Nepal: नेपाल में भी धर्मांतरण का खेल, उठने लगी नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने की मांग
नेपाल में एक बार फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने और राजतंत्र की बहाली का मुद्दा गरम हो गया है। इन मांगों के लिए आंदोलन कर रहे लोग सड़कों पर उतरने लगे हैं।
साल 2006 के जन आंदोलन में राजशाही को खत्म किये जाने के बाद नेपाल को 2008 में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया था। हालांकि, नेपाल को एक बार फिर से हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग की जा रही है। अब इसे देश के पूर्व महाराजा ज्ञानेंद्र शाह का भी समर्थन प्राप्त है। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह 13 फरवरी 2023 को हिंदू राज्य के पुराने स्टेटस की बहाली से जुड़े एक महत्वपूर्ण अभियान में शामिल हुए।
जहां एक तरफ लोग सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन कर रहे हैं दूसरी तरफ हिंदूवादी संगठन गोलबंद हो रहे हैं। हिंदूवादी संगठनों का कहना है कि देश की 80 प्रतिशत से ज्यादा आबादी हिंदुओं की है तो इसे हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं घोषित किया जा रहा है। पिछले साल, मई 2022 में ही काठमांडू में वर्ल्ड हिंदू फेडरेशन की ओर से दो दिवसीय कार्यकारिणी परिषद की बैठक हुई थी। जिसमें नेपाल, भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका, मलेशिया, अमेरिका, जर्मनी और ब्रिटेन सहित 12 देशों के 150 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया और कहा गया कि नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग को जनमत संग्रह में रखा जा सकता है।
नेपाल
का
इतिहास
और
हिंदू
राष्ट्र
नेपाल
दुनिया
का
इकलौता
देश
है
जो
कभी
किसी
का
गुलाम
नहीं
रहा।
इसलिए
इसकी
'हिंदू'
संस्कृति
समृद्ध
होती
रही
और
बाहरी
आक्रामणकारियों
का
यहां
कुछ
ज्यादा
प्रचार
प्रसार
नहीं
हो
सका।
साल
1765
में
नेपाल
पर
गोरखा
राजा
पृथ्वी
नारायण
शाह
का
राज
था।
कहते
हैं
कि
राजा
पृथ्वी
नारायण
शाह
ने
ही
नेपाल
की
एकता
की
मुहिम
शुरू
की
थी।
इससे
पहले
नेपाल
छोटी-छोटी
रियासतों
और
कुलों
के
परिसंघों
में
बंटा
हुआ
था।
इसके
बाद
जब
शाह
राजवंश
के
पांचवें
राजा
राजेंद्र
बिक्रम
शाह
गद्दी
पर
थे,
तब
उनके
शासन
काल
में
ब्रिटिश
ईस्ट
इंडिया
कंपनी
ने
नेपाल
के
सीमाई
इलाकों
पर
कब्जा
कर
लिया।
उसके कारण 1815 में लड़ाई छिड़ गई जिसका अंत सुगौली संधि पर समाप्त हुआ। इसके बाद फिर 1846 में राजा सुरेंद्र बिक्रम शाह के शासन काल में जंग बहादुर राणा एक शक्तिशाली सैन्य कमांडर के रूप में उभरे। इसके बाद साल 1923 में ब्रिटेन से हुई संधि के कारण नेपाल को संप्रभुता तो मिल गई, लेकिन भारत की आजादी के प्रभाव में नेपाल में भी लोकतांत्रिक आंदोलन शुरू हो गये। नेपाल की कांग्रेस पार्टी ने इन आंदोलनों को तेज किया और साल 1951 में राणाओं की सत्ता खत्म हुई। तब राजा त्रिभुवन को संवैधानिक प्रमुख बना दिया गया। साथ ही नेपाली कांग्रेस पार्टी की सरकार बनाई गई।
इसके बाद भी राजा और सरकार के बीच सत्ता को लेकर खींचतान चलती रही। साल 1972 में राजा बीरेंद्र बिक्रम शाह ने राजकाज संभाला। साल 1989 में एक बार फिर लोकतंत्र के समर्थन में जन आंदोलन शुरू हो गया और राजा को संवैधानिक सुधार स्वीकार करने पड़े और मई 1991 में पहली बहुदलीय संसद का गठन हुआ।
दूसरी ओर साल 1996 में माओवादी आंदोलन शुरू हो गया। एक जून 2001 को नेपाल के राजमहल में राजा, रानी, राजकुमार, राजकुमारी और अन्य रिश्तेदारों की सामूहिक हत्या कर दी गयी। तब राजगद्दी पर राजा के भाई ज्ञानेंद्र बीर बिक्रम शाह बैठे। इसी के साथ नेपाल में जन आंदोलन शुरू हुआ और राजा को सत्ता जनता के हाथों में सौंपनी पड़ी। इसके बाद 28 मई 2008 को नवनिर्वाचित संविधान सभा ने 240 साल पुरानी राजशाही को खत्म करते हुए नेपाल को एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया। इसके साथ ही दुनिया के इकलौते हिंदू राष्ट्र को सेकुलर नेशन घोषित कर दिया गया।
किस
नेता
ने
कब-कब
किया
हिंदू
राष्ट्र
का
समर्थन?
