सीएजी ने प्रशस्त की थी ईवीएम की राह
निर्वाचन आयोग से सेवानिवृत्त हो चुके एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक मतदान करने और गिनती के जटिल काम को आसान बनाने वाला ईवीएम अभी तक प्रयोग के स्तर पर ही रहता यदि सीएजी ने 1996-97 में इस प्रौद्योगिकी के विकास पर हुए करोड़ों रुपये पर सवाल नहीं उठाया होता।
अधिकारी ने यहां आईएएनएस से कहा, "चुनाव में गड़बड़ी, बूथ कब्जा एवं इस तरह की अन्य गतिविधियों पर रोक लगाने के उद्देश्य से 1977-78 के आसपास पहली बार इसका (ईवीएम) विचार आया। इसके बाद सार्वजनिक क्षेत्र की दो कंपनियां भारत इलेक्ट्रानिक्स और इलेक्ट्रनिक कारपोरेशन ऑफ इंडिया को प्रयोगिक आधार पर मशीन विकसित करने का जिम्मा सौंपा गया।"
पूर्व अधिकारी के मुताबिक, दुनिया भर के विशेषज्ञों से राय मांगी गई ताकि ईवीएम को प्रभावी और यहां तक कि निरक्षर भी आसानी से इसका इस्तेमाल कर सकें। ईवीएम के लिए सबसे पहले 1981 में केरल चुनाव के लिए एक छोटा सा आर्डर मिला, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने परिणाम को खारिज कर दिया।
अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकी को लेकर उम्मीद का दामन नहीं छोड़ते हुए निर्वाचन आयोग के ईवीएम प्रयोग का समर्थन चुनाव सुधारों पर गठित गोस्वामी समिति ने भी की। अधिकारी के मुताबिक, "भारतीय जन प्रतिनिधित्व कानून और चुनाव संचालन नियमावलि में संशोधन के बाद निर्वाचन आयोग ईवीएम का विस्तृत इस्तेमाल कर सका।"
भारत इलेक्ट्रानिक्स एवं इलेक्ट्रनिक्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया को 75 करोड़ रुपये खर्च पर करीब 150,000 ईवीएम का आर्डर देकर निर्वाचन आयोग ने चरणबद्ध तरीके से इसे सभी क्षेत्रों में लागू करना तय किया। लेकिन वित्तीय और राजनीतिक अड़चन ने इस प्रक्रिया में रोड़े अटकाए।
पूर्व अधिकारी ने बताया, "बड़े पैमाने पर ईवीएम खरीदारी करने के बाद भी करीब नौ वर्षो तक देश में ईवीएम का प्रयोग शुरू हो सका। यह बात सीएजी के संज्ञान में आई और उसने कुछ कड़े सवाल उठाए।" 1998 में तत्कालीन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एम. एस. गिल के प्रयास से दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश और मिजोरम में ईवीएम का प्रयोग हुआ।
इसी अवधि में संपूर्ण मतदाता सूची का कंप्यूटरीकरण हुआ और फोटो पहचान पत्र जारी हुए। 2004 से निर्वाचन आयोग लोकसभा और विधानसभा के चुनाव केवल ईवीएम के जरिए करा रहा है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।