Lala Lajpat Rai: जब लाला लाजपत राय ने दिया लेखिका कैथरिन मेयो की भारत विरोधी पुस्तक का जवाब
लाला लाजपत राय ‘लाल, बाल, पाल’ की विख्यात त्रिमूर्ति के एक स्तम्भ थे, जिसने आजादी की लड़ाई के राजनीतिक स्वरूप को बदल दिया था। इस त्रिमूर्ति में उनके साथ बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल शामिल थे।
Lala Lajpat Rai: लाला लाजपत राय प्रख्यात वकील, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें 'पंजाब केसरी' के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म 28 जनवरी 1865 को पंजाब के मोगा जिला स्थित दुधिके गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम लाला राधा कृष्ण और माता का नाम गुलाब देवी था। लाला लाजपत राय के पिता एक सरकारी स्कूल में उर्दू के शिक्षक थे।
लालाजी का शुरूआती जीवन
साल 1879 में लाला लाजपत राय का नामांकन लुधियाना के मिशन हाई स्कूल में हुआ। इसके बाद, साल 1880 में आगे की शिक्षा के लिए लाहौर चले गए। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 1886 में उन्होंने लाहौर में ही वकालत शुरू कर दी लेकिन बाद में वे हिसार आ गए। यहां आने के बाद भी उन्होंने वकील के रूप में काम किया। इसी दौरान उनका आर्य समाज से संपर्क हुआ। वे उनकी गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे। लाला हंसराज के साथ मिलकर उन्होंने दयानंद एंग्लो वैदिक (डीएवी) स्कूलों की स्थापना की।
बिना मुकदमा चलाए भेजे गए मांडले
पंजाब में किसानों की समस्याओं को लेकर आंदोलन में भाग लेने के चलते पंजाब के तत्कालीन गवर्नर ने लाला लाजपत राय को 'खतरनाक आंदोलनकारी और क्रांतिकारी' करार दिया। इसके बाद, 1907 में बिना मुकदमा चलाए उन्हें बर्मा के मांडले जेल भेज दिया गया। इस जेल में वे छह महीनों तक रहे। जब ब्रिटिश शासन उनके खिलाफ सबूत जुटाने में असफल रहा, तो उन्हें रिहा कर दिया गया।
विदेशों से क्रांति की ज्वाला
लाला लाजपत राय ने 1914-19 तक इंग्लैंड, अमेरिका और जापान का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने विदेशों में भारत के प्रति सहानुभूति जगाने के लिए कड़ी मेहनत की। उन्होंने 1917 में न्यूयॉर्क में 'इंडियन होमरूल लीग ऑफ अमेरिका' की स्थापना की और 1918 में मासिक पत्रिका 'यंग इंडिया' की शुरुआत की।
जब एंटी-इंडिया पुस्तक का जवाब पुस्तक से दिया
अमेरिकी इतिहासकार कैथरिन मेयो ने 1927 में एक विवादित पुस्तक 'मदर इंडिया' की रचना की। इस पुस्तक में उन्होंने भारतीय समाज, धर्म और संस्कृति पर आपत्तिजनक बातें लिखीं। इस पर टिप्पणी करते हुए महात्मा गांधी ने कहा कि, "यह एक नाली निरीक्षक की रिपोर्ट है (It is the report of a drain inspector) और मैं इसे नहीं पढ़ूंगा।" जबकि राष्ट्रवादी नेता और स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय को यह पुस्तक ठीक नहीं लगी और उन्होंने इसके जवाब में 1928 में Unhappy India नाम से एक पुस्तक लिख दी।
पुस्तक की लेखिका कैथरीन का कहना था कि वह गांधी और चीतों के अलावा भारत के बारे में कुछ नहीं जानती थी, इसलिए 1925-1926 की सर्दियों के तीन महीने भारत के दौरे पर आ गयी। इस दौरान उन्होंने जो कुछ भी देखा, उसे अपने पूर्वाग्रहों और निजी नजरिए से इस पुस्तक के रूप में पेश कर दिया।
कैथरीन की पुस्तक के कुछ अंश इस प्रकार से थे, "वैष्णव तिलक के पीछे एक अश्लील अर्थ छुपा है", "हिन्दू धर्म में जीवित रहने के लिए प्रेरणा नहीं होती", असंख्य योनियों का हिन्दुओं में जिक्र मिलता है और निसंदेह इनके पतन का यह भी एक कारण है", और "हिन्दू महिलाओं के ज्ञान की सीमा केवल यहां तक सीमित होती है कि घर में देवताओं की पूजा किस तरह की जाए?"