साल
2020
में
19
सितंबर
को
नेपाल
में
संविधान
दिवस
मनाया
गया।
तब
नेपाल
की
राष्ट्रीय
प्रजातंत्र
पार्टी
(RPP)
के
राष्ट्रीय
अध्यक्ष
व
पूर्व
उप
प्रधानमंत्री
कमल
थापा
ने
राष्ट्र
के
हित
में
सनातन
हिन्दू
राष्ट्र
घोषित
करने
की
मांग
की
थी।
कमल
थापा
ने
ट्वीट
कर
भी
कहा
था
कि
राष्ट्र
के
व्यापक
हित
को
देखते
हुए
नेपाल
को
हिन्दू
राष्ट्र
घोषित
किया
जाना
चाहिए।
अगस्त, 2021 में नेपाली सेना के पूर्व जनरल रुकमांगुड कटवाल (2006-2009 के बीच नेपाली सेना प्रमुख) ने नेपाल को हिंदू राष्ट्र फिर से बनाने के लिए एक अभियान की शुरुआत की थी। उन्होंने कहा था कि यह अभियान धर्म के आधार पर पहचान और संस्कृति को बढ़ावा देगा। उन्होंने नेपाल के 20 हिंदू धार्मिक संगठनों का एक संयुक्त मोर्चा बनाया है ताकि नेपाल का हिंदू राष्ट्र का दर्जा बहाल किया जा सके।
मार्च, 2022 में नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी (एकीकृत समाजवादी) के नेता व तत्कालीन पर्यटन और संस्कृति मंत्री प्रेम अले ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि हमारे संविधान ने देश को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया लेकिन अगर बहुसंख्यक आबादी हिंदू राष्ट्र के पक्ष में है तो जनमत संग्रह के माध्यम से नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित क्यों नहीं किया गया? नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग पर विचार किया जा सकता है, अगर ऐसी मांग आती है तो वह एक रचनात्मक भूमिका निभाएंगे।
ईसाई
और
मुस्लिम
धर्मान्तरण
का
खेल
अब
यहां
गौर
करने
वाली
बात
ये
है
कि
नेपाल
में
धर्म
परिवर्तन
के
मामलों
में
तेजी
से
वृद्धि
हुई
है।
14
जनवरी
2023
को
बीबीसी
ने
एक
चौंकाने
वाली
रिपोर्ट
प्रकाशित
की
जिसमें
कहा
गया
कि
एक
दशक
से
भी
कम
समय
में
नेपाल
में
ईसाई
आबादी
में
68
प्रतिशत
की
वृद्धि
हुई
है,
विशेष
रूप
से
दक्षिण
कोरिया
से
आए
ईसाई
मिशनरियों
की
बदौलत।
'ईसाई
मिशनरियों
ने
नेपाल
में
बुद्ध
के
जन्मस्थान
को
निशाना
बनाया'
शीर्षक
वाली
इस
एक
रिपोर्ट
में
बताया
गया
कि
कैसे
दक्षिण
कोरिया
विशेष
रूप
से
नेपाल
में
धर्म
प्रचारकों
की
बड़ी
फौज
भेज
रहा
है।
रिपोर्ट के अनुसार 2011 में नेपाल में लगभग 3,76,000 ईसाई थे, जो अब बढ़कर लगभग 5,45,000 हो गई है, मतलब 68 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। गौरतलब है कि नेपाल में ईसाईयों की कुल आबादी अब 2 प्रतिशत हो गई है, जबकि हिंदू 80 प्रतिशत और बौद्ध 9 प्रतिशत हैं। साल 1951 में नेपाल में ईसाइयों की संख्या शून्य थी, जो 1961 में बढ़कर 458 हो गई। तब से, संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। साल 2008 में देश में 240 साल पुरानी हिंदू राजशाही खत्म हो गई और यह सेक्युलर हो गया। रिपोर्ट बताती है कि देश की धार्मिक स्थिति में बदलाव ने ईसाई आबादी को बढ़ाने में बहुत मदद की है।
वहीं दूसरी ओर एशिया न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक नेपाली श्रमिक संघ द्वारा आरोप लगाया गया कि अरब देशों में काम करने गए नेपाली अप्रवासी लोगों को जबरन इस्लाम कबूल करवाया जा रहा है। कतर में 2,000 मामले, अरब अमीरात और मलेशिया जैसे देशों में 4,000 मामलों के बारे में बताया गया है। उनसे हिंदू धर्म को त्याग कर इस्लाम को गले लगाने को कहा जाता है।
नेपाल
की
धार्मिक
जनसंख्या
नेपाल
की
मिनिस्ट्री
ऑफ
अफेयर्स
की
वेबसाइट
के
मुताबिक
2011
की
जनगणना
के
अनुसार
नेपाल
में
हिंदुओं
की
आबादी
81.3
प्रतिशत
(21,551,492)
है।
बौद्ध
9
प्रतिशत
(2,396,099),
इस्लाम
4.4
प्रतिशत
(1,162,370),
किरत
3.1
प्रतिशत
(807,169),
ईसाई
1.4
प्रतिशत
(375,699),
प्रकृति
0.5
प्रतिशत
(121,982),
बोन
(13,006),
जैन
(3,214),
बहाई
(1,283)
और
सिख
(609)
हैं।