Bhopal Gas Tragedy: वो काली रात... जब दर्द से चिल्ला उठा था ‘भोपाल' और भाग गया मुख्य आरोपी
भोपाल गैस त्रासदी को हुए 38 बरस हो चुके हैं। 2 और 3 दिसंबर, 1984 की रात को कुछ ही घंटों में हजारों लोग ‘मौत की नींद' सो चुके थे। आज भी उस काली रात का दंश झेल रहे हैं भोपाल के लोग, पढ़िए उस काली रात की दास्तान।
कैसे
लीक
हुई
थी
जहरीली
गैस?
पंजाब
केसरी
की
एक
रिपोर्ट
के
मुताबिक
2
दिसंबर
की
रात
8
बजे
यूनियन
कार्बाइड
कारखाने
में
काम
करने
वाली
रात
की
शिफ्ट
शुरू
हो
चुकी
थी।
सुपरवाइजर
और
मजदूर
अपना-अपना
काम
कर
रहे
थे।
एक
घंटे
बाद
9
बजे
करीब
6
कर्मचारी
भूमिगत
टैंक
के
पास
पाइपलाइन
की
सफाई
कर
रहे
थे।
रात 10 बजे के करीब उस भूमिगत टैंक में रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू हुई और एक साइड पाइप से टैंक E610 में पानी घुस गया। पानी घुसते ही जोरदार रिएक्शन होने लगा। इस बीच अचानक टैंक का तापमान बढ़कर 200 डिग्री सेल्सियस हो गया। जबकि तापमान 4 से 5 डिग्री के बीच रहना चाहिए था।
रात 10:30 बजे टैंक से गैस पाइप के जरिए टॉवर से गैस का रिसाव शुरू हो गया और लगभग 45-60 मिनट के अंदर 40 मीट्रिक टन एमआईसी का रिसाव हो गया। इसके बाद रात 12:15 बजे वहां पर मौजूद कर्मचारियों की घुटन से मौत होने लगी। इससे पहले की कोई कुछ समझ पाता तभी खतरे का सायरन बजने लगा। टैंक से भारी मात्रा में निकली जहरीली गैस पूरे शहर में फैल गई। जहरीली गैस की चपेट में भोपाल का पूरा दक्षिण-पूर्वी इलाका आ चुका था। देखते ही देखते चारों तरफ लाशों का अंबार लग गया।
कितनी
हुई
मौतें,
सरकार
ने
क्या
छिपाया?
उस
रात
की
अगली
सुबह
3
दिसंबर
तक
हजारों
लोग
मौत
की
नींद
सो
चुके
थे।
मरने
वालों
की
संख्या
को
लेकर
अलग-अलग
एजेंसियों
के
आंकड़े
भी
अलग-अलग
और
समय-समय
पर
बदलते
भी
गए।
पहले
अधिकारिक
तौर
पर
मरने
वालों
की
संख्या
2,259
बताई
गई।
वहीं
तब
की
तत्कालीन
कांग्रेस
सरकार
ने
3,787
लोगों
के
मरने
की
पुष्टि
की
थी।
जबकि
कुछ
रिपोर्ट्स
में
दावा
है
कि
8000
से
ज्यादा
लोगों
की
मौत
तो
दो
सप्ताह
के
अंदर
ही
हो
गई
थी
और
अन्य
8000
से
ज्यादा
लोग
गैस
रिसाव
से
फैली
बीमारियों
के
कारण
मारे
गये
थे।
गौर करने वाली बात ये भी है कि साल 2006 में ही एमपी सरकार के द्वारा कोर्ट में दिए हलफनामे में बताया गया था कि गैस रिसाव में 5,58,125 लोग जख्मी हुए थे। उनमें से 38,478 आंशिक तौर पर अस्थायी विकलांग हुए और 3,900 स्थायी रूप से विकलांग हो गए। साथ ही करीब 2000 हजार जानवर भी शिकार हुए थे।
सरकार
को
पता
था
जहरीली
गैस
के
बारे
में?
