Bitcoin से भी तेजी से बढ़ रही क्रिप्टोकरेंसी ईथर, जानिए क्या है इसकी वजह ?
नई दिल्ली, 11 मई। एथेरम ब्लॉकचेन की क्रिप्टोकरेंसी ईथर ने रॉकेट की तेजी से उछाल भरते हुए 4000 डॉलर की कीमत हासिल की है। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी क्रिप्टोकरेंसी बन चुकी ईथर ने 2021 की शुरुआत से अब तक 400% की उछाल हासिल की है जबकि इसी दौरान दुनिया की सबसे बडी़ और लोकप्रिय क्रिप्टोकरेंसी बिटकॉइन ने 100% की तेजी से बढ़ी है। ऐसे में एक नजर डालते हैं कि आखिर ईथर में इस उछाल के पीछे की वजह क्या है।
एथेरियम
कैसे
काम
करती
है?
2013
में
प्रस्तावित
ब्लॉकचेन
का
निर्माण
किया
गया
था।
इस
विकेंद्रीकृत
मंच
पर
सॉफ्टवेयर
डेवलपर्स
स्मार्ट
कॉन्ट्रैक्ट
लिखते
हैं।
स्मॉर्ट
कॉण्ट्रैक्ट
एक
प्रोग्रामेबल
कॉण्ट्रैक्ट
है
जो
एथेरियम
ब्लॉकचेन
पर
चलता
है।
इसी
एथेरियम
ब्लॉकचेन
की
डिजिटल
करेंसी
को
लॉन्च
किया
जिसे
ईथर
के
रूप
में
जाना
जाता
है।
इसका
उपयोग
बिटकॉइन
की
तरह
ही
हर
रोज़
लेनदेन
के
लिए
किया
जा
सकता
है।
2015
में
अपनी
शुरुआत
के
बाद
से
ईथर
ने
बिटकॉइन
के
सबसे
लोकप्रिय
विकल्पों
में
खुद
को
स्थापित
किया
है।
वर्तमान
में
जिसने
$
450
बिलियन
से
अधिक
के
बाजार
पूंजीकरण
की
कमान
संभाली
है।
क्यों
आगे
निकल
रही
ईथर?
ईथर
के
पक्ष
में
काम
करने
वाले
कई
कारक
हैं।
एक
वजह
तो
निवेशकों
का
विश्वास
जागना
भी
है।
पिछले
एक
साल
में
बिटकॉइन
में
आए
बहुत
सारे
निवेशक
ईथर
के
बारे
में
जागरूक
हो
गए
हैं
और
सिर्फ
एक
क्रिप्टोकरेंसी
की
जगह
अलग-अलग
में
दांव
आजमाना
चाहते
हैं।
पिछले
एक
साल
में
बिटकॉइन
में
500%
की
छलांग
के
मुकाबले
ईथर
ने
1800%
की
वृद्धि
दर्ज
की
है।
एक
कनाडाई
एक्सचेंज
में
एथेरियम
एक्सचेंज-ट्रेडेड
फंड
के
लॉन्च
को
डिजिटल
परिसंपत्तियों
को
मुख्यधारा
बनाने
की
दिशा
में
एक
बड़ा
कदम
माना
गया
है।
क्या
एथेरियम
पर्यावरण
के
अनुकूल
है?
ब्लॉकचेन
पर
लेनदेन
को
सत्यापित
करने
के
लिए
बिटकॉइन
और
एथेरियम
जैसे
प्रमुख
क्रिप्टोकरेंसी
काम
के
सबूत
(पीओडब्ल्यू)
का
उपयोग
करते
हैं।
यह
प्रक्रिया
गणित
के
एक
उन्नत
रूप
का
उपयोग
करती
है,
जिसे
केवल
शक्तिशाली
कंप्यूटर
ही
हल
कर
सकते
हैं।
यही
वजह
है
क्रिप्टोकरेंसी
के
लेनदेन
में
भारी
मात्रा
में
ऊर्जा
खर्च
होती
है।
यही
वजह
है
कि
एथेरियम
ऊर्जा
को
लेकर
अपनी
नैतिक
जिम्मेदारी
की
तरफ
बढ़
रही
है।
इस
प्रक्रिया
का
मतलब
है
कि
माइनर्स
के
पास
जितने
अधिक
कॉइन
होंगे,
उसकी
माइनिंग
शक्ति
भी
उतनी
ही
होगी।
इससे
यह
उम्मीद
की
जाती
है
कि
सत्यापन
प्रक्रिया
और
ऊर्जा
दक्षता
के
प्रयासों
को
बल
मिलेगा।
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