समंदर के बीच में होते हुए भी आखिर क्यों नहीं डूबती हाजी अली की दरगाह?
नयी दिल्ली। बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए मुंबई में हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को गलत ठहराते हुए इस हटा दिया है। कोर्ट के फैसले के बाद अब महिलाएं भी पवित्र दरगाह में प्रवेश कर सकेंगी।
बॉम्बे हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, हाजी अली दरगाह में महिलाओं को एंट्री, फिलहाल 6 हफ्ते के लिए रोक
मुंबई स्थित समुद्र के बीच बने इस दरगाह की खासियत है कि यहां सच्चे में से जो भी कोई मुराद मांगता हैं उसकी मन्नत पूरी होती है। लेकिन सबसे खास बात ये कि समुद्र के बीच में होते हुए भी ये दरगाह डूबती नहीं। अगर आप भी इसकी वजह जानना चाहते हैं तो स्लाइड के जरिए जानिए आखिर क्यों समंदर में तैरती रहती है हाजी अली की दरगाह...
हाजी अली की दरगाह
15 वीं शताब्दी में मुंबई के वरली में स्थित समुद्र के किनारे बना ये दरगाह जमीन से कम से कम 500 गज दूर समु्द्र के भीतर बना है। समुद्र के बीच में होने के बावजूद ये दरगाह डूबता नहीं।
समंदर से घिरा है दरगाह
हाजी अली दरगाह तक पहुंचने के लिए लोगों को लंबे सीमेंट के बने पुल से होकर गुजरना पड़ता है जो कि दोनों ही तरफ से समुद्र के घिरा है। लोगों की पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही कहानियों और दरगाह के ट्रस्टियों की मानें को पीर हाजी अली शाह पहली बार जब व्यापार करने अपने घर से निकले थे तब उन्होंने मुंबई के वरली के इसी इलाक़े को अपना ठिकाना बनाया था।
मुंबई के वरली को बनाया था ठिकाना
वो यहीं रहते थे और धीरे-धीरे उन्हें ये स्थान अच्छा लगने लगा। उन्होंने यहीं रहकर धर्म का प्रचार-प्रसार करने की बात सोची। इसी मकसद के साथ उन्होंने अपनी मां तो खत लिखकर इसकी जानकारी दी और अपनी सारी संपत्ति गरीबों में बांटकर धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे।
हाजी अली की आखिरी इच्छा
हाजी अली सबसे पहले हज की यात्रा पर गए, लेकिन इस यात्रा के दौरान उनकी मौत हो गयी। मरने से पहले उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा जताई की मरने के बाद उन्हें दफनाया न जाएं बल्कि उनके कफन को समुद्र में डाल दी जाए।
तैरता रहा ताबूत
लोगों ने उनकी इस इच्छा को पूरा किया, लेकिन उनका ताबूत को अरब सागर में होता हुआ मुंबई की इसी जगह पर आकर रुक गया, जहां वो रहते थे।
1431 में बनीं दरगाह
जहां उनका ताबूत रूका उसी जगह पर 1431 में उनकी याद में दरगाह बनाई गई। खासबात ये कि तेज ज्वार के आने के बावजूद भी इस दरगाह के भीतर पानी की एक बूंद नहीं जाती है।