कैथरीन, कलकत्ता के कालीघाट स्थित देवी काली के मंदिर भी गयी, जहां उन्होंने देवी की अध्यात्मिक शक्ति के स्थान पर सिर्फ गंदे फूल, पशु हत्या, पागल आदमी, गन्दी नालियां, भिखारी को ही अपनी पुस्तक में जगह दी। यही नहीं, उन्होंने तो यहां तक लिखा कि भारत के मंदिरों में अश्लील मूर्तियाँ होती हैं, जिसके कारण भारतीय युवाओं में भी अश्लीलता बढ़ रही है।
दरअसल, महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय सहित सभी कांग्रेस नेताओं का मानना था कि कैथरीन ने भारत और यहां रहने वाले हिन्दुओं की नकारात्मक छवि ब्रिटिश सरकार के कहने पर जानबूझकर प्रचारित की थी। उस समय देश की जनता कांग्रेस के बैनर तले ब्रिटिश सरकार से स्वशासन और स्वाधीनता की लड़ाई लड़ रही थी। जबकि ब्रिटिश शासन इस मांग को लेकर असहज था। इसलिए हमेशा यही कुतर्क दिया जाता था कि भारत के लोग स्वशासन करने के लिए सक्षम ही नहीं है। अतः दुनियाभर में भारत की कमजोर छवि बनाने के हरसंभव प्रयास किये गए, जिसमें से एक हथकंडा यह एक पुस्तक भी थी।
लाल लाजपत राय के अनुसार कैथरीन ने न सिर्फ भारतीय संस्कृति एवं परम्पराओं की गलत व्याख्या की बल्कि हिन्दू देवी-देवताओं का भी अपमान किया। साथ ही उन्होंने इसे झूठ का पुलिंदा करार दिया। अपनी पुस्तक 'अनहैप्पी इंडिया' में वे लिखते है, "मिस मेयो की भारत यात्रा स्वतः स्फूर्त नहीं थी। उन्हें निहित स्वार्थ वाले अंग्रेजों द्वारा भारत आने का आग्रह किया गया था। जो सोचते हैं कि भारत में स्वशासन उनके लिए एक खतरा है।" महात्मा गांधी ने भी यंग इंडिया में 15 सितम्बर 1927 को लाजपत राय का यह कहते हुए समर्थन किया कि कैथरीन के मन में पहले ही धारणा बनी हुई थी और उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा समर्थन दिया गया था।
लाला लाजपत राय ने अंग्रेजो के नस्लवाद को भी उजागर करते हुए लिखा कि "मेयो की मानसिकता एशिया के काले या भूरे लोगों के खिलाफ श्वेत जातियों की मानसिकता दिखाती है। पूर्वी देशों की जागृति ने यूरोप और अमेरिका दोनों को डरा दिया है। इसलिए इतनी प्राचीन और इतनी सुसंस्कृत संस्कृति के खिलाफ जानबूझकर कुख्यात प्रचार किया गया है।"
साइमन गो बैक
1927 में ब्रिटिश सरकार ने भारत में संवैधानिक सुधारों पर चर्चा के लिए साइमन कमीशन का गठन किया। जब 30 अक्टूबर 1928 को साइमन कमीशन लाहौर आया, तो लाला लाजपत राय ने अहिंसक विरोध शुरू कर दिया। दरअसल, आयोग का कोई भी सदस्य भारतीय नहीं था। पुलिस सुप्रिटेंडेंट जेम्स स्कॉट ने लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज का आदेश दिया और उन पर लाठियों से प्रहार किया गया। लालाजी के सिर में गंभीर चोट आई। इस अवसर पर लालाजी ने कहा कि मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी। इस चोट से लालाजी उबर नहीं पाए और 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई।
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