पंजाब में हाशिए पर पहुंच चुकी आम आदमी पार्टी, जानें कहां-कहां हुई गलती
चंडीगढ़। 2014 के लोकसभा चुनाव हों या उसके बाद पंजाब के विधानसभा चुनाव, आम आदमी पार्टी ने पंजाब की राजनिति में तूफान ला दिया। लोगों ने खुलकर आप को समर्थन दिया, जिससे आप के चार सांसद जीते तो बाद में 2017 के विधानसभा चुनाव में 20 सीटें हासिल कर नया इतिहास रचा। विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दल के तौर पर आप को मान्यता मिली। यह पहला ऐसा राजनैतिक दल था जिसे विदेशों में बसे पंजाबियों से भी करोड़ों रुपए का चंदा हासिल हुआ। शिरोमणी अकाली दल व बादल परिवार को सत्ता से बाहर करने में आप ने अहम रोल अदा किया। आज हालात ऐसे हैं कि आप का पूरे देश से एक ही सांसद चुनाव जीत कर आया है।
'आप' की हालत बद से बदतर
लेकिन मौजूदा लोकसभा चुनावों में आप की हालत बद से बदतर हो गई। न तो विदेशों से कोई चंदा इस बार मिला न ही पंजाब में कोई समर्थन हासिल हो पाया। प्रदेश की 13 लोकसभा सीटों में पार्टी के प्रधान भगवंत मान ही अपनी सीट निकाल पाए हैं। यह माना जा रहा है कि यह सीट ‘आप' नहीं भगवंत मान अपनी फेस वैल्यू के कारण जीते हैं। अब वह ‘आप' के इकलौते सांसद होने के नाते पंजाब का ही नहीं पूरे देश का संसद में प्रतिनिधित्व करेंगे। भगवंत मान को संगरूर लोकसभा क्षेत्र से 1105888 वोटों में से 413561 वोट मिले हैं, जो कुल मतों का 37.4 फीसदी है। 2014 के चुनाव के मुकाबले इस बार पंजाब में ‘आप' के वोट बैंक में करीब 17 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है। 2014 में ‘आप' को 4 सीटों पर जीत दर्ज कर 24.5 फीसदी वोट मिले थे, जबकि इस बार ‘आप' को 1 सीट के साथ 7.8 फीसदी ही वोट मिले हैं। अगर विधानसभा चुनाव-2017 की बात की जाए तो 20 सीटें हासिल करते हुए पार्टी को 23.72 फीसदी वोट मिले थे। उस दौरान ही विधानसभा क्षेत्रों में भी ‘आप' का जनाधार खिसक गया है।
2014 में जीत के बाद क्या-क्या हुआ
‘आप' का केंद्रीय नेतृत्व 2014 लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पंजाब में तानाशाह रवैया अपनाने लगा था। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पंजाब में ‘आप' की गहरी पैठ बन गई थी। 2017 में विधानसभा चुनाव में यह लहर चल पड़ी थी कि ‘आप' पंजाब में सरकार बनाने वाली है। शायद यही वजह रही कि 2016 में ‘आप' आलाकमान ने पार्टी के तत्कालीन कन्वीनर सुच्चा सिंह छोटेपुर पर कथित तौर पर रिश्वत का आरोप लगने पर उन्हें भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। सुच्चा सिंह छोटेपुर ने नई पार्टी का गठन कर लिया। 2018 में पंजाब में ऐसा बिखराव शुरू हुआ कि यह बिखरती ही चली गई। पार्टी के प्रवक्ता सुखपाल खैहरा को उस समय पार्टी से अलग कर दिया गया, जब आम चुनाव नजदीक थे। पार्टी में संकट तब खड़ा हुआ जब सुखपाल खैहरा को विधायक दल के नेता के पद से हटा दिया गया। इस प्रकरण के बाद सुखपाल खैहरा ने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
2019 में धूमिल हुआ आप का भविष्य
2017 के विधानसभा चुनाव में बीस सीटें जीत कर राज्य में अपना दबदबा कायम करने वाली ‘आप' का भविष्य 2019 के लोकसभा चुनाव के आते-आते धूमिल हो चुका था। इस बार पंजाब में चुनाव के दौरान शुरू से ही ‘आप' की स्थिति विरोधाभाषी रही। पार्टी नेतृत्व पंजाब के ‘आप' सुप्रीमो को सही दिशा-निर्देश व चुनावी एजैंडा ही नहीं दे पाया। नतीजन ‘आप' किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं कर पाई। यहां तक कि बहुजन समाज पार्टी से भी ‘आप' का गठबंधन होते-होते रह गया और पार्टी का दलित वोट बैंक छिटकने के साथ पार्टी दिशाहीन होती चली गई। चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में डेरा तो डाला, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ।
मान ने अपने दम पर बचायी सीट
संगरूर में अपने ही दम पर भगवंत मान को अपनी सीट बचानी पड़ी। वहीं, अब आप का विधानसभा में विपक्षी दल का रूतबा भी छिनने वाला है। इस बार लोकसभा चुनाव में विदेशों में रह रहे लाखों पंजाबियों ने भी चुनाव में ‘आप' का सहयोग नहीं दिया जिसकी वजह पार्टी में बिखराव ही था। 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 500 से ज्यादा एनआरआई ने करोड़ों रुपए का चंदा ऑनलाइन या चेक के जरिए दिया था। इसके अलावा करीब साढ़े पांच हजार एनआरआई चुनाव प्रचार करने पंजाब पहुंचे थे। इस बार ये एनआरआई निष्क्रिय रहे और पार्टी को वित्तीय सहायता के अलावा प्रचार में भी कोई सहयोग नहीं मिला। नतीजन पार्टी अब बिल्कुल हाशिए पर नजर आ रही है, लोकसभा चुनाव के नतीजे अब पंजाब में टू पार्टी सिस्टम के संकेत दे रहे हैं।
मान ने कहा- भाजपा और अकाली दल की उल्टी गिनती शुरू
भगवंत मान ने कहा कि पंजाब में अकाली दल और भाजपा दो-दो सीटों पर विजय हासिल कर सकी है। इस बार इनकी लोकसभा में गिनती कम हुई है और इन पार्टियों की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। अगली बार अकाली-भाजपा को कोई भी सीट नहीं मिलेगी। उन्होंने कहा कि उनकी जीत में पार्टी और चेहरा दोनों ने मुख्य भूमिका निभाई। भगवंत मान ने कहा कि पंजाब में सरकार द्वारा बिजली की दरों में बढ़ोतरी की गई है, इसका विरोध किया जाएगा। उन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह के शहर पटियाला में संघर्ष करने के संकेत दिए।
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