CG: पेड़ों की नहीं होगी कटाई, धान और नारियल के भूसे से बनाया प्लाईवुड, Engineering के छात्रों ने ढूंढा विकल्प
छत्तीसगढ़ के सिविल इंजीनियरिंग के छात्रों ने अंगोल आंध्रप्रदेश में आयोजित स्मार्ट इंडिया हैकाथान में अपने आइडिया की बदौलत बड़ी सफलता हासिल की है। यह पहुंचे छात्रों की खोज को देखकर ऑब्जर्वर और प्रोफेसर ने इसकी तारीफ की।
दुर्ग, 01सितम्बर। छत्तीसगढ़ के सिविल इंजीनियरिंग के छात्रों ने अंगोल आंध्रप्रदेश में आजादी के अमृत महोत्सव पर आयोजित स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन में अपने आइडिया की बदौलत बड़ी सफलता हासिल की है। यह पहुंचे छात्रों की खोज को देखकर ऑब्जर्वर और प्रोफेसर ने इसकी तारीफ की। श्री शंकराचार्य इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी रायपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के भावी इंजीनियरों ने यह काम किया है। इसके लिए उन्हें अंगोल आंध्रप्रदेश में हुए स्मार्ट इंडिया हैकाथॉन में एक लाख रुपए का इनाम भी दिया गया ।
छात्रों ने ढूंढ निकाला प्लाईवुड का विकल्प
दरअसल शंकराचार्य इंस्टिट्यूट ऑफ प्रोफेशनल मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी के छात्राओं ने पेड़ों को काटने से बचाने और पर्यावरण की रक्षा की दिशा में एक नवाचार किया है। छात्रों ने धान के भूसे और नारियल के बुरादे को संघनित कर प्लाईवुड बनाया है। यह सामान्यतः बाजार में मिलने वाले प्लाईवुड का विकल्प है, और उससे अधिक मजबूत भी है। जिसका इस्तेमाल सामान्य प्लाईवुड के तौर पर किया जा सकता है।
स्वच्छ भारत मिशन के तहत मिला था टास्क
सिविल इंजीनियरिंग के छात्रों को यह विषय स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) जल शक्ति मंत्रालय से दिया गया था। छात्रों ने "रैपिड डिकंपोजीशन ऑफ वेस्ट मटेरियल इन रूरल एरियास" पर शोध करना शुरू किया। विद्यार्थियों ने करीब चार महीने इस विषय पर काम किया। इस टीम में ट्विंकल देवांगन, अक्षत सिंह राजपूत, अभिषेक वर्मा, आकाश साहू, आदित्य सिंह भुआल और प्रतिमा साहू शामिल थीं। उनके मेंटर प्रोफेसर अनुराग वहाणे और अनंत कुमार थे। इसके लिए उन्हें अंगोल आंध्रप्रदेश में हुए स्मार्ट इंडिया में एक लाख रुपए का इनाम भी दिया गया ।
आंध्रप्रदेश के हैकाथॉन-2022 में मारी बाजी
इस विषय पर शोध करने वाले छात्र ने बताया कि धान और नारियल के बुरादे से प्लाईवुड बनाया जाए तो इसके लिए पेड़ों को काटना नहीं पड़ेगा, यह काफी सस्ता होगा। और प्रकृति को नुकसान भी नही होगा। संस्था के सिविल इंजीनियरिंग विभागाध्यक्ष डॉ. तरूण कुमार रजक ने बताया कि परंपरागत तरीके से किसी केबिन, पार्टीशन, दरवाजे या फर्नीचर का निर्माण प्लाईवुड से किया जाता है। इसके लिए हर साल 15 करोड़ पेड़ काटे जाते हैं। इसकी तुलना में सिर्फ 5 करोड़ पौधे ही लगाए जाते हैं। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए टीम ने प्लाईवुड का नया विकल्प खोजा है। इससे पेड़ों की कटाई करने की अधिक जरूरत नहीं होगी।
बढ़ती जनसंख्या ने बढ़ाई सिविल इंजीनियर की डिमांड
श्री शंकराचार्य इंस्टिट्यूट के चेयरमैन निशांत त्रिपाठी ने बताया कि बढ़ती जनसंख्या के अनुसार लगातार निर्माण कार्य हो रहे हैं। इसके अनुसार हमे प्राकृतिक चीजों से हटकर वैकल्पिक साधनों की जरूरत भी पड़ रही है। इसकी वजह से लगातार सिविल ब्रांच की मांग विद्यार्थियों के बीच बनी हुई है। इसमें रोजगार और स्वरोजगार की भी असीम संभावनाएं हैं। साथ ही इसमें शोध और नई-नई चीजों को खोजकर सामने लाने की संभावना बढ़ गई है।