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Teacher's day Special: मॉडर्न हो गये हैं हमारे गुरूजी

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आंचल प्रवीण

स्वतंत्र पत्रकार
आंचल पत्रकारिता एवं जनसंचार में पोस्ट ग्रेजुएट हैं, आंचल को ब्लोगिंग के अलावा फोटोग्राफी का शौक है, वे नियमित रूप से राष्ट्रीय और अंतरष्ट्रीय मुद्दों पर लिखती रहती हैं|

लखनऊ। धोती कुर्ता पहने हाथ में बेंत का डंडा लिए बगल में किताबें दबाये और गुस्से भरी आँखों पर मोटे ग्लास का चश्मा चढ़ाये हुए किसी व्यक्ति की कल्पना की जाए तो एक बार में हम बता सकते हैं की ये गुरुजी है। ऐसे ही तो होते थे मास्टर साहब जिनकी एक आवाज़ में बच्चों की सांसे रूक जाती थी।

समय बदलता गया, सेठे की कलम, खड़िया और चाक कब डिजिटल हो गयी मालूम ही नहीं हुआ, ब्लैकबोर्ड बिना फेयर एन लवली लगाये वाइट बोर्ड होगया और फिर धीमे से कैलिब्रेटेड स्क्रीन पर पढाई शुरू हो गयी। हम इतनी तेज़ी से डिजिटल हुए की समय का पता ही नहीं चला। स्लेट पर चाक से लिखने वाले बच्चे बस्ते के बोझ तले दब गये। कई मर्तबा बच्चों के खुद के वजन से ज्यादा भार स्कूल बैग का होने लगा, पर डिजिटल तकनीक से यह बोझ भी कम हुआ और स्लेट की जगह हांथों में स्मार्ट फ़ोन आ गये।

ब्लैकबोर्ड बिना फेयर एन लवली के वाइट बोर्ड हो गया

हाथों में डिजिटल दुनिया के दरवाज़े की वो चाभी आ गयी जिससे मात्र एक क्लिक से दुनिया का सब ज्ञान हमारे इर्द गिर्द मंडराने लगा। अब लगा की शायद टीचर की ज़रूरत ही नहीं पर वो दोहा तो सबने पढ़ा है-गुरु बिन भवनिधि तरहिं न कोई, गूगल पर ज्ञान का इतना रायता फैला है की उसे समेटने और अपने टेस्ट का रायता बीनने के लिए फिर हमे गुरु जी की ज़रूरत पड़ी।

जो दिखे दुनिया में सबसे फटीचर समझ लो वही है टीचर

किसी व्यंग्य की किताब में पढ़ा था-जो दिखे दुनिया में सबसे फटीचर समझ लो वही है टीचर, ये पढ़कर हंसी तो बहुत आई पर गौर से सोचा तो ध्यान पड़ा की हमारे प्यारे गुरूजी परिस्थितियों के कितने मारे हुए है, कहीं माली हालात ठीक नहीं तो कहीं परिस्थिति जन्य व्यवधान जिनमे हमारे गुरूजी हमेशा ही उलझे रहते। दिन भर श्रम करते पर पारिश्रमिक के नाम पर नन्हा सा वेतनमान जिससे उनका और परिवार का गुज़ारा बड़ी मुश्किलों में होता।

वक्त ने टीचरों को भी बदल दिया

पर आज सरकार ने उनके लिए तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराई है। आज गुरूजी सिर्फ खुद जलकर दूसरों को रोशनब देने वाली मोमबत्ती नहीं रह गए बल्कि एक एस्केलेटर की भाँती खुद भी ऊपर जाते है और दूसरों को भी ऊपर ले जाते हैं।

हमारे आसपास दुनिया इतनी तेज़ी से बदली की हमने ध्यान ही नही दिया की खद्दर की धोती पहनने वाले सर कब क्रीज्ड पैंट और टिंच शर्ट पहन कर टाई लगाने लगे। उनके हाथों में डंडा नहीं आँखों पर मोटा गिलास का चश्मा नहीं चेहरे पर गुस्सा नहीं है।

हाथों में स्मार्ट फ़ोन और होठों पर मुस्कान

अब उनके हाथों में स्मार्ट फ़ोन और होठों पर मुस्कान है। अब बच्चे उनकी डांट से थर थर कांपते नहीं, अब उनके और बच्चों के बीच दोस्ती है। अब वो जो जीता वही सिकंदर के दुबेजी (गोवर्धन असरानी) जैसे नहीं दीखते है अब वो तारे ज़मीन पर के राम शंकर निकुम्भ (आमिर खान) और मैं हूँ न की मिस चांदनी (सुष्मिता सेन) जैसे दीखते हैं। अब वो सिर्फ गुणवत्ता पर ही नहीं प्रस्तुतीकरण पर भी उतना ही ध्यान देते है।

आखिर मॉडर्न हो गये हैं हमारे गुरूजी

आज वो जीन्स और टीशर्ट पेहेनते हैं, स्मार्ट गाड़ियाँ चलाते हैं, वो सशक्त है, अपडेटेड है और हर मायने में बेहतरीन हैं, उनके पढ़ाने का तरीका, बातचीत का ढंग रहें सहन सब बदल गया है, आखिर हो भी क्यों न बचपन में नर्सरी से लेकर बड़े होने तक हम हर मायने में अपने टीचर को ही फॉलो करते आये हैं और करते रहेंगे, वो हमारे रोल मॉडल है। हमारे इस रोल मॉडल का मॉडर्न स्वरूप बहुत ही रोकिंग है, वो हमारे मार्ग दर्शक कल भी थे आज भी हैं और हमेशा रहेंगे।

हमारे मॉडर्न गुरूजी को टीचेर्स डे की ढेरों शुभकामनाएं...

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English summary
September 5th is celebrated as Teachers'day in India.Ex-President of India Mr. Sarvepalli Radhakrishnan's birth day (1888-1975)is celebrated as Teachers'day. He was a philosopher and statesman.
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