सामाजिक बहिष्कार का दंश : पुत्र से छीना पिता के अंतिम संस्कार का अधिकार, फिर मानवाधिकार में लगी अर्जी
बालोद जिले के अर्जुन्दा थाना क्षेत्र के ग्राम टिकरी में रहने वाले संदीप देशमुख का है। जिसमें दल्लीवार कुर्मी समाज ने अंतर्जातीय प्रेम विवाह करने वाले संदीप देशमुख का सामाजिक बहिष्कार कर, घर में प्रवेश नही करने जैसी सजा
बालोद, 17 जुलाई। देश में आज भी कई ऐसे खाप पंचायतें हैं। जिनका फरमान किसी इंसान को जिंदगी भर के लिए परिवार से जुदा कर देता है। वह व्यक्ति फिर जीवन भर इसी टैग के साथ जिंदगी जीता है कि उसने अपने समाज के नियमों को तोड़कर शादी की। बालोद जिले में ऐसा ही एक मामला सामने आया है। जहां खाप पंचायतों व समाज के नियमों के खिलाफ जाकर संदीप देशमुख ने अंतरजातीय विवाह कर लिया जिसके बाद समाज ने संदीप का सामाजिक बहिष्कार कर दिया है।
अंतर्जातीय प्रेम विवाह करने पर संदीप का सामाजिक बहिष्कार
दरअसल यह पूरा मामला बालोद जिले के अर्जुन्दा थाना क्षेत्र के ग्राम टिकरी में रहने वाले संदीप देशमुख का है। जिसमें दल्लीवार कुर्मी समाज ने अंतर्जातीय प्रेम विवाह करने वाले संदीप देशमुख का सामाजिक बहिष्कार कर, घर में प्रवेश नही करने जैसी सजा सुनाई है। जिस पर संदीप ने घर में प्रवेश करने से रोक लगाने, स्वतंत्रता में बाधा पहुंचाने मौलिक अधिकारों का हनन करने व छूआ-छूत एवं भेदभाव को बढ़ावा देने वाले समाज प्रमुखों एवं मेरे परिवार के लोगों के विरूद्ध दण्डात्मक कार्यवाही कर न्याय दिलाने की मांग शासन प्रशासन से की हैं।
संदीप देशमुख ने पिछले दिनों बालोद कलेक्ट्रेट पहुंचकर अपने 24 साल से सामाजिक बहिष्कार की पीड़ा कलेक्टर को सुनाया । उन्होंने समाज के 8 लोगो के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की। उन्होंने राज्यपाल, मानवाधिकार आयोग रायपुर, थाना प्रभारी अर्जुन्दा को मार्मिक पत्र लिखकर और न्याय की गुहार लगाई है संदीप देशमुख ने कलेक्टर को सौपे गए ज्ञापन में बताया कि 20 नवंबर 1998 को अंतर्जातीय विवाह किया था। तब से विजाति पत्नी रखने के करण दिल्लीवार कुर्मी समाज के द्वारा 28 मार्च 1999 से समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है तथा घर में घुसने व निवास करने से रोक लगा दिया गया है। विवाह के समय मैं बेरोजगार था तथा मजदूरी कर जीवनयापन कर रहा था तब से अब तक विगत 24 वर्षो से अपने घर नहीं जा पाया हूं।
पिता
के
अंतिम
संस्कार
का
अधिकार
भी
छीना
संदीप
ने
आगे
पत्र
में
लिखा
है
कि
जनवरी
2009
में
मेरे
पिताजी
चिंताराम
देशमुख
की
मृत्यु
होने
पर
मुझे
अंतिम
दर्शन
करने
का
अवसर
भी
समाज
प्रमुख
द्वारा
तथा
मेरे
घर
के
लोगों
के
द्वारा
नहीं
दिया
गया।
उनके
अर्थी
को
कंधा
भी
नहीं
देने
दिया
गया।
समाज
से
बहिष्कृत
होने
का
हवाला
देकर
मेरी
माता
सरोजना
देशमुख,
बहन
पूर्णिमा
देशमुख,
भाई
लोचन
देशमुख
के
साथ
समाज
के
पदाधिकारी
एवं
ग्राम
परसतराई
के
समाज
प्रमुखों
के
द्वारा
बलपूर्वक
मेरे
पिता
के
अंतिम
क्रिया
में
शामिल
होने
रोक
लगा
दिया।
जैन
समाज
की
लड़की
से
की
शादी
जिसकी
मिली
यह
सजा
संदीप
बताते
है
कि
उनकी
पत्नी
उच्च
वर्ग
जैन
समाज
से
है।
मैं
(
संदीप)
विवाह
के
बाद
से
अब
तक
समाज
के
कठोर
नियमों
एवं
दण्डात्मक
कार्यवाही
के
डर
से
अपने
घर
परिवार
के
किसी
भी
समारोह
में
शामिल
नहीं
हो
सका।
मेरी
एक
पुत्री
है
जो
विवाह
योग्य
हो
चुकी
है।
दिल्लीवार
कुर्मी
समाज
द्वारा
मुझे
मेरी
पत्नी
व
मेरी
बेटी
के
साथ
छूआ-छूत
जैसी
हीन
भावना
का
व्यवहार
किया
जाता
है।
वर्तमान
समय
के
लिए
चुनौती
बन
रहें
ये
नियम
कायदे
संविधान
भले
ही
अंतरजातीय
विवाह
की
इजाजत
दे।
सरकारें
इसकी
हिमायत
करें।
लेकिन
अंतरजातीय
विवाह
समाज
के
कथित
ठेकेदारों
के
लिए
आज
भी
गुनाह
है।
आज
के
परिवेश
में
इस
तरह
का
सोच
रखना
समझ
से
परे
है।
भारतीय
संविधान
में
जहां
अंतर्जातीय
विवाह
प्रोत्साहन
योजना
लागू
है।
लेकिन
समाज
के
विचारधारा
एवं
छोटी
मानसिकता
के
कारण
आज
तक
संदीप
जैसे
कई
लोग
अपने
घर
से
बेघर
समाजिक
बहिष्कार
का
दंश
झेल
रहे
हैं।
संदीप
की
तरह
आधा
दर्जन
लोग
हैं
पीड़ित
वही
पूरे
मामले
में
संदीप
देशमुख
ने
बताया
कि
उनके
अलावा
ऐसे
करीब
आधा
दर्जन
से
ज्यादा
मामले
है।
जो
आज
इंसाफ
के
लिए
सिर्फ
प्रशासन
के
चक्कर
काट
रहे
है।
लेकिन
आज
तक
न
तो
तुगलकी
फरमान
जारी
करने
वाले
समाज
के
कथित
ठेकेदारों
के
खिलाफ
कोई
कार्यवाही
हुई
न
ही
आज
तक
सामाजिक
बहिष्कार
जैसे
कुरीतियों
का
दंश
झेलने
वालो
को
न्याय
मिल
पाया।
वही
संदीप
ने
प्रशासनिक
व्यवस्थाओं
पर
भी
सवालिया
निशान
खड़े
कर
दिए।