क्या है मां की लोरी का सच, क्यों सुनते ही सो जाते हैं बच्चे?
आंचल श्रीवास्तव
ऐसा कोई बच्चा नहीं होगा जो मां की लोरी बिना सुने ही सो जाता हो.. बच्चे को जब बोलना भी नहीं आता तब भी वो लोरी की भाषा को समझता है..लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि लोरी की खोज कैसे हुई होगी?
बार बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी..
आज मुझे उसके बारे में कुछ मालूम हुआ जो आपसे बांटना चाहती हूं..
कहां से आई लोरी
लोरी अंग्रेजी के शब्द 'ललबाई' (lullaby) का हिंदी अनुवाद है। 'ललबाई' यानी 'लल' और 'बाई' का मिश्रण, जिसका अर्थ होता है बच्चा शांत हो जाए और फिर सो जाए। लोरी के इतिहास को खंगाला गया तो पता चला कि करीब चार हज़ार साल पहले बेबीलोनिया में पहली बार किसी मां ने अपने बच्चे को लोरी सुनाई थी।
लोरी से डराते थे बच्चों को
ईसा पूर्व 2000 में मिट्टी के एक छोटे से टुकड़े पर गहरे खुदे लोरियों के ये शिलालेख बताते है कि लोरियाँ गुनगुनाने का इतिहास कितना पुराना है। इस पर लिखी लोरी को जहां तक पढ़ा जा सका है उसका मतलब ये निकलता है कि, “जब एक बच्चा रोता है तो ईश्वर विचलित हो जाते हैं और फिर उसका परिणाम घातक होता है। यानी पहली लोरी में प्रेम से अधिक डर का पुट था। इस शिलालेख को लंदन के ब्रिटिश संग्रहालय में रखा गया है।
अलग देशों की अलग कहानियां
एक लोरी का उल्लेख करते हुए संगीतकार ज़ोय पामर कहते हैं, “वो लोग बच्चों को नसीहत देते थे कि बहुत शोर कर चुके हो और इस शोर से बुरी आत्माएं जाग गई हैं और अगर वह अभी तुरंत नहीं सोया तो प्रेत आत्माएं उसे खा जांएगी”। पश्चिमी कीनिया के लुओ जाति के बीच एक लोरी काफी प्रचलित है जिसमें बच्चों से कहा जाता है कि जो बच्चा नहीं सोएगा, उसे लकड़बग्घा खा जाएगा।
विज्ञान क्या कहता है
डॉक्टरों का कहना है कि मां लोरी के माध्यम से बच्चे पर अच्छे संस्कार के बीज रोप सकती है। लोरी सुनते हुए शिशु को आनंद की अनुभूति होती है। उसके भीतर एक तरह के आनंद रस का प्रवाह होता है। जिससे वह रोमांचित भी होता है। उसके भीतर ग्रहण शक्ति का विकास होता है।
कुछ जानने योग्य बातें
गोड्डार्ड ब्लेथ कहते हैं कि गर्भ के 24वें सप्ताह में ही बच्चा मां की आवाज़ सुनने लगता है।इनका कहना है कि मां और बच्चे के बीच बातचीत और लोरियों का पुराना इतिहास है। कई शोध बताते हैं कि बच्चों में ताल और लय को समझने की अदभुत क्षमता होती है।
- भारत के अधिकांश हिस्से में बच्चों को जो लोरियां सुनाई जाती है उनमें चंदा मामा का जिक्र होता है। चंदा मामा दूर के एक प्रचलित लोरी है।
- कीनिया में मांएं लोरियों में अक्सर लकड़बग्घे का जिक्र करती हैं ताकि बच्चा डर से सो जाए।
- कीनिया के ग्रामीण इलाकों के जंगलों में लगड़बग्घे पाए जाते हैं शायद ये इसकी प्रमुख वजह है।
- स्वीडन में कुछ लोरियों में बच्चों को भाषा सिखाने की कोशिश होती है तो कुछ लोरियां शिक्षाप्रद होती हैं।
- इराक की लोरियों में दर्द होता है।
भारतीय फिल्मों में लोरियां
हिंदी फिल्मों ने लोरी को अपने आंचल में इतनी बखूबी संजोया जिसे देखते ही बनता है। एक से एक खूबसूरत शब्दों का चयन जो दिल के भीतर उतर जाए फिर कैसे न कोई बच्चा सो जाए। 1985 में बनी फिल्म लोरी; दो बीघा ज़मीन (1983), नया संसार 1951; वचन 1955; रौडी राठौर 2012 आदि फिल्मों ने लोरियों के ज़रिये मां और बच्चे के रिश्तों को नई परिभाषा दी है।