यह भारत की अदालतों के लिए अग्नि परीक्षा का समय है
नई दिल्ली, 15 जून। स्कूल के कुछ रिपोर्ट कार्ड, भाई के लिए हाथों से बनाया गया एक ग्रीटिंग कार्ड, कुछ रसीदें और एक पोटली से बाहर झांकती "बुक थीफ" नाम की किताब. पत्रकार पियूष राय के एक ट्वीट में इलाहाबाद में जावेद मोहम्मद के घर के मलबे में पड़ी इन चीजों की झलक मिलती है.
Academic report cards from class 1 -12, a handmade greeting card to a brother, membership receipts book and book titled “book thief” were among the things trapped in the debris of demolished house of Javed Mohammed in Kareli area in Prayagraj.
Ground report soon on @TheQuint pic.twitter.com/AxR5DTZQWk
— Piyush Rai (@Benarasiyaa) June 13, 2022
वीडियो आपने भी अपनी सोशल मीडिया फीड पर देखे होंगे. जवाहरलाल नेहरू और मदन मोहन मालवीय के इलाहाबाद में एक दो-मंजिला मकान एक बुलडोजर और उसके साथ आए कुछ सरकारी मुलाजिमों के सामने तन के खड़ा है.
(पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट के सामने साख बचाने की बड़ी चुनौती)
मुलाजिमों के कहने पर बुलडोजर को चालू किया जाता है और निचली मंजिल के दरवाजे को तोड़ दिया जाता है. फिर एक एक कर दो बुलडोजर और लाए जाते हैं और दीवार दर देवार, ईंट दर ईंट सालों से खड़े मकान को घंटे भर में तोड़ दिया जाता है. बाकी रह जाता है बिखरा हुआ सामान, ईंट, पत्थर, लकड़ी, यादों और उम्मीदों का मलबा.
In UP's Prayagraj, demolition of Javed Mohammad's residence begins. As per police, he is one of main conspirators of violence in city on June 10. Javed is associated with @WelfarePartyIN & was arrested along with wife & daughter!!!#StandWithAfreenFatimapic.twitter.com/WrxSuiZ1kZ
— Muslim Spaces (@MuslimSpaces) June 12, 2022
एक और वीडियो में प्रशासन और पुलिस के अधिकारी टूटे हुए मकान का निरीक्षण करते नजर आ रहे हैं. शायद सुनिश्चित कर रहे हों कि पूरा मकान टूटा या नहीं और कहीं कुछ गलती से बच तो नहीं गया.
निरंकुश होती सत्ता
ये प्रशासन के सबसे क्रूर चेहरों में से है. एक दिन हाथ से छिन जाने वाली सत्ता के भ्रामक नशे में चूर राजनेता और उनका दमनकारी हुक्म बजाते पक्की नौकरी वाले सरकारी अधिकारी. लेकिन इस तस्वीर में एक बड़ा अहम किरदार गायब है.
(पढ़ें: उत्तर प्रदेश: तीन नियम जो बुलडोजर चलाने में तोड़े गए)
नियंत्रण और संतुलन के बिना लोकतंत्र बेमानी है, इसी धारणा के आधार पर संविधान निर्माताओं ने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों को राज्य के स्तंभ बताया था. उम्मीद यह थी कि तीनों एक दूसरे को निरंकुश नहीं होने देंगे जिससे संवैधानिक संतुलन बना रहे.
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और दिल्ली में प्रशासन की मनमानी के हाथों अपने मकान और दुकानें गंवा चुके जावेद मोहम्मद और उनके जैसे सैकड़ों लोगों के साथ जो हुआ है वो उसी असंतुलन का जीता जागता रुप है जिसका डर संविधान निर्माताओं को था.
(पढ़ें: अब दिल्ली पहुंचा सत्ता का बुलडोजर)
बीजेपी को राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाते हुए आठ साल हो चुके हैं. विपक्ष से मायूस, कोने में धकेल दिया गया सहमा हुआ आम मुसलमान कभी कभी खुद विरोध करने की हिम्मत जुटा लेता है, लेकिन बीजेपी तुरंत दमन और बढ़ा देती है.
कहां हैं संविधान के प्रहरी
दमन का यह चक्र रुके भी तो कैसे? संविधान मिलॉर्ड से चुनाव लड़ने की आकांक्षा नहीं रखता. चुनाव छोड़िए उन्हें तो राजनीति पर भाषण भी देने की जरूरत नहीं है. देश की अदालतों का एक ही काम है और वो है कानून के शासन की रक्षा. वो कानून का शासन जिसे बनाए रखने के लिए संविधान के रूप में एक पथ प्रदर्शक दिया गया.
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दिल्ली के हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट के जजों को खुद भी तो सत्ता की यह आततायी मनमानी दिखाई दे रही होगी. फिर वो क्यों इन मामलों पर खुद सुनवाई शुरू नहीं कर रहे हैं?
चलिए खुद न सही, इन मामलों पर जो याचिकाएं दायर की गई हैं उन पर तो जल्द सुनवाई कर इस दमन को रोका जा सकता है. इलाहाबाद हाई कोर्ट, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में भी पूरे देश में चल रहे बुलडोजर के इस क्रूर तमाशे को रोकने के लिए दायर की गई याचिकाएं ठंडे बस्ते में पड़ी हैं.
(पढ़ें: यूपी के बाद दूसरे राज्यों को भी भा रही है बुलडोजर संस्कृति)
भारत आज एक ऐतिहासिक मोड़ से गुजर रहा है. सिर्फ गंगा-जमुनी तहजीब की सैकड़ों साल पुरानी विरासत की धज्जियां ही नहीं उड़ाई जा रही हैं, आधुनिक भारत की संवैधानिक नींव पर भी घातक प्रहार किए जा रहे हैं. अदालतें इस नींव के प्रहरी हैं और इसे बचाए रखना उनकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी है.
जो उनका सामान्य दायित्व था वो आज उनकी अग्निपरीक्षा बन गया है. अब ये न्यायपालिका को ही तय करना है कि संविधान और कानून के शासन की हिफाजत के लिए वो खड़ी होगी या सालों बाद इतिहास को यह कहने का मौका देगी कि नफरत की राजनीति जब भारत को निगल रही थी तब भारत की अदालतें चुपचाप खड़ी थीं.
Source: DW