Union Budget 2023 : 8 वित्त मंत्रियों के बजट की खास चर्चा, 72 साल में कितना बदला बजट, जानिए
भारत की आजादी के 75 साल हो चुके हैं। पहली बार 1950 में संसद में आम बजट पेश किया गया। उस साल से आज तक यानी 2022 तक 72 साल की अवधि के दौरान आम बजट कितना बदला, ये जानना रोचक है। जानिए 8 वित्त मंत्रियों के खास बजट की कहानी
भारत की आजादी के बाद संसद में Union Budget कई बार पेश किया जा चुका है। हालांकि, 1950 से 2022 तक 8 ऐसे मौके आए जब देश का आम बजट खास तौर पर चर्चित रहा। जिन वित्त मंत्रियों के बजट खास तौर पर चर्चित रहे उनमें देश के पहले वित्त मंत्री जॉन मथाई से लेकर वर्तमान वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण तक 8 वित्त मंत्रियों के नाम शामिल हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस साल लगातार पांचवीं बार संसद में आम बजट पेश करेंगी। इस खास मौके से कुछ दिन पहले जानिए, डॉ मनमोहन सिंह समेत मशहूर आर्थिक जानकारों और 8 वित्त मंत्रियों के बजट किन पहलुओं के कारण सुर्खियों में रहे।
योजना आयोग के तहत पहला बजट
जॉन मथाई भारत के पहले वित्त मंत्री रहे। उन्होंने 28 फरवरी, 1950 को बजट पेश किया था। भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार में योजना आयोग के तहत संसाधनों के आकलन के बाद बजट पेश किया जाता था। आजाद भारत में योजना आयोग को संसाधनों के सबसे प्रभावी उपयोग का श्रेय दिया जाता है।
31 साल पहले लाइसेंस राज समाप्त करने की शुरुआत
देश के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह वर्ष 1991 में वित्त मंत्री रहे थे। आर्थिक उदारीकरण का श्रेय डॉ मनमोहन सिंह को दिया जाता है। 31 साल पहले पेश किए गए बजट को लाइसेंस राज समाप्त करने का श्रेय दिया जाता है। आर्थिक मामलों के जानकार तीन दशक पुराने इस बजट को युगांतकारी बजट बताते हैं। अहम बात ये कि उस दौर में भारत आर्थिक पतन के कगार पर था। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए डॉ मनमोहन सिंह ने इस ऐतिहासिक बजट में सीमा शुल्क को 220 फीसदी से घटाकर 150 फीसदी कर दिया था।
आर्थिक संकट के बीच इंदिरा सरकार में ब्लैक बजट
फौलादी इरादों के लिए मशहूर रहीं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार में वित्त मंत्री यशवंतराव बी चव्हाण थे। वित्त वर्ष 1973-74 में उनके कार्यकाल में पेश किए गए बजट को आलोचक 'काला बजट' कहते हैं। ब्लैक बजट के पीछे तर्क दिया जाता है कि इस साल राजकोषीय घाटा 550 करोड़ रुपये दर्ज किया गया था। आजादी के करीब 25 साल बाद युद्ध जैसी विभीषिका झेल चुका भारत गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था।
तस्करी और कालाबाजारी पर नकेल
पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह (VP Singh) ने वित्त मंत्रालय का प्रभार भी संभाला था। 28 फरवरी, 1986 को तत्कालीन कांग्रेस सरकार का बजट 'गाजर और छड़ी बजट' कहा गया। जानकारों की राय में बजट में पुरस्कार और दंड दोनों के प्रावधान किए गए थे। इस दौर को लाइसेंस राज खत्म करने की शुरुआत कहा जाता है। जनता पर टैक्स का असर कम हो इसके लिए संशोधित मूल्यवर्धित टैक्स (MODVAT) क्रेडिट की शुरुआत की गई। तस्करों, कालाबाजारियों और कर चोरों के खिलाफ अभियान शुरू हुआ।
अटल सरकार में यशवंत सिन्हा का 'रोलबैक बजट'
भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी ने 1999 में सरकार बनाई थी। उनकी कैबिनेट में यशवंत सिन्हा को वित्त मंत्रालय का प्रभार दिया गया था। एकीकृत बिहार के बाद झारखंड के हजारीबाग से संसद पहुंचने वाले यशवंत सिन्हा ने वित्त वर्ष 2002-03 का बजट पेश किया था। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की इस सरकार में 20 साल पहले के बजट को 'रोलबैक बजट' कहा जाता है। जानकार मानते हैं कि गठबंधन की मजबूरियों के कारण बजट में किए गए अधिकांश प्रस्ताव वापस ले लिए गए। रोचक तथ्य है कि वाजपेयी ने 24 दलों की सरकार चलाई थी।
'मिलेनियम बजट' में कंप्यूटर पर जोर
21वीं सदी का पहला बजट प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में पेश किया गया। वर्ष 2000 में तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने जब भारत की संसद में Union Budget पेश किया तो इसे 'मिलेनियम बजट' कहा गया। इसमें भारत के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग के विकास के लिए रोड मैप पेश किया गया। सॉफ्टवेयर निर्यातकों से जुड़े अहम फैसले हुए। कंप्यूटर और कंप्यूटर एक्सेसरीज पर सीमा शुल्क भी घटाया गया।
2004 में 'अर्थशास्त्री' की सरकार बनी