दरअसल
कुछ
मीडिया
रिपोर्टस
के
मुताबिक
उस
जमाने
के
एक
पत्रकार
राजकुमार
केसवानी
ने
1982
से
1984
के
बीच
इस
कंपनी
को
लेकर
खुलासा
किया
था
कि
अन्य
कंपनियां
कारबेरिल
के
उत्पादन
के
लिए
कुछ
और
इस्तेमाल
करती
है।
जबकि
UCIL
(यूनियन
कार्बाइड
इंडिया
लिमिटेड)
ने
मिथाइल
आइसोसाइनेट
(MIC)
का
इस्तेमाल
किया।
MIC
एक
जहरीली
गैस
है।
चूंकि
इसके
इस्तेमाल
से
उत्पादन
खर्च
काफी
कम
पड़ता
था,
इसलिए
यूसीआईएल
ने
इस
जहरीली
गैस
को
अपनाया।
UCIL
की
फैक्ट्री
में
कीटनाशक
तैयार
किया
जाता
था।
पत्रकार
राजकुमार
केसवानी
ने
इस
पूरे
मामले
पर
तकरीबन
चार-पांच
आर्टिकल
लिखे
थे।
हर
आर्टिकल
में
उन्होंने
यूसीआईएल
प्लांट
के
खतरे
के
बारे
में
लिखा
था।
इसके
बाद
भी
सरकार
ने
उनकी
बात
को
अनसुना
कर
दिया।
कौन
था
मुख्य
आरोपी?
UCIL
(यूनियन
कार्बाइड
इंडिया
लिमिटेड)
का
चेयरमैन
वारेन
एंडरसन
इस
त्रासदी
का
मुख्य
आरोपी
था
लेकिन
उसे
कभी
सजा
नहीं
मिली।
दरअसल
1
फरवरी
1992
को
भोपाल
के
कोर्ट
ने
एंडरसन
को
फरार
घोषित
कर
दिया
था।
एंडरसन
के
खिलाफ
कोर्ट
ने
1992
और
2009
में
दो
बार
गैर-जमानती
वारंट
भी
जारी
किया
था,
पर
उसे
गिरफ्तार
नहीं
किया
जा
सका।
सरकारी
गाड़ी
से
भगाने
का
आरोप
News18
India
की
एक
खबर
के
मुताबिक
पुलिस
और
प्रशासन
के
दो
वरिष्ठ
अधिकारियों
ने
वारेन
एंडरसन
को
विशेष
विमान
तक
सरकारी
वाहन
से
खुद
छोड़ा
था।
इस
पूरे
मामले
की
जांच
सीबीआई
से
कराई
गई
थी।
घटना
की
तीन
साल
तक
जांच
करने
के
बाद
सीबीआई
ने
वारेन
एंडरसन
सहित
यूनियन
कार्बाइड
के
11
अधिकारियों
के
खिलाफ
अदालत
में
चार्जशीट
दाखिल
की
थी।
वारेन एंडरसन को कभी भारत नहीं लाया जा सका। उसकी अनुपस्थिति में ही पूरा केस चला। जून 2010 में इस मामले में कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। फैसले में कार्बाइड के अधिकारियों को जेल और जुर्माने की सजा सुनाई। अधिकारियों ने जुर्माना भरा और सेशन कोर्ट में अपील दायर कर दी।
तत्कालीन
डीएम
ने
किताब
में
लिखी
पूरी
कहानी
भोपाल
गैस
कांड
के
समय
कलेक्टर
रहे
मोती
सिंह
ने
अपनी
किताब
'भोपाल
गैस
त्रासदी
का
सच'
में
उस
बात
को
उजागर
किया,
जिसके
चलते
वारेन
एंडरसन
को
भोपाल
से
जमानत
देकर
भगाया
गया।
मोती
सिंह
ने
अपनी
किताब
में
पूरे
घटनाक्रम
का
उल्लेख
करते
हुए
लिखा
कि
वारेन
एंडरसन
को
कांग्रेस
नेता
अर्जुन
सिंह
के
आदेश
पर
छोड़ा
गया
था।
यहां
गौर
करने
वाली
बात
ये
है
कि
अर्जुन
सिंह
उस
समय
मध्य
प्रदेश
के
मुख्यमंत्री
थे
और
राज्य
में
कांग्रेस
की
सरकार
थी।
उन्होंने
लिखा
कि
वारेन
एंडरसन
के
खिलाफ
पहली
FIR
गैर
जमानती
धाराओं
में
दर्ज
की
गई
थी।
इसके
बाद
भी
उन्हें
जमानत
देकर
छोड़ा
गया।
जबकि
दूसरे
आरोपी
शकील
अहमद
कुरेशी
के
बारे
में
कोई
नहीं
जानता
कि
वो
कौन
है
और
कैसा
दिखता
है।
कुरेशी
एमआईसी
प्रोडक्शन
यूनिट
में
ऑपरेटर
था।
कुरेशी
के
सामने
न
आने
से
पूरी
घटना
का
खुलासा
नहीं
हो
सका
है।
एयरपोर्ट
छोड़ने
गए
थे
तत्कालीन
एसपी?
