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जानिए कैसे बनते हैं भारत रत्न, व पद्म सम्मान के मेडल?

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नई दिल्‍ली। गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रतिवर्ष सरकार कला, साहित्य, शिक्षा, खेलकूद, औषधि, सामाजिक कार्य, विज्ञान एवं इंजीनियरिंग, सार्वजिनक मामले, लोकसेवा, व्यापार एवं उद्योग आदि जैसे क्षेत्रों में कार्य करने वाले व्यक्तियों को
उनकी विशिष्ट सेवा एवं उपलब्धियों के लिए सम्मानित करती है।

भारत रत्न, पद्म पुरस्कार, परमवीर चक्र जैसे सैन्य सम्मान, वीरता एवं साहस के लिए पुलिस पदक सर्वोच्‍च नागरिक सम्मान की सूची में शामिल है। भारत सरकार की कोलकाता की टकसाल में इन पदकों की कटिंग, नक्काशी तथा धातु का चमका कर इसे अंतिम रूप देने में सैंकड़ों शि‍ल्‍पकार दिन-रात परि‍श्रम करते हैं।

कैसे होता है मेडल्‍स का निर्माण

  • सिक्योरिटी प्रीटिंग एंड मिन्टींग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एसपीएमसीआईएल) का गठन किया गया है।
  • इसमें पूर्व में वित्‍त मंत्रालय के तहत कार्यशील चार टकसालों, चार प्रेसों और एक पेपर मिल शामिल हैं।
  • एसपीएमसीआईएल सुरक्षा पत्रों उत्‍पादन, सिक्‍कों को ढालने, नोट तथा बैंक नोट छापने, डाक टिकट आदि का निर्माण करती है।
  • यह कंपनी भारतीय रिजर्व बैंक की नोट तथा सिक्‍कों की जरूरत को पूरा करती है।
  • साथ ही राज्‍य सरकार के लिए गैर-न्‍यायिक स्टैंप पेपर और डाक विभाग के लिए डाक टिकट की आपूर्ति करती है।
  • विदेश मंत्रालय के लिए पासपोर्ट, वीजा स्टिकर्स और अन्‍य यात्रा संबंधी कागजातों की आपूर्ति भी होती है।
  • कंपनी नागरिक, सैन्‍य, पुलिस, खेल कूद तथा फिल्‍म महोत्‍सव के पदक/अलंकरण, संस्‍मारक सिक्‍के भी तैयार करती है।
  • कंपनी की नौ इकाईयों को नोट एवं सुरक्षा छपायी की प्रेसों, सुरक्षा पेपर मिल तथा भारत सरकार की टकसाल के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • मुंबई, हैदराबाद, कोलकाता और नोएडा स्थित टकसालें धरोहर हैं।
  • यहीं से उम्‍दा उत्‍पाद के उत्‍पादन की परंपरा रही है और देश में प्रचलित सभी सिक्‍के इन टकसालों में ढाले जाते हैं।
किले के भवन में हुई शुरुआत

किले के भवन में हुई शुरुआत

भारत सरकार की कोलकाता स्थित टकसाल 1757 में पुराने किले के एक भवन में स्‍थापित की गई थी जहां आजकल डाक घर (जीपीओ) है। इसे कलकत्‍ता टकसाल कहा जाता था जिसमें मुर्शीदाबाद नाम से सिक्‍के ढाले जाते थे।

वर्ष 1829 में शुरुआत

वर्ष 1829 में शुरुआत

दूसरी कलकत्‍ता टकसाल गिलेट जहाज भवन संस्‍थान में स्‍थापित की गई और इस टकसाल में भी मुर्शीदाबाद के नाम से सिक्‍कों का उत्‍पादन जारी रहा। तीसरी कलकत्‍ता टकसाल स्‍ट्रेंड रोड पर 01 अगस्‍त, 1829 (चांदी टकसाल) से शुरू की गई।

सिर्फ तांबे के सिक्‍कों का उत्‍पादन

सिर्फ तांबे के सिक्‍कों का उत्‍पादन

1835 तक इस टकसाल से निकलने वाले सिक्‍कों पर मुर्शीदाबाद टकसाल का नाम ढाला जाता रहा। 1860 में चांदी टकसाल के उत्‍तर में केवल तांबे के सिक्‍के ढालने के लिए एक 'तांबा टकसाल' का निर्माण किया गया। चांदी और तांबा टकसालों में तांबे, चांदी और सोने के सिक्‍कों का उत्‍पादन किया जाता था।

मेडल का निर्माण

मेडल का निर्माण

ब्रिटिश राज के दौरान सिक्‍के ढालने के अलावा कोलकाता टकसाल में पदकों एवं अलंकरणों का निर्माण भी किया जाता था। आज भी यहां पदकों का निर्माण किया जाता है।