2004 में 'अर्थशास्त्री' के रूप में विख्यात पूर्व वित्त मंत्री और आरबीआई गवर्नर डॉ मनमोहन सिंह की सरकार बनी। इस सरकार में तमिलनाडु से निर्वाचित सांसद पी चिदंबरम वित्त मंत्री बने। हालांकि, एक रोचक तथ्य ये है कि कांग्रेस सरकार में Union Budget पेश करने से लगभग सात साल पहले ही उन्होंने पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा की सरकार में 'ड्रीम बजट' पेश कर दिया था। यशवंत सिन्हा से पहले और मनमोहन सिंह के बाद संभवत: ये एकमात्र बजट रहा, जिसे उम्मीदों और सपनों से भरपूर माना गया।
देवेगौड़ा सरकार में चिदंबरम का ड्रीम बजट
भारत सरकार के खजाने में राजस्व बढ़ाने के मकसद से करीब 25 साल पहले पी चिदंबरम ने वित्त वर्ष 1997-98 का बजट पेश किया। इसे 'एवरीमैन बजट ड्रीम' की संज्ञा मिली। टैक्स कलेक्शन बढ़ाने के लिए दरों में कटौती की गई। चिदंबरम ने अर्थशास्त्र के लाफर कर्व सिद्धांत का उपयोग किया। कॉर्पोरेट टैक्स रेट घटाए गए। व्यक्तिगत आयकर की दरों में भी उल्लेखनीय- 10 फीसदी की गिरावट आई। इसके अलावा चिदंबरम के ड्रीम बजट में विदेशी संस्थागत निवेशकों (FDI) को बढ़ावा दिया गया। इससे भारत में विदेशी निवेश तेजी से बढ़ा।
नरेंद्र मोदी सरकार में बजट की नई परंपरा
2014 में लोक सभा चुनाव देश की सियासत में अहम मोड़ साबित हुए। 10 साल बाद सरकार बदली और नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने। पुरानी परंपराओं को खत्म करना और नई परिपाटी को शुरू करना NDA सरकार की पहचान बनती जा रही है। इसी कारण सरकार बनने के केवल तीन साल बाद 92 साल पुरानी परंपरा पर विराम लगाने का फैसला हुआ।
अरुण जेटली इतिहास के पन्नों में दर्ज हुए
नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली NDA सरकार में अरुण जेटली को वित्त मंत्रालय मिला। तीन साल बाद यानी वर्ष 2017 में पेश किए गए आम बजट में रेल बजट का विलय करने का ऐलान हुआ। मोदी सरकार के इस फैसले के बाद अरुण जेटली इतिहास के पन्नों में दर्ज दो गए, क्योंकि अलग से रेल बजट पेश करने की 92 साल पुरानी परंपरा पर विराम लगा। बता दें कि ब्रिटिश हुकूमत में भारत की आजादी के 23 साल पहले यानी 1924 में अलग रेल बजट की परिपाटी शुरू हुई थी। बाद में वित्त मंत्री बनीं निर्मला सीतारमण ने भी नई परंपराओं के कारण सुर्खियां बटोरीं।
जेटली के दौर में GST और किसान कल्याण
10 साल तक संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार का दौर देखने के बाद भारत में प्रचंड बहुमत की सरकार के कारण भी नरेंद्र मोदी ने खूब सुर्खियां बटोरीं। कड़े और अहम फैसले बिना झिझक लेने का दावा करने वाली सरकार ने जब वस्तु एवं सेवा कर (GST) का कानून बनाया तो वित्त मंत्रालय में एक बार फिर नई शुरूआत हुई। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के पिटारे से निकले बजट में कृषि, स्वास्थ्य सेवा और वित्तीय प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने के दावे किए गए। किसानों को लोन के लिए 10 लाख करोड़ रुपये का आवंटन भी सुर्खियों में रहा था। जेटली के कार्यकाल में ही नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (NABARD) का फंड बढ़ाकर 40,000 करोड़ रुपये करने का ऐलान हुआ।
निर्मला सीतारमण के दौर में डिजिटल फॉर्मेट बजट
डिजिटल इंडिया नरेंद्र मोदी सरकार की प्रमुख मुहिम में एक मानी जाती है। बैंकिंग और एजुकेशन के बाद इसकी मिसाल संसद में भी दिखी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ब्रीफकेस और खाता-बही वाले बजट के बाद डिजिटल फॉर्मेट में बजट डॉक्यूमेंट देश के सामने रखा। इसे भी काफी अलग माना गया, क्योंकि पहली बार देश के किसी वित्त मंत्री ने इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पर Union Budget पढ़ा। वित्त मंत्री अपने बजट भाषणों की लंबाई के कारण भी सुर्खियों में रहीं।
162 साल का इतिहास, वित्त मंत्री सीतारमण के रिकॉर्ड
भारत में कई दशकों तक अंग्रजों की सरकार रही। ब्रिटिश साम्राज्य में 1860 से लेकर अब तक भारतीय संसद में कई Union Budget पेश किए जा चुके हैं। आजाद भारत में केंद्रीय बजट पेश करते समय कई रोचक मौके आए हैं, जिनकी आज भी चर्चा होती है। आगामी एक फरवरी 2023 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण लगातार पांचवीं बार केंद्रीय बजट पेश करेंगी। बजट से जुड़े रोचक तथ्यों को जानने के दौरान ये भी दिलचस्प है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण वित्त वर्ष 2020-21 में 2 घंटे 42 मिनट लंबे बजट भाषण का रिकॉर्ड कायम कर चुकी हैं। सबसे लंबे के अलावा सबसे छोटा बजट भाषण आज से 45 साल पहले दिया गया था। 1977 में तत्कालीन वित्त मंत्री हीरूभाई मूलजीभाई पटेल ने संसद में सबसे छोटा बजट भाषण देने का रिकॉर्ड कायम किया।
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