वहीं
एक
रिपोर्ट
के
मुताबिक
आज
से
तकरीबन
पांच
साल
पहले
मुख्य
न्यायिक
दंडाधिकारी
ने
गैस
पीड़ित
संगठनों
की
ओर
से
पेश
निजी
इस्तगासे
पर
यूनियन
कार्बाइड
के
चेयरमैन
वॉरेन
एंडरसन
को
भगाने
में
मदद
करने
पर
तत्कालीन
कलेक्टर
मोती
सिंह
और
तत्कालीन
पुलिस
अधीक्षक
(एसपी)
स्वराज
पुरी
के
खिलाफ
प्रकरण
दर्ज
करने
को
कहा
था।
आरोप
लगाया
गया
कि
एंडरसन
को
तत्कालीन
एसपी
स्वराज
पुरी
शाम
करीब
4
बजे
रेस्ट
हाउस
से
खुद
की
गाड़ी
में
एयरपोर्ट
लेकर
पहुंचे
थे,
जहां
पहले
से
खड़े
विमान
में
एंडरसन
तत्काल
पहले
दिल्ली
पहुंचा
और
वहां
से
अमेरिका
भागने
में
सफल
हो
गया
था।
राजीव
गांधी
नहीं
पीवी
नरसिंह
पर
लगाया
आरोप!
वहीं
साल
2010
में
इस
मामले
में
राजीव
गांधी,
अर्जुन
सिंह
के
साथ-साथ
पीवी
नरसिंह
राव
जो
तत्कालीन
गृहमंत्री
थे,
उनका
भी
नाम
आया
था।
जून
2010
में
जब
इस
मामले
में
कोर्ट
ने
अपना
फैसला
सुनाया
तब
विपक्ष
ने
अर्जुन
सिंह
पर
एंडरसन
को
भगाने
का
आरोप
लगाया।
बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया कि तब राज्यसभा में भोपाल गैस कांड पर बहस में हिस्सा लेते हुए अर्जुन सिंह ने कहा था कि उन पर लगे सारे आरोप निराधार हैं। साथ ही कहा कि राजीव गांधी ने एंडरसन के संबंध में एक भी शब्द नहीं कहा था। उन पर किसी तरह का आरोप लगाना गलत है।
अर्जुन सिंह ने कहा कि इस त्रासदी से भावुक होकर वे अपना पद छोड़ना चाहते थे तब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया था। मैंने तो भोपाल गैस कांड में वॉरेन एंडरसन को गिरफ़्तार करने का लिखित आदेश दिया था। जबकि एंडरसन को ज़मानत देने के लिए उनके पास गृह मंत्रालय से फ़ोन कॉल आए थे। अर्जुन सिंह ने कहा कि उन्होंने ये फ़ैसला राज्य के मुख्य सचिव पर छोड़ दिया था। इसके बाद विपक्षी नेताओं ने अर्जुन सिंह के इस बयान को झूठ बताते हुए कहा था कि उस समय पीवी नरसिंह राव गृह मंत्री थे और वे अब इस दुनिया में नहीं हैं और न ही राज्य के मुख्य सचिव जीवित हैं।
उल्लेखनीय है कि अर्जुन सिंह जीवन भर नेहरू गांधी परिवार के वफादार रहे और जब नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री एवं कांग्रेस अध्यक्ष थे, तो उनके विरोध में कुछ नेताओं के साथ मिलकर तिवारी कांग्रेस के नाम से एक अलग पार्टी बना ली थी। बाद में सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने पर तिवारी कांग्रेस का मूल कांग्रेस में विलय कर दिया गया। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि वारेन एंडरसन को भारत छोड़कर भागने में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने ही मदद की थी।
एंडरसन
को
नहीं
मिली
सजा
बता
दें
कि
1
फरवरी
1992
को
भोपाल
की
कोर्ट
ने
एंडरसन
को
फरार
घोषित
कर
दिया
था।
इसके
बाद
अदालत
ने
एंडरसन
के
खिलाफ
1992
और
2009
में
दो
बार
गैर-जमानती
वारंट
भी
जारी
किया,
मगर
उसकी
गिरफ्तारी
नहीं
हो
सकी।
वहीं
साल
2014
के
सितंबर
महीने
में
वॉरेन
एंडरसन
की
मौत
हो
गई
और
उसे
कभी
इस
मामले
में
सजा
नहीं
मिली।
तीसरी
पीढ़ी
झेल
रही
है
दंश
गैस
पीड़ित
की
लड़ाई
लड़ने
वाले
संगठनों
का
कहना
है
कि
सुप्रीम
कोर्ट
ने
तीन
अक्टूबर
1991
में
फैसला
सुनाया
था
कि
गैस
पीड़ितों
के
बाद
में
पैदा
हुए
कम
से
कम
एक
लाख
बच्चों
को
चिकित्सीय
बीमा
कवरेज
प्रदान
किया
जाए,
मगर
आज
तक
एक
भी
बच्चे
का
बीमा
नहीं
कराया
गया
है।