छत्तीसगढ़: तिब्बती कालीन बनाने के हुनर से बदल रही आदिवासी महिलाओं की जिंदगी
नई दिल्ली। छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले की कालीनें देशभर में लोकप्रिय हो रही हैं। यहां की आदिवासी महिलाओं के हाथों की बनी कालीन देश के महानगरों में खूब पसंद की जा रही हैं। यहां का मैनपाट गांव इन कालीनों को तैयार करने का एक तरह से सेंटर बन गया है। यहां की महिलाओं ने कालीन बनाने का ये हुनर तिब्बत के लोगों से सीखा, जो उनकी जिंदगी में बदलाव की वजह बन रहा है।
कालीन बनाने वाली चिंतामणि भगत कहती हैं कि वो फीनिक्स और ड्रैगन को कालीन पर उतारती हैं। उन्होंने एक तिब्बती महिला से ये सीखा है। फीनिक्स और ड्रैगन वाले ये कालीन देशभर में खूब पसंद किए जाते हैं। कालीन के इस काम से गांव में एक खुशहाली आई है। गांव की औरतों के हाथ में पैसा आया है, जिससे उनकी स्थिति में सीधे एक बदलाव देखने को मिला है।
सरगुजा का मैनपाट गांव छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 365 किमी दूर है। शहर से भी उसकी दूरी 50 किमी से ज्यादा है। यहां कालीन बनाने का ये हुनर तिब्बत के लोग लाए। 1959 में जब छत्तीसगढ़ नहीं था और ये हिस्सा मध्य प्रदेश का हिस्सा था तो यहां करीब तीन हजार तिब्बती शरणार्थी आए थे। 1959 से बसे तिब्बती लोगों ने आदिवासियों को कालीन बुनाई का काम सिखाया। इन कालीनों में सूत और उन का इस्तेमाल किया जाता है।
1995 में सरकार ने यहां ट्रेनिंग सेंटर खोले तो तिब्बती महिलाओं ने आदिवासी महिलाओं को ये हुनर सिखाया। खासतौर से बुजुर्ग तिब्बती महिलाओं को ये हुनर आता है, जिनसे आदिवासी महिलाओं ने सीखा है। ये कालीन हाथ से ही बनाई जाती हैं लेकिन छत्तीसगढ़ बनने के बाद एक बार फिर ये सरकार की अनदेखी का शिकार हुआ और यहां के कामगार उत्तर प्रदेश में चलए गए। स्थानीय स्तर पर उद्योग नहीं होने के कारण यहां की महिलाएं उत्तरप्रदेश के भदोही और मिर्जापुर में जाकर कालीन बनाती थीं।
एक बार फिर राज्य सरकार ने इस ओर फिर ध्यान दिया है। सरगुजा जिले के कालीन बुनकरों को नियमित रोजगार देने के लिए दो दशक से बंद पड़े इस उद्योग को पुनर्जीवित करने का काम शुरू किया गया है। बड़े शोरूम और अमेजन से मार्केटिंग की व्यवस्था सरगुजा के परंपरागत कालीन के मार्केटिंग की व्यवस्था भी हस्तशिल्प विकास बोर्ड के माध्यम से की गई है। जिससे एक बार इसको लेकर आदिसावी महिलाओं को उम्मीद बंदी है।