषी पर लगने वाली धाराएं
धारा 294 - अश्लील हरकतें और गाने
धारा 323 - स्वेच्छापूर्वक चोट पहुँचाने की सजा
धारा 324 - स्वेच्छापूर्वक खतरनाक हथियार या साधनों से चोट पहुँचाने की सजा
धारा 325 - स्वेच्छापूर्वक गंभीर आघात पहुंचाने की सजा
धारा 326 - खतरनाक हथियार द्वारा स्वेच्छापूर्वक से चोट पहुंचाने की सजा
धारा 339 - अनुचित क्रूरता
धारा 340 - अनुचित कैद
धारा 341 - अनुचित क्रूरता के लिए सजा
धारा 342 - अनुचित कैद के लिए सजा
धारा 506 - दोषपूर्ण हत्या के लिए सजा
क्या है यूजीसी की गाइडलाइंस?
रैगिंग के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जिसका पालन सभी कॉलेज, विश्वविद्यालय और शिक्षण संस्थानों के लिए अनिवार्य है।
1. एंटी रैगिंग कमेटी का गठन।
2. एंटी रैगिंग स्क्वॉड।
3. रैगिंग मॉनिटरिंग सेल।
4. नए छात्र-छात्राओं को रैगिंग से जुड़े नियमों की जानकारी देना।
5. छात्र-छात्राओं से रैगिंग को लेकर शपथ पत्र जमा करवाना।
6. रैगिंग के नियमों का व्यापक तौर पर प्रचार करना।
7. सुरक्षा के कड़े इंतजाम करना।
8. आपातकालीन हेल्पलाइन नंबर की जानकारी देना।
9. छात्र-छात्राओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कराना।
इसके अलावा यूजीसी ने नेशनल एंटी रैगिंग हेल्पलाइन भी शुरू की है। रैगिंग के विक्टिम छात्र-छात्राएं टोल फ्री नंबर 18001805522 पर शिकायत कर सकते हैं। इसके अलावा वे [email protected] पर ई-मेल भी कर सकते हैं। यही नहीं, साल 2017 में यूजीसी ने एंटी रैगिंग ऐप भी बनाया है। इसे अपने स्मार्टफोन में डाउनलोड करके रैगिंग संबंधी सभी जानकारी ले सकते हैं।
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अन्य देशों में रैगिंग के क्या है नियम?
भारतीय उपमहाद्वीप के देशों भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में उच्च शिक्षण संस्थानों में रैगिंग के खिलाफ सख्त कानून बनाए गए हैं। वहीं, पश्चिमी देशों में रैगिंग को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। उत्तरी अमेरिका में रैगिंग को हेजिंग (hazing) कहा जाता है। वहीं, फ्रांस में इसे bizutage, पुर्तगाल में Praxe कहा जाता है।
भारत की तरह की दुनिया के अन्य देशों के शिक्षण संस्थानों में छात्रों को मानसिक प्रताड़ना देना, बुली करना, उस पर जातीय, नस्लीय, रंग के आधार पर टिप्पणी करना रैगिंग की श्रेणी में रखा जाता है। दुनिया के लगभग हर देश में रैगिंग के खिलाफ वहां के शिक्षण संस्थानों में कड़े नियम बनाए गए हैं। इन नियमों के तहत छात्रों के शिक्षण संस्थान से निष्कासन के अलावा जुर्माना और कैद के भी दंड निर्धारित किए गए हैं।