अलीपुर टकसाल की शुरुआत

अलीपुर टकसाल की शुरुआत

1952 में इस टकसाल के बंद होने पर 19 मार्च, 1952 को तत्‍का‍लीन वित्‍त मंत्री श्री सी.डी. देशमुख द्वारा वर्तमान अलीपुर टकसाल की शुरूआत की गई। तब से अलीपुर टकसाल में ढलाई और पदकों, अलंकरणों एवं बिल्‍ले तैयार किये जाते हैं।

होता है सिक्‍कों का उत्‍पादन भी

होता है सिक्‍कों का उत्‍पादन भी

इस टकसाल से नागरिक, सैन्‍य, खेलकूद, पुलिस आदि कई पदकों के निर्माण के साथ-साथ 1,2,5,10 रूपये के सिक्‍कों का उत्‍पादन भी किया जाता है। इन पदकों में प्रमुख हैं- भारत रत्‍न, पद्मविभूषण, पद्मभूषण, पद्मश्री जैसे सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान एवं परमवीर चक्र आदि जैसे सैन्‍य सम्‍मान हैं।

1954 में हुई शुरुआत

1954 में हुई शुरुआत

देश का सर्वोच्‍च नागरिक सम्‍मान 'भारत रत्‍न' की शुरूआत वर्ष 1954 में की गई। मानवता के क्षेत्र में विशिष्‍ट सेवा/कार्य के लिए यह सम्‍मान दिया जाता है।

राष्‍ट्रपति करते हैं सम्‍मानित

राष्‍ट्रपति करते हैं सम्‍मानित

एक वर्ष में अधिकतम तीन व्‍यक्तियों को ही इस सम्‍मान से नवाजा जा सकता है। पुरस्‍कृत व्‍यक्ति को राष्‍ट्रपति द्वारा हस्‍ताक्षरित एक सनद और एक पदक दिया जाता है।

मेडल पर होती है नक्‍काशी

मेडल पर होती है नक्‍काशी

करीब 5.8 सेंटीमीटर लंबा, 4.7 सेंटी मीटर चौड़ा और 3.1 मिली मीटर चौड़ी पीपल की पत्‍ते के रूप में है। इसके ऊपर 1.6 सेंटीमीटर गोलाई में सूर्य की तस्‍वीर अलंकृत है।इसके नीचे देव नागरिक लिपी में भारत रत्‍न शब्‍द की नक्‍काशी है। इसके पीछे राज्‍य का प्रतीक चिन्‍ह तथा आदर्श वाक्‍य भी देवनागरी में लिखा है। प्रतीक चिन्‍ह, सूर्य और गोलाई प्‍लेटिनम की बनी हुई है, जबकि अभिलेख कांस्‍य का है।

1954 में हुई शुरुआत

1954 में हुई शुरुआत

1954 में पद्म पुरस्‍कारों की शुरूआत की गई और हर वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर इन सम्‍मानों की घोषणा की जाती है।

पद्मविभूषण, पद्मभूषण और पद्मश्री

पद्मविभूषण, पद्मभूषण और पद्मश्री

इस सम्‍मान को तीन श्रेणियों वर्गीकृत किया गया है, जिनके नाम हैं पद्मविभूषण, पद्मभूषण और पद्मश्री। विशिष्‍ट सेवा के लिए 'पद्मश्री', उच्‍च स्‍तर पर विशिष्‍ट सेवा के लिए 'पद्मभूषण' दिया जाता है। अति विशिष्‍ट एवं प्रसिद्ध सेवा के लिए 'पद्मविभूषण' से सम्‍मानित किया जाता है। पद्म सम्‍मान में राष्‍ट्रपति का ठप्‍पा लगा एक सनद एवं पदक दिया जाता है। समारोह के दिन पुरस्‍कृत व्‍यक्ति के बारे में संक्षिप्‍त विवरण वाली पत्रिका भी जारी होती है।

कैसा होता है मेडल

कैसा होता है मेडल

इस पदक का डिजाइन गोलाकार है जिस पर ज्‍यामिती आकृतियां हैं।गोल हिस्‍से की गोलाई 4.4 सेंटीमीटर तथा मोटाई करीब 0.6 मिलीमीटर है।इसके ऊपर गोलाकार में कमल के फूल की नक्‍काशी की गई है। कांस्‍य से कमल के ऊपर हिंदी में पद्म तथा कमल के नीचे विभूषण उकेरा गया है। पदक के दोनों तरफ सफेद सोने से अलंकरण किया गया है।

नजर आता है पद्मविभूषण जैसा

नजर आता है पद्मविभूषण जैसा

यह पदक पद्म विभूषण की तरह ही है लेकिन इसके दोनों तरफ स्‍टैंडर्ड सोना है।

बना होता है स्‍टील से

बना होता है स्‍टील से

दूसरे पद्म पदकों की तरह ही यह पदक है लेकिन इसकी दोनों तरफ स्‍टैनलेस स्‍टील से अलंकरण किया गया है।

Comments
English summary
There is a mint in West Bengal's capital Kolkata where these medals are being manufactured every year